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BHOPAL : ढाई साल पहले अस्तित्व में आई कार्य गुणवत्ता परिषद को अब तक कार्रवाई का अधिकार नहीं मिला है। पिछली सरकार में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने परिषद को अधिकार नहीं दिए थे। अब वर्तमान सीएम डॉ. मोहन यादव भी इसे पॉवरफुल बनाना भूल गए हैं। विभागों के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की जांच का जिम्मा परिषद को मिला है, लेकिन स्टाफ और कार्रवाई के अधिकार के बिना इसका अस्तित्व बेमानी साबित हो रहा है। जबकि प्रदेश में सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर सवाल उठाए जा रहे हैं और सरकार की किरकिरी हो रही है तब भी परिषद को अनदेखा किया जा रहा है।
मध्यप्रदेश में विभागों के निर्माण कार्यों की गुणवत्ता पर नियंत्रण रखने कार्य गुणवत्ता परिषद का गठन किया गया था। सरकार के प्रति जबावदेह एजेंसी को घटिया निर्माण कार्यों की जांच के बाद रिपोर्ट तैयार करके सरकार तक पहुंचाना होता है। हांलाकि सरकार की बेरुखी के चलते गठन के बाद से ही परिषद बेकार है। कुछ समय तक परिषद में सीनियर आईएएस के निर्देशन में ईएनसी से लेकर सहायक कार्यपालन यंत्री स्तर के चार दर्जन तकनीकी अधिकारियों की पदस्थापना की जाती रही थी। शुरूआत में अफसर जोश से काम करते रहे लेकिन कार्रवाई का अधिकार न होने से वे धीरे-धीरे विदाई लेकर चले गए।
शुरूआत से ही कमजोर होता गया सीटीई का ढांचा
सरकार द्वारा गठन के दौरान गुणवत्ता परिषद को मजबूत बनाने की तैयारी थी। इसके लिए परिषद का ढांचा प्रभावशाली रखा गया था। तकनीकी अधिकारियों के मार्गदर्शन के लिए परिषद में सीनियर आईएएस को महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया जाता था। पिछले साल तक परिषद दो आईएएस अफसरों की निगरानी में काम कर चुकी है। वहीं तकनीकी एक्सपर्ट के रूप में परिषद में एक ईएनसी यानी इंजीनियर इन चीफ, तीन चीफ इंजीनियर, छह सुपरवाइजिंग इंजीनियर, 12 एक्जीक्युटिव इंजीनियर्स के अलावा 24 सब इंजीनियर्स के पद भी रखे गए हैं। हांलाकि सरकार गठन के बाद से ही कार्य गुणवत्ता परिषद को अनदेखा कर चुकी है। परिषद को जांच का दायित्व तो सौंपा गया है लेकिन निर्माण कार्य में घटिया सामग्री या गुणवत्ताहीन कार्य की बात साबित होने पर भी उसे कार्रवाई का अधिकार नहीं है।
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घटिया फ्लाईओवर के मामले पर हुई खूब किरकिरी
सरकार द्वारा निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांचने जो पद सृजित किए गए थे उनसे से एक चौथाई भी यहां पदस्थ नहीं हैं। इस कारण प्रदेश में विभागों द्वारा कराए जाने वाले निर्माण कार्यों का न तो नियमित क्वालिटी टेस्ट हो पा रहा है और न घटिया कामों की जांच की रिपोर्ट सरकार तक पहुंच रही है। हाल ही में जबलपुर में फ्लाईओवर के निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी पर सरकार को जमकर किरकिरी का सामना करना पड़ा था। यदि परिषद द्वारा इसकी जांच की गई होती तो ठेकेदार घटिया सामग्री का उपयोग नहीं कर पाता। प्रदेश में जल संसाधन, लोक निर्माण, पंचायत एवं ग्रामीण विकास, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के अधीन 50 हजार से ज्यादा निर्माण कार्य चल रहे हैं। अरबों रुपए की लागत के इन कामों से संबंधित हजारों शिकायतें सरकार और विभाग मुख्यालय तक पहुंच रही हैं। इन सभी कामों की गुणवत्ता की जांच की जिम्मेदारी कार्य गुणवत्ता परिषद की है।
सीएम अध्यक्ष, 8 मंत्री सदस्य, फिर भी CTE ही लाचार
कार्य गुणवत्ता परिषद यानी सीटीई को प्रभावी बनाने के लिए इसे मुख्यमंत्री की निगरानी में रखा गया है। मुख्यमंत्री स्वयं इसके अध्यक्ष हैं जबकि सामान्य प्रशासन विभाग के मंत्री उपाध्यक्ष हैं। वहीं वित्त विभाग, लोक निर्माण विभाग, जलसंसाधन विभाग, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग, नगरीय प्रशासन एवं आवास विभाग, ऊर्जा विभाग, पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के मंत्रियों के अलावा मुख्य सचिव, जीएडी और लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव को सदस्य की भूमिका में शामिल किया गया है। यानी सरकार और शासन के सभी प्रमुख जिम्मेदार सीटीई के सदस्य हैं, इसके बावजूद परिषद की स्थिति दयनीय है। क्योंकि यहां न तो पर्याप्त कार्यालयीन कर्मचारी हैं और न जांच करने के लिए तकनीकी अधिकारी। इस कारण परिषद के गठन का उद्देश्य ही पूरा नहीं हो रहा है।
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इन कामों की गुणवत्ता पर सवाल
1. बुंदेलखंड पैकेज के तहत कराए गए करोड़ों रुपए के काम मौके से गायब हैं। इसकी शिकायत सीटीई से की गई थी लेकिन जांच सिमट कर रह गई और पता ही नहीं चला नतीजा क्या निकला।
2. मालवीय इन्फ्रा की कंसल्टेंसी की रिपोर्ट पर लोक निर्माण विभाग से करोड़ों के काम कराए गए। जबलपुर सहित पूरे प्रदेश में हजारों करोड़ रुपए का भुगतान भी किया गया लेकिन ज्यादातर काम घटिया हुए।
3. प्रदेश में करोड़ों रुपए के पुलों के निर्माण के दौरान गुणवत्ता की जांच नहीं की गई। पुलों के निर्माण में तकनीकी अधिकारियों द्वारा डिजाइन_ड्राइंग बदली गई। कैग के परीक्षण में इन निर्माण कार्यों से सरकार को सवा 100 करोड़ के नुकसान की पुष्टि हुई है।
4. हमीदिया मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग के मामले में भी तकनीकी चूक हुई है। इस मामले में भी शिकायतों के बाद अब परीक्षण कराए जा रहे हैं। सीटीई जैसी एजेंसी से पहले ही परीक्षण कराए गए होते तो हैंडओवर से पहले ये खामी पता चल सकती थी।