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Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट तेजी से वायरल हो रही है, जिसने मध्यप्रदेश की राजनीति और प्रशासन में हड़कंप मचा दिया है। Deepesh Patel @Deepeshpatel87 नाम की एक आईडी से किए गए इस पोस्ट में दावा किया गया है कि मध्यप्रदेश सरकार ने डायल 100 की जगह डायल 112 योजना के लिए 1200 नई गाड़ियां खरीदी हैं, जिसमें एक बड़ा घोटाला हुआ है।
दीपेश पटेल की पोस्ट में कहा गया है कि सरकार ने इन गाड़ियों को बाजार मूल्य से कई गुना अधिक कीमत पर खरीदा है, जिससे कुल मिलाकर 1500 करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है। यह दावा विशेष रूप से एक स्कॉर्पियो गाड़ी की कीमत 1 करोड़ रुपए से अधिक होने पर फोकस है।
एक्स पर जैसे ही यह पोस्ट किया गया, वैसे ही डायल 112 वाहन खरीद मामले ने राजनीतिक और सार्वजनिक बहस को बढ़ा दिया है। विपक्षी दल ने सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जबकि सरकार के समर्थक इसे दुष्प्रचार बता रहे हैं।
इस पूरे मामले में मध्यप्रदेश पुलिस के स्पेशल डीजी आईपीएस संजीव शमी ने इस दावे को पूरी तरह से झूठा और दुर्भावनापूर्ण (malicious) बताया है। उनका कहना है कि ये दावे जनता को गुमराह करने के लिए फैलाए जा रहे हैं और इनमें कोई सच्चाई नहीं है।
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क्या है सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट का सच?
सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट की मुख्य बातें इस प्रकार हैं...
दावा 1: मध्यप्रदेश पुलिस ने डायल 100 की जगह अब 112 कर दी है, जिसके लिए 1200 नई गाड़ियां खरीदी गई हैं।
दावा 2: इन 1200 गाड़ियों में 600 स्कॉर्पियो और 600 बोलेरो शामिल हैं।
दावा 3: जो गाड़ियां 30 से 40 लाख रुपए में आ जाती हैं, सरकार ने उन्हें 1 करोड़ रुपए से अधिक की कीमत पर खरीदा है।
दावा 4: 1200 गाड़ियां खरीदने पर कुल 1500 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, जिससे प्रति गाड़ी की कीमत 1 करोड़ से अधिक हुई है।
इन दावों पर स्पेशल डीजी संजीव शमी ने द सूत्र के सवालों के जवाब में कहा है कि यह जानकारी पूरी तरह से गलत है और इसे जानबूझकर गलत इरादे से फैलाया जा रहा है।
स्पेशल डीजी संजीव शमी ने बताई यह बात
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे दावों को झुठलाते हुए स्पेशल डीजी संजीव शमी ने बताया कि पूरी परियोजना की कुल निविदा (total tender) राशि लगभग 972 करोड़ रुपए है, न कि 1500 करोड़ रुपए।
उन्होंने द सूत्र को स्पष्ट किया कि एमपी डायल 112 के लिए सरकार ने सभी वाहनों को किराए पर लिया है। बोलेरो और स्कॉर्पियो वाहनों के किराए की दर क्रमशः ₹32,000 और ₹36,000 प्रति माह रखी गई है।
इसके साथ ही लगभग 5000 कर्मचारियों के साथ 1200 एफआरवी (फास्ट रिस्पांस व्हीकल) का संचालन और रखरखाव किया जाएगा। इस परियोजना का कुल अनुमानित बजट लगभग 972 करोड़ रुपए है, जिसमें से 719.75 करोड़ रुपए केवल बेड़े के संचालन और रखरखाव पर खर्च किए जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, राज्य कमांड सेंटर के लिए 78.5 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है, जिसमें 500 से अधिक कर्मचारियों के लिए डेस्कटॉप और अन्य सुविधाएं शामिल हैं। आईटी अवसंरचना, हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और रखरखाव पर लगभग 174 करोड़ रुपए का खर्च आएगा।
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क्यों एक गाड़ी की कीमत इतनी अधिक दिख रही है?
सरकार के मुताबिक, सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट का सबसे बड़ा झूठ यह है कि 1500 करोड़ रुपए केवल 1200 गाड़ियों की खरीद पर खर्च हुए हैं। जबकि, वास्तविकता इससे बहुत अलग है।
मध्य प्रदेश डायल 112 परियोजना का ये है मॉडलडायल 112 सिर्फ गाड़ियों को खरीदने की योजना नहीं है, बल्कि यह एक एकीकृत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली (Integrated Emergency Response System) है। इसके तहत, कॉल सेंटर, डेटा सेंटर, वाहन और कर्मचारियों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया गया है। गाड़ियों की लागत: गाड़ियों को किराए पर लिया गया है। इसके साथ ही उनमें जीपीएस ट्रैकिंग, वीडियो रिकॉर्डिंग, संचार उपकरण और अन्य तकनीकें लगाई गई हैं, जो उनकी लागत को बढ़ाती हैं। ये गाड़ियां "प्लेन" गाड़ियां नहीं हैं, बल्कि विशेष रूप से आपातकालीन सेवाओं के लिए डिजाइन की गई हैं। कर्मचारियों का वेतन: सबसे बड़ी लागत में से एक है 6000 कर्मचारियों का वेतन। ये कर्मचारी 24/7 आपातकालीन कॉल का जवाब देने और घटनास्थल पर प्रतिक्रिया देने के लिए तैनात किए गए हैं। 5 साल के लिए इन कर्मचारियों का वेतन करोड़ों रुपये में होगा। रखरखाव और परिचालन: 5 साल तक 1200 गाड़ियों का रखरखाव, ईंधन, बीमा और अन्य परिचालन लागतें (operational costs) भी इस 972 करोड़ रुपए की राशि में शामिल हैं। यह एक बहुत बड़ी राशि होती है। तकनीकी बुनियादी ढांचा : परियोजना के लिए आवश्यक डेटा सेंटर, सर्वर, सॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकी उपकरणों की लागत भी महत्वपूर्ण है। यह एक वन-टाइम इन्वेस्टमेंट नहीं है, बल्कि इसमें निरंतर उन्नयन (upgradation) और रखरखाव की आवश्यकता होती है। |
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निष्कर्ष: दुष्प्रचार और तथ्य
यह पूरा मामला सोशल मीडिया पर चल रहे दुष्प्रचार (misinformation) का एक स्पष्ट उदाहरण है। बिना पूरी जानकारी और संदर्भ के, केवल एक संख्या को आधार बनाकर एक बड़ा आरोप लगाया गया है। स्पेशल डीजी संजीव शमी का स्पष्टीकरण यह साबित करता है कि यह दावा पूरी तरह से गलत है और यह जनता को गुमराह करने का एक प्रयास है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि सरकारी परियोजनाओं की लागत में सिर्फ वस्तु की खरीद शामिल नहीं होती, बल्कि उसमें परिचालन, रखरखाव, कर्मचारियों का वेतन और तकनीकी बुनियादी ढांचा भी शामिल होता है। डायल 112 जैसी एक बड़ी और जटिल परियोजना के लिए, यह खर्च बहुत अधिक होना स्वाभाविक है।
एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में, यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हर जानकारी पर विश्वास न करें, बल्कि उसकी सत्यता की जांच करें। पत्रकारिता का भी यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है कि दोनों पक्षों को सुना जाए और तथ्यों के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाए। इस मामले में, यह स्पष्ट है कि 1200 गाड़ियों की खरीद में 1500 करोड़ रुपए का घोटाला होने का दावा मनगढ़ंत है और इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ के लिए जनता के बीच भ्रम फैलाना है।
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