चर्च ट्रस्ट की जमीन में हेराफेरी, EOW ने दर्ज किया धोखाधड़ी का मामला

मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने नागपुर डायोसिस ट्रस्ट एसोसिएशन की मंडला स्थित भूमि के नकली दस्तावेजों के जरिए अवैध रूप से बिक्री किए जाने के मामले में धोखाधड़ी (IPC धारा 420) और आपराधिक षड्यंत्र (IPC धारा 120B) के तहत मामला दर्ज किया है।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने नागपुर डायोसिस ट्रस्ट एसोसिएशन की मंडला स्थित जमीन के फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से अवैध बिक्री करने के मामले में धोखाधड़ी (IPC धारा 420) और आपराधिक षड्यंत्र (IPC धारा 120B) का मामला दर्ज किया है। इस बड़े जमीन घोटाले में चर्च ट्रस्ट के कुछ पदाधिकारी और निजी खरीदारों की मिलीभगत सामने आई है। इस मामले में आरोप है कि चर्च ट्रस्ट की कीमती जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर पहले बेचा गया और फिर इसे आगे कई अन्य लोगों के नाम पर स्थानांतरित कर दिया गया, यह सब इसकी असली मालिकाना स्थिति को छुपाने के लिए किया गया।

यह है पूरा मामला

जांच में सामने आया कि नागपुर डायोसिस ट्रस्ट एसोसिएशन की नजूल शीट नंबर 19C, प्लॉट नंबर 57 और 57/1 की जमीन चर्च मिशन सोसायटी के नाम 1954 से दर्ज थी। इस जमीन को चर्च ट्रस्ट के प्रबंधन के तहत धार्मिक उद्देश्यों के लिए आरक्षित किया गया था और इसका उपयोग केवल चर्च और उससे जुड़े धार्मिक कार्यों के लिए ही किया जा सकता था।

हालांकि, वर्ष 1989-90 में चर्च ट्रस्ट के तत्कालीन पदाधिकारी एफ.सी. जोनाथन द्वारा इस जमीन से जुड़े दस्तावेजों में हेरफेर कर इसे निजी व्यक्तियों को बेच दिया गया। जबकि ट्रस्ट की संपत्ति को बेचे जाने के लिए चैरिटी कमिश्नर और सरकार की अनुमति आवश्यक होती है, जो इस मामले में नहीं ली गई। इसके बाद, 2003 और 2011 में भी इस जमीन के कई टुकड़े अलग-अलग लोगों को बेचे गए, जिससे यह पूरा सौदा जटिल बन गया और मूल मालिकाना हक को छुपाने की कोशिश की गई। इसी हेराफेरी के कारण असली दस्तावेजों को नष्ट कर दिया गया और फर्जी कागजातों के आधार पर नए खरीदारों के नाम पर रजिस्ट्रियां करवाई गईं।

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इस तरह रची धोखाधड़ी की साजिश

  • इस मामले में आरोपियों ने फर्जी तरीके से चर्च ट्रस्ट की जमीन को पहले खुद के नाम पर दिखाया और फिर इसे कई अन्य लोगों को बेचा। धोखाधड़ी के इस खेल में  यह तरीके अपनाए गए
  • फर्जी मालिकाना हक तैयार करना: चर्च ट्रस्ट के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ कर यह दर्शाया गया कि जमीन किसी एक व्यक्ति की निजी संपत्ति है।
  • दस्तावेजों में बदलाव: रजिस्ट्रार कार्यालय में प्रस्तुत किए गए पुराने दस्तावेजों में बदलाव कर, ट्रस्ट की स्वामित्व वाली इस जमीन को व्यक्तिगत संपत्ति के रूप में दर्शाया गया।
  •  बिना अनुमति बिक्री: मध्य प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव ने 1994 में आदेश जारी कर चर्च की संपत्तियों को चर्च के सदस्यों के अलावा अन्य किसी को बेचने पर रोक लगाई थी, लेकिन इस आदेश को नजरअंदाज कर बिना किसी आधिकारिक अनुमति के भूमि को बेच दिया गया।
  • नामांतरण की प्रक्रिया में हेरफेर: खरीदारों के नाम पर गलत तरीके से जमीन का नामांतरण किया गया, जिससे मूल स्वामित्व छिपाने की कोशिश की गई।
  • बार -बार बेची गई जमीन - प्रारंभिक खरीदारों ने आगे इस जमीन को अन्य लोगों को बेचा, जिससे यह मामला जटिल होता गया और असली धोखाधड़ी को छिपाया जा सके।

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इस पूरे घोटाले में भ्रष्ट अधिकारियों और दलालों की संलिप्तता से सरकारी दस्तावेजों में हेरफेर किया गया, जिससे जमीन को अवैध रूप से निजी संपत्ति के रूप में स्थानांतरित किया गया।

8 लोगों के खिलाफ दर्ज हुआ मामला 

आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) ने इस मामले में धोखाधड़ी (IPC 420) और आपराधिक षड्यंत्र (IPC 120B) के तहत मामला दर्ज किया है। इसमें से अधिकांश मंडला निवासी आरोपी फिलहाल भोपाल के कोहेफिजा थाना क्षेत्र में रह रहे हैं।

  • नाहिद जहां, निवासी मंडला
  • इफ्फत, निवासी मंडला
  • रुबीना, निवासी मंडला
  • अतीक गौरी, निवासी मंडला
  •  इकबाल गौरी, निवासी मंडला
  •  रईस अहमद गौरी, निवासी मंडला
  • दीपक कुमार जैन, निवासी मंडला
  • जितेंद्र साहू, निवासी मंडला

ये सभी आरोपी विभिन्न स्तरों पर इस अवैध सौदे में शामिल थे, जिन्होंने जमीन के स्वामित्व को बदलने, फर्जी दस्तावेज तैयार करने और आगे इसे बेचने में भूमिका निभाई।

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शिकायत के बाद हुआ घोटाले का खुलासा

जबलपुर निवासी अधिवक्ता स्वपनिल सराफ ने आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में इस धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत के आधार पर मामले की विस्तृत जांच शुरू हुई, जिसमें यह सामने आया कि चर्च ट्रस्ट की संपत्ति को अवैध रूप से बेचा गया था। जांच के दौरान राजस्व रिकॉर्ड और रजिस्ट्रार कार्यालय के दस्तावेजों की जांच की गई, जिससे यह साबित हुआ कि जमीन का हस्तांतरण बिना किसी वैध अनुमति और सरकारी मंजूरी के किया गया था। इसके अलावा, खरीदारों द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों की वैधता पर भी सवाल उठाए गए, जिससे यह साफ हुआ कि नामांतरण प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई थी।

जांच के बाद हो सकते हैं और भी खुलासे

आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ अब सभी आरोपियों से पूछताछ करने की तैयारी में है। दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच की जा रही है और यह पता लगाया जा रहा है कि इस धोखाधड़ी में और कौन-कौन शामिल था। आरोपियों के खिलाफ जल्द ही गिरफ्तारी वारंट जारी हो सकता है, और यदि उनकी संलिप्तता और स्पष्ट रूप से साबित होती है, तो उनके खिलाफ संपत्ति कुर्की की कार्रवाई भी हो सकती है।

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इस मामले में शामिल सरकारी अधिकारियों की भूमिका की भी जांच की जा रही है, क्योंकि इतनी बड़ी हेराफेरी बिना किसी प्रशासनिक संलिप्तता के संभव नहीं हो सकती।

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