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Photograph: (thesootr)
JABALPUR. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बैतूल के तुषार उर्फ आनंद को जिलाबदर करने के आदेश को रद्द किया। पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की है।
कोर्ट ने आदेश में साफ कहा कि बैतूल एसपी (SP) और बैतूल डीएम (DM) दोनों ने तथ्यों की जांच किए और बिना दिमाग लगाए कार्रवाई कर दी। कोर्ट ने इस आदेश को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों पर "असंगत और अनुचित प्रतिबंध" बताया। तुषार की ओर से यह अपील उनके अधिवक्ता सुनील कुमार पांडे ने दायर की थी।
क्या था पूरा मामला?
तुषार उर्फ आनंद के खिलाफ जिला मजिस्ट्रेट बैतूल ने 21 नवंबर 2024 को MP राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990 की धारा 5(a) और (b) में जिला बदर का आदेश पारित किया था। आदेश में उन्हें बैतूल के साथ छिंदवाड़ा, नर्मदापुरम, खंडवा और हरदा जिलों की सीमाओं से एक वर्ष तक बाहर रहने का निर्देश दिया गया था।
एसपी बैतूल ने 22 मार्च 2024 को भेजी गई सिफारिश में दावा किया था कि अपीलकर्ता पर 12 प्रकरण दर्ज हैं और गवाह सुरक्षा के डर से गवाही देने आगे नहीं आ रहे। इसके खिलाफ तुषार ने अपील भी की। लेकिन मंडल आयुक्त (कमिश्नर) और हाईकोर्ट की सिंगल बेंच, दोनों ने इस आदेश को सही माना था। जिसके बाद अधिवक्ता सुनील कुमार पांडे ने रिट अपील दायर कर जिला बदर की वैधता को चुनौती दी।
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SP और DM ने दिमाग नहीं लगाया
चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की डिविजनल बेंच ने जिला बदर के आदेश में कई गंभीर खामियां बताईं।
एसपी की भारी गलती
जिला बदर के प्रस्ताव में अंतिम पैराग्राफ में गलती से गोलू पुत्र प्रभाकर सोलंकी का नाम लिख दिया गया। यह दिखाता है कि आवेदन बिना पढ़े और बिना समुचित परीक्षण के भेजा गया था।
डीएम की लापरवाही
मार्च 2024 की सिफारिश पर डीएम ने 7-8 महीने बाद, नवंबर 2024 में जिला बदर का आदेश पारित किया, जबकि इस अवधि में तुषार के खिलाफ एक भी नया प्रकरण दर्ज नहीं हुआ। कोर्ट ने टिप्पणी की “जब कोई आपराधिक गतिविधि ही नहीं हुई, तो जिला बदर की तुरंत आवश्यकता थी कहां?”
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Close Proximity का अभाव
2021 के बाद तुषार पर केवल एक साधारण मामला (धारा 294, 323, 506, 34 IPC) दर्ज मिला, जो जिला बदर के लिए आवश्यक ‘करीबी संबंध’ की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
गवाहों के डर का कोई सबूत नहीं
रिकॉर्ड में कहीं यह नहीं दिखा कि गवाह जान-माल की सुरक्षा के भय से गवाही देने से इनकार कर रहे हैं।
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मौलिक अधिकारों का हुआ उल्लंघन
कोर्ट ने आदेश में दोहराया कि जिला बदर व्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19 और 21) पर गंभीर चोट करता है, इसलिए इसे सिर्फ ठोस और विश्वसनीय सामग्री के आधार पर ही जारी किया जा सकता है।
जिला बदर से जुड़े सभी आदेश हुए रद्द
कोर्ट ने आदेश में साफ लिखा कि एसपी ने आवेदन करते समय और डीएम ने आर्डर करते समय दिमाग नहीं लगाया। जिला बदर का आदेश “संगत साक्ष्यों से रहित” था और निष्कर्ष रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से मेल नहीं खाते।
इसलिए डीएम बैतूल का आदेश (21.11.2024), कमिश्नर नर्मदापुरम का आदेश (18.02.2025) और हाईकोर्ट की एकलपीठ का आदेश (02.04.2025) सभी रद्द कर दिए गए। अब तुषार उर्फ आनंद को बैतूल और अन्य जिलों में प्रवेश से कोई रोक नहीं है।
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