जेल सुपरिंटेंडेंट को बना दिया पिंग पोंग बॉल, 90-90 दिनों में हुए ट्रांसफर को HC ने बताया हरासमेंट

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक रविशंकर सिंह के बार-बार हुए तबादलों को हरासमेंट करार दिया। कोर्ट ने इसे अस्थायी नियुक्तियों और प्रभार के रूप में अधिकारियों का मानसिक उत्पीड़न बताया। जजों ने कहा, "अधिकारियों को पिंग पोंग बॉल की तरह घुमाया जा रहा है।"

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Neel Tiwari
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Photograph: (The Sootr)

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जबलपुर।मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जेल अधीक्षक रविशंकर सिंह के लगातार तबादलों पर गंभीर टिप्पणी करते हुए इसे सीधा हरासमेंट करार दिया है। अदालत ने कहा कि अस्थाई नियुक्तियों और प्रभार के नाम पर अधिकारी को जिस तरह अलग-अलग जेलों में भटकाया गया, वह उनकी सेवा शर्तों और पारिवारिक जीवन दोनों के साथ खिलवाड़ है। जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की डिविजनल बेंच ने इस मामले को सुनते हुए कहा कि “आपने तो अधिकारी को पिंग पोंग बॉल बना दिया है।”

बार-बार का ट्रांसफर किया प्रताड़ित

रविशंकर सिंह जो कुछ समय तक जबलपुर जेल में भी पदस्थ रहे, अब प्रमोशन पाकर जेल अधीक्षक बन चुके हैं। लेकिन उनकी नियुक्तियों का रिकॉर्ड देखने पर साफ होता है कि बीते कुछ वर्षों में उन्हें शायद ही किसी पद पर स्थिरता मिली हो। कभी रीवा, तो कभी डिंडोरी, भोपाल, सीधी और शहडोल - जहां भी कोई पद खाली होता या किसी अधिकारी पर कार्रवाई होती, वहां उनका ट्रांसफर कर दिया जाता।

यहां तक कि सीधी जेल में पदस्थ रहते हुए अनूपपुर में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम हुआ तो उन्हें अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया। कोर्ट ने इस पर हैरानी जताई कि क्या किसी अधिकारी को केवल इसलिए बार-बार ट्रांसफर किया जा सकता है क्योंकि वह विभाग की सुविधानुसार उपलब्ध है या इसके पीछे कोई और कारण है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि सिर्फ इस अधिकारी को ही टारगेट किया जा रहा है या ऐसे और भी अधिकारी हैं जिन्हें इस तरह से ट्रांसफर किया गया है।

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90-90 दिनों में बदलती पोस्टिंग, परिवार भी प्रभावित

रविशंकर सिंह के वकीलों अवि सिंह और कौस्तुभ सिंह ने अदालत को बताया कि विभाग ने पिछले तीन सालों में कम से कम छह बार उन्हें नई जगह भेजा, लेकिन इनमें से अधिकांश आदेश अस्थाई नियुक्ति या प्रभार के नाम पर जारी किए गए। औसतन हर 90 दिनों में उनकी नई पोस्टिंग हो जाती थी।

इस दौरान उनका परिवार लगातार जबलपुर में ही रहा, जिससे उनके बच्चों की पढ़ाई और पारिवारिक जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। अदालत ने भी माना कि जेल अधीक्षक की जिम्मेदारी लगभग 24 घंटे की होती है, ऐसे में अधिकारी को एक जगह स्थिरता न मिलना उनके निजी जीवन के साथ अन्याय है।

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बार-बार ट्रांसफर को कोर्ट ने बताया हरासमेंट

सरकार और जेल विभाग की ओर से कहा गया कि आधिकारिक तौर पर केवल एक बार ही रविशंकर का ट्रांसफर हुआ है, बाकी तो अस्थाई प्रभार थे। लेकिन अदालत ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि बार-बार अस्थाई नियुक्तियों के नाम पर अधिकारी को इधर-उधर भेजना भी प्रताड़ना (Harassment) के बराबर है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “यह अधिकारी के अधिकारों का हनन है, आप चाहें तो नाम अस्थाई नियुक्ति दें या प्रभार, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकारी को  कभी एक जगह पर रहने नहीं दिया गया।”

कोर्ट ने IAS अशोक खेमका को किया याद

सुनवाई के दौरान जस्टिस अतुल श्रीधरन ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह मामला हरियाणा के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका की याद दिलाता है, जिनका करियर बार-बार किए गए तबादलों के कारण चर्चा में रहा। अदालत की टिप्पणी से सामने आया कि जिस तरह खेमका का नाम तबादलों से जुड़ गया था, उसी तरह रविशंकर सिंह का रिकॉर्ड भी विभागीय लापरवाही और मनमानी का सबूत बन रहा है।

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हलफनामा पेश करने का आदेश

अदालत ने जेल विभाग को निर्देश दिया है कि वह शपथपत्र (हलफनामा) दाखिल करे। इसमें यह स्पष्ट करना होगा कि आखिर किन परिस्थितियों में इतनी बार अस्थाई नियुक्तियां की गईं। साथ ही प्रदेशभर में जेल अधीक्षकों की कमी और मौजूदा उपलब्धता का प्रतिशत भी अदालत को बताया जाए। इसके अलावा कोर्ट ने उन सभी मामलों की जानकारी भी मांगी है, जहां इसी रैंक के अधिकारियों को बार-बार अस्थाई नियुक्तियों और प्रभार के नाम पर ट्रांसफर किया गया।

अगली सुनवाई 10 नवंबर को

अब यह मामला 10 नवंबर को फिर से हाईकोर्ट की डिविजन बेंच में सुना जाएगा। उस समय विभाग और राज्य सरकार को हलफनामे के साथ अदालत के सामने जवाब पेश करना होगा। तब तक अदालत ने स्पष्ट संकेत दे दिए हैं कि इस तरह की कार्यप्रणाली को हल्के में नहीं लिया जाएगा।

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ट्रांसफर के नाम पर हरासमेंट पर रोक जरूरी

इस पूरे मामले ने न केवल जेल विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं, बल्कि यह भी साफ किया है कि अधिकारियों को स्थिरता देना शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी है। अमूमन ऐसा सामने आता है कि विभाग में किसी एक अधिकारी से मनमुटाव के चलते इस तरह ट्रांसफर और अस्थाई नियुक्तियों के नाम पर अधिकारियों को प्रताड़ित किया जाता है। अदालत की टिप्पणी ने यह संदेश दिया है कि मनमानी और असंगत ट्रांसफर अब न्यायालय की नजर में प्रताड़ना माने जाएंगे, और सरकार को इसका जवाब देना ही होगा।

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