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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।
JABALPUR. 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण से जुड़ी हुई याचिका खारिज हो जाने के बाद भी नियुक्तियों पर रोक लगाने के मामले में महाधिवक्ता कोर्ट में कानून पर स्थगन आदेश स्पष्ट नहीं कर पाए, इसके बाद यह उम्मीद लगाई जा रही है कि इस मामले की अगली सुनवाई में ओबीसी अभ्यर्थियों के लिए बड़ी खुशखबरी सामने आ सकती है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में प्राथमिक शिक्षकों की रुकी हुई नियुक्तियों को लेकर सोमवार (17 फरवरी) को एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गए कि वह जानबूझकर ओबीसी अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित कर रही है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की खंडपीठ ने की। कोर्ट ने सरकार से स्पष्ट जवाब देने को कहा है कि जब किसी कानून पर स्थगन आदेश नहीं है, तो फिर ओबीसी वर्ग की नियुक्तियां क्यों रोकी जा रही हैं।
याचिका खारिज होने के बाद भी रोकी नियुक्तियां
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ताओं ने अदालत के समक्ष यह महत्वपूर्ण तर्क रखा कि याचिका क्रमांक 18105/2021 में पारित एक अंतरिम आदेश (दिनांक 04 अगस्त 2023) का हवाला देकर सरकार ने प्राथमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में ओबीसी वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों की नियुक्ति पर रोक लगा दी थी। हालांकि, इस मामले में हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2025 को इस याचिका को पूरी तरह से निरस्त कर दिया। इसके बावजूद सरकार नियुक्तियों को बहाल नहीं कर रही है, जो कि न्यायिक प्रक्रिया का सीधा उल्लंघन प्रतीत होता है।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने अदालत के सामने यह भी तर्क रखा कि मध्य प्रदेश सरकार 27% ओबीसी आरक्षण के कानून को लागू करने से बचने के लिए एक भ्रामक तर्क पेश कर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ओबीसी के 27% आरक्षण पर किसी भी कोर्ट का स्थगन आदेश मौजूद नहीं है। इसके बावजूद सरकार अलग-अलग कानूनी प्रावधानों की आड़ में इस वर्ग के अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित कर रही है। अधिवक्ताओं का सवाल था कि जब राज्य सरकार अन्य भर्तियों में कुल 60% तक का आरक्षण लागू कर रही है, तो फिर केवल ओबीसी वर्ग के अभ्यर्थियों को ही नियुक्ति से क्यों रोका जा रहा है?
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सरकार की ओर से नहीं आया स्पष्ट जवाब
राज्य सरकार की ओर से पेश महाधिवक्ता ने अपना पक्ष रखते हुए अदालत के सामने शिवम गौतम बनाम मध्य प्रदेश शासन एवं अन्य मामले में पारित 04 मई 2022 के एक अंतरिम आदेश का हवाला दिया। महाधिवक्ता ने दलील दी कि इस आदेश के अनुसार, 50% से अधिक वर्टिकल आरक्षण लागू नहीं किया जा सकता और इसी कारण ओबीसी अभ्यर्थियों की नियुक्ति रोक दी गई। हालांकि, जब हाईकोर्ट ने इस आदेश को विस्तार से पढ़ा, तो पाया कि इसमें ओबीसी वर्ग के 27% आरक्षण को लेकर कोई स्पष्ट रोक नहीं लगाई गई है।
इस पर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता ने राज्य सरकार से सीधा सवाल किया कि जब अन्य सभी भर्तियों में सरकार 60% तक का आरक्षण लागू कर रही है, तो फिर केवल ओबीसी वर्ग के 13% आरक्षण को छोड़कर उसे नियुक्ति क्यों नहीं दी जा रही है? इस सवाल का सरकार की ओर से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया जा सका। हालांकि शासकीय अधिवक्ता ने इस तरह के सभी मामले सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने का हवाला जरूर दिया।
अगली सुनवाई में सरकार को देना होगा स्पष्ट जवाब
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता से जब अदालत ने यह पूछा कि ओबीसी वर्ग के 27% आरक्षण पर स्थगन आदेश कब और किस याचिका में पारित किया गया है, तो वे इस संबंध में कोई स्पष्ट तिथि या आदेश प्रस्तुत नहीं कर सके। इस पर याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को बताया कि याचिका क्रमांक 3668/2022 अब सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर हो चुकी है। इसलिए, इस याचिका में 04 मई 2022 को पारित अंतरिम आदेश अब निष्प्रभावी हो चुका है। हाईकोर्ट ने इस तर्क के बाद सरकार को निर्देशित किया कि वह इस मुद्दे पर विस्तृत और स्पष्ट जवाब प्रस्तुत करे। इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 10 मार्च 2025 निर्धारित की गई है।
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वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने मजबूती से रखा पक्ष
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेंद्र कुमार शाह और रूप सिंह मरावी ने अदालत में पक्ष रखते हुए सरकार के तर्कों को पूरी तरह से भ्रामक और ओबीसी विरोधी नीति करार दिया। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि सरकार जानबूझकर आरक्षण नीति की गलत व्याख्या कर रही है ताकि ओबीसी वर्ग के चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित किया जा सके। इन अधिवक्ताओं ने अदालत से निवेदन किया कि सरकार को स्पष्ट रूप से यह निर्देश दिया जाए कि यदि कोई वैध स्थगन आदेश नहीं है, तो नियुक्तियों को जल्द से जल्द बहाल किया जाए।
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सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर करेगी ओबीसी वर्ग को राहत
अब इस मामले में सरकार को हाईकोर्ट के सामने यह स्पष्ट करना होगा कि ओबीसी वर्ग की नियुक्तियां किस कानूनी आधार पर रोकी गई हैं। इस मामले में फैसला सुनाते समय कोर्ट नहीं है टिप्पणी की है कि इससे जुड़ी जितनी भी याचिकाएं लग जाएं अंतिम निर्णय इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही आना है। इसके साथ ही चीफ जस्टिस ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इन अभ्यर्थियों की जो पिटीशन दायर हो रही हैं उनसे कम से कम पैसे ना लिए जाएं, हालांकि इस पर याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता ने जवाब नहीं दिया। याचिका करता हूं कि अधिवक्ता की ओर से यह कहा गया है कि सरकार इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर इसकी सुनवाई को रुकवा देगी। लेकिन आज भी सुनवाई में कोर्ट का रुख देखकर यह समझ में आ रहा है कि हाइकोर्ट में इस मामले का अंतिम फैसला, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही आएगा। इस पूरे मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च 2025 को होगी, जिसमें सरकार को इस मुद्दे पर विस्तृत स्पष्टीकरण देना होगा।
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