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Jabalpur. मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए ई-अटेंडेंस अनिवार्य करने के मामले में हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। सरकार ने डेटा लीक की आशंकाओं को खारिज कर दिया है। कोर्ट का कहना है 'हमारे शिक्षक एप' में डाटा चोरी की कोई संभावना नहीं है। इसकी अगली सुनवाई 3 दिसंबर को तय की है। शिक्षकों ने एप के कारण डाटा लीक होने की आशंका जताई है।
5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
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शिक्षक ई-अटेंडेंस विवाद जबलपुर में कैसे शुरू हुआ विवाद?
जबलपुर के मुकेश सिंह वरकड़े और सतना के सत्येंद्र तिवारी सहित 27 शिक्षकों ने याचिका लगाई है। इन शिक्षकों ने कहा कि ई-अटेंडेंस अनिवार्य होने से कई व्यावहारिक दिक्कतें बढ़ गई हैं। याचिका में मुख्य आपत्ति हमारे शिक्षक एप (hamare shikshak app) के अनिवार्य इस्तेमाल को लेकर रही। शिक्षकों ने कहा कि एप के बिना हाजिरी नहीं लगती, जिससे नौकरी पर भी असर पड़ सकता है।
नेटवर्क और टेक्निकल दिक्कतों की शिकायत
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि कई स्कूल दूरदराज के क्षेत्रों में चलते हैं। इन इलाकों में मोबाइल नेटवर्क कमजोर होने से एप पर हाजिरी समय पर दर्ज नहीं हो पाती। शिक्षकों ने तर्क दिया कि खराब नेटवर्क के कारण हमारी अटेंडेंस मिस हो जाती है। ऐसी स्थिति में उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का जोखिम भी बढ़ जाता है।
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लोकेशन परमिशन और प्राइवेसी की चिंता
ई-अटेंडेंस के लिए एप को हमेशा लोकेशन ऑन रखना पड़ता है। शिक्षकों ने इसे निजी जीवन और सुरक्षा की दृष्टि से गंभीर मुद्दा बताया। याचिका में कहा गया कि लगातार लोकेशन ट्रैकिंग से निजी डेटा एक्सपोज हो सकता है। शिक्षकों ने आशंका जताई कि इन जानकारियों का दुरुपयोग भी हो सकता है।
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डेटा लीक और साइबर फ्रॉड के आरोप
कुछ याचिकाकर्ता शिक्षकों ने हलफनामे के साथ अपना अनुभव रखा। उन्होंने कहा कि एप डाउनलोड के बाद कुछ मामलों में साइबर फ्रॉड की घटनाएं हुईं। शिक्षकों का दावा है कि एप के बाद संदिग्ध कॉल और ट्रांजैक्शन अलर्ट आने लगे। याचिका में यह भी कहा गया कि यह संयोग नहीं, बल्कि डेटा लीक का संकेत हो सकता है।
सरकार का पक्ष: हमारे शिक्षक एप सुरक्षित
सरकार ने MP High Court में विस्तृत जवाब दाखिल किया। सरकार ने साफ कहा कि ‘हमारे शिक्षक’ एप से डेटा चोरी की कोई संभावना नहीं है। सरकार ने शिक्षकों के साइबर फ्रॉड संबंधी आरोपों को निराधार बताया। जवाब में कहा गया कि एप तय मानकों के साथ डेवलप किया गया है और सुरक्षित है।
हाईकोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ
शिक्षकों की यह याचिका मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की एकलपीठ के समक्ष आई। जस्टिस एमएस भट्टी की अदालत ने पक्षकारों की दलीलें सुनीं। कोर्ट ने सरकार के लिखित जवाब को रिकॉर्ड पर स्वीकार कर लिया। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ई-अटेंडेंस केस की अगली सुनवाई की तारीख तीन दिसंबर तय की गई।
याचिकाकर्ता की तरफ से पैरवी किसने की
शिक्षकों की ओर से अधिवक्ता अंशुमान सिंह ने दलीलें रखीं। उन्होंने नेटवर्क, प्राइवेसी और डेटा सिक्योरिटी के मिलेजुले खतरे पर जोर दिया। पैरवी में तर्क दिया गया कि टेक्नोलॉजी जरूरी है, लेकिन सुरक्षा से समझौता नहीं हो सकता। अदालत से मांग की गई कि ई-अटेंडेंस एप की जरूरत पर पुनर्विचार किया जाए।
एक ही दिन में दूसरा बड़ा मामला भी सुना गया
उसी दिन MP High Cour में पीजी नीट काउंसलिंग से जुड़ी याचिका भी सुनी गई। यह मामला प्रदेश में एमबीबीएस कर चुके छात्रों को पीजी में आरक्षण देने से जुड़ा था।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि मध्यप्रदेश के मूल निवासी छात्रों के साथ भेदभाव हो रहा है। उन्होंने कहा कि अन्य राज्यों में लोकल छात्रों को प्राथमिकता मिलती है, पर यहां व्यवस्था अलग है।
नीट पीजी केस में हाईकोर्ट का रुख
इस याचिका की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की पीठ ने की। पीठ ने मामले की गंभीरता देखते हुए राज्य सरकार और डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन को नोटिस जारी किया।
कोर्ट ने दोनों से आरक्षण पॉलिसी पर विस्तृत जवाब मांगा है। अब अगली सुनवाई में सरकार को अपने नियमों का औचित्य स्पष्ट करना होगा।
आगे क्या अहम सवाल खड़े होते हैं
ई-अटेंडेंस केस में बड़ा सवाल टेक्नोलॉजी और प्राइवेसी के संतुलन का है। क्या डिजिटल मॉनिटरिंग के नाम पर कर्मचारियों की निजी आजादी प्रभावित हो रही है, यह मुद्दा केंद्र में है।
दूसरी तरफ, नीट पीजी वाला मामला स्थानीय छात्रों के अधिकार और अवसर से जुड़ा है। हाईकोर्ट के अंतिम फैसले से दोनों नीतियों की दिशा पर बड़ा असर पड़ेगा।
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