विधायक निर्मला सप्रे और विधानसभा अध्यक्ष को HC का नोटिस, चीफ जस्टिस बोले- क्या विपक्ष याचिका नहीं लगा सकता?

बीना से कांग्रेस विधायक निर्मला सप्रे को हाई कोर्ट से झटका लगा है। मामला दल-बदल के नियमों से जुड़ा है। हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और सप्रे को नोटिस जारी किया है।

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Neel Tiwari
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JABALPUR. मध्य प्रदेश की बीना विधानसभा सीट से विधायक निर्मला सप्रे की मुश्किलें एक बार फिर बढ़ गई हैं। नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के जरिए हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इसपर शुक्रवार, 07 नवंबर को जबलपुर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। वहीं कोर्ट ने मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर और विधायक निर्मला सप्रे को नोटिस जारी किया है।

विधानसभा चुनाव 2023 में निर्मला सप्रे ने कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीता था। इसके बाद, उन्होंने कांग्रेस छोड़कर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मौजूदगी में भाजपा जॉइन कर ली थी।

इस पर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने अध्यक्ष के पास जाकर उनकी विधायकी खत्म करने की याचिका लगाई थी। लेकिन 16 महीने गुजरने के बाद भी अध्यक्ष ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया। इस देरी को लेकर सिंघार हाईकोर्ट पहुंचे थे।

महाधिवक्ता की दलील को कोर्ट ने किया खारिज

चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ के समक्ष आज इस मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने याचिका पर आपत्ति ली। उन्होंने कहा कि यह याचिका विरोधी दल के नेता के जरिए दायर की गई है।

इस पर चीफ जस्टिस ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर विपक्ष का नेता याचिका लगाता है, तो क्या इस पर सुनवाई नहीं हो सकती? ऐसे में कोर्ट ने महाधिवक्ता की यह आपत्ति खारिज कर दी।

महाधिवक्ता से  यह भी पूछा गया कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पाडी कौशिक रेड्डी बनाम तेलंगाना राज्य और केशम बनाम मणिपुर राज्य मामलों में साफ कहा है कि दल-बदल याचिकाओं का निपटारा तीन महीने में होना चाहिए। कोर्ट ने आगे पूछा, तो फिर 16 महीने बीत जाने के बाद भी अध्यक्ष ने फैसला क्यों नहीं किया?

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संविधान और दल-बदल कानून का हवाला

उमंग सिंघार की ओर से उनके वकील विभोर खंडेलवाल और जयेश गुरनानी ने केस लड़ा। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष का यह तरीका सुप्रीम कोर्ट के तय किए हुए कानूनी सिद्धांतों के विपरीत है।

उन्होंने दलील दी कि भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची के पैरा 2(1)(क) और अनुच्छेद 191(2) के अनुसार यदि कोई विधायक अपनी पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है, तो उसकी विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त हो जाती है।

अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि यदि कोई जनप्रतिनिधि दल बदलने के बाद फिर से विधायक रहना चाहता है, तो उसे दोबारा चुनाव लड़ना आवश्यक है।

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कोर्ट ने नोटिस जारी कर मांगा जवाब

सभी तर्कों को सुनने के बाद हाई कोर्ट ने अध्यक्ष और विधायक निर्मला सप्रे दोनों को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 18 नवंबर 2025 को होगी।

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दोबारा चुनाव लड़ना चिंता का विषय

गौरतलब है कि रामनिवास रावत ने शिवपुरी जिले की विजयपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। इसके बाद रामनिवास रावत ने भी दोबारा चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे।

ऐसे में बीना विधायक निर्मला सप्रे यदि दोबारा चुनाव लड़ती हैं तो इसका परिणाम क्या होगा? इसे लेकर उनके राजनीतिक भविष्य की चिंता बढ़ गई है।

अब उमंग सिंघार ने कही ये बात

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा कि विधायक जो दल बदलते हैं, उन्हें चुनाव फिर से लड़ना पड़ता है। वे पिछले डेढ़ साल से विधायिका निर्मला सप्रे के मामले में न्याय की मांग कर रहे थे। नियम के अनुसार, विधानसभा अध्यक्ष को 90 दिनों में फैसला लेना होता है। हाई कोर्ट ने 18 तारीख को सुनवाई टाल दी और अध्यक्ष से जवाब मांगा है। उन्हें पूरा विश्वास है कि न्याय मिलेगा।

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