फर्जी कॉलेजों की मान्यताः मूल फाइलें हाईकोर्ट ने की तलब, छात्रों को मिली राहत

मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की फर्जी मान्यता से जुड़े मामले में हाईकोर्ट ने सख्त कदम उठाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार और नर्सिंग काउंसिल से 18 मार्च तक उन कॉलेजों की मूल फाइलें प्रस्तुत करने को कहा है, जो नियमों की अनदेखी कर मान्यता प्राप्त कर चुके थे।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश में नर्सिंग कॉलेजों की फर्जी मान्यता से जुड़े मामले में हाईकोर्ट की स्पेशल बेंच ने एक बार फिर कड़ा रुख अपनाया है। लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस अचल कुमार पालीवाल की खंडपीठ ने सरकार और नर्सिंग काउंसिल को 18 मार्च तक उन सभी अपात्र (अनसूटेबल) संस्थानों की मान्यता से जुड़ी मूल फाइलें प्रस्तुत करने का आदेश दिया है, जिन्हें नियमों की अनदेखी कर 'सूटेबल' दिखाते हुए मान्यता दी गई थी। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि इन फाइलों की जांच के आधार पर ही उन अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी, जिन्होंने इन अपात्र कॉलेजों को मान्यता देने में भूमिका निभाई। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

अनसूटेबल कॉलेजों के छात्रों के भविष्य की चिंता

जनहित याचिका पर हुई सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता विशाल बघेल की ओर से एक अतिरिक्त आवेदन हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिसमें यह चिंता जताई गई कि प्रदेश में सैकड़ों अनसूटेबल नर्सिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले हजारों छात्रों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। 

याचिकाकर्ता के अनुसार, सीबीआई जांच में इन कॉलेजों को अपात्र घोषित किया जा चुका है, लेकिन यहां पढ़ रहे छात्र चार सालों से अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। छात्रों ने अपनी फीस और समय दोनों इस शिक्षा प्रणाली में लगा दिए, लेकिन अब जब कॉलेजों की मान्यता पर सवाल उठ रहे हैं, तो उनके भविष्य को लेकर कोई ठोस समाधान नहीं निकल पा रहा है। 

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छात्रों को सूटेबल कॉलेज में ट्रांसफर करने की मांग

याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से यह अनुरोध किया कि इन छात्रों को तुरंत किसी सूटेबल (योग्य) नर्सिंग कॉलेज में स्थानांतरित किया जाए, ताकि उनकी शिक्षा और डिग्री सुरक्षित रह सके। हाईकोर्ट ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह अगली सुनवाई में इस मुद्दे पर अपना विस्तृत पक्ष प्रस्तुत करे। इससे यह उम्मीद जगी है कि आने वाली सुनवाई में छात्रों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए कोई ठोस फैसला लिया जा सकता है।

नर्सिंग काउंसिल के CCTV फुटेज गायब, जांच के आदेश

नर्सिंग फर्जीवाड़े की जांच के दौरान एक और महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब यह सामने आया कि भोपाल स्थित नर्सिंग काउंसिल के दफ्तर में लगे सीसीटीवी कैमरों के डीवीआर से फुटेज गायब हो गए हैं। हाईकोर्ट ने इससे पहले पुलिस को आदेश दिया था कि नर्सिंग काउंसिल दफ्तर के सीसीटीवी फुटेज को रिकवर कर कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए। लेकिन जब इस आदेश का पालन नहीं हो सका, तो भोपाल साइबर पुलिस ने अपनी असमर्थता जाहिर कर दी और कहा कि डीवीआर में से महत्वपूर्ण फुटेज डिलीट हो चुके हैं, जिन्हें रिकवर नहीं किया जा सकता।

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हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

इस पर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए निर्देश दिया कि अब नर्सिंग काउंसिल दफ्तर के आसपास लगे अन्य सीसीटीवी कैमरों के फुटेज को खंगाला जाए। कोर्ट ने पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिए कि इन फुटेज की गहराई से जांच की जाए और पता लगाया जाए कि आखिर फुटेज डिलीट कैसे हुए और इसके पीछे कौन जिम्मेदार है। इस मामले में जांच के बाद बड़ा खुलासा होने की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि अगर फुटेज जानबूझकर मिटाए गए हैं, तो यह दर्शाता है कि घोटाले में शामिल लोगों ने सबूत नष्ट करने का प्रयास किया है।

अब बिना 'प्रोविजनल' शब्द के मिलेगी नई मार्कशीट

हाईकोर्ट ने इस पूरे प्रकरण में हजारों नर्सिंग छात्रों को बड़ी राहत देते हुए आदेश दिया है कि उन्हें नई मार्कशीट जारी की जाए, जिसमें ‘प्रोविजनल’ शब्द का उल्लेख न हो। दरअसल, नर्सिंग घोटाले की जांच के चलते राज्य में पढ़ रहे कई छात्रों को सिर्फ प्रोविजनल मार्कशीट दी गई थी। लेकिन इस प्रोविजनल मार्कशीट के कारण कई छात्रों को दूसरे राज्यों में उच्च शिक्षा या नौकरी के लिए भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था।

छात्रों की इस परेशानी को समझते हुए हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि अब उन्हें नई, पूर्ण रूप से वैध मार्कशीट प्रदान की जाए। इस फैसले से उन छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा, जो अन्य राज्यों में पढ़ाई या नौकरी के लिए आवेदन कर रहे थे और प्रोविजनल मार्कशीट के कारण अटक रहे थे। हाईकोर्ट का यह आदेश छात्रों के करियर के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि इससे वे बिना किसी बाधा के अपनी शिक्षा और नौकरी से जुड़े अवसरों का लाभ उठा सकेंगे।

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अगली सुनवाई में और कड़े फैसलों की उम्मीद

हाईकोर्ट ने इस पूरे घोटाले को बेहद गंभीरता से लेते हुए सरकार, नर्सिंग काउंसिल और मेडिकल यूनिवर्सिटी को 18 मार्च तक सभी आवश्यक दस्तावेज कोर्ट में पेश करने का अंतिम मौका दिया है। इसके बाद कोर्ट उन अधिकारियों और संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दे सकता है, जो इस घोटाले में लिप्त पाए जाएंगे। जानकारों का मानना है कि इस मामले में अगली सुनवाई बेहद अहम होगी, क्योंकि इसके बाद ही यह तय होगा कि दोषी संस्थानों और अधिकारियों पर क्या कानूनी कार्रवाई की जाएगी। हाईकोर्ट की सख्ती से साफ है कि अब फर्जी मान्यता दिलाने वाले अफसरों और कॉलेजों पर शिकंजा कसने का वक्त आ चुका है।

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