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BHOPAL. मध्यप्रदेश में अब देश की रक्षा में तैनात रहने वाले फौजियों की जमीन भी सुरक्षित नहीं हैं। सीमा पर तैनाती का फायदा उठाकर कहीं खेतों पर कब्जे की कोशिश हो रही है। कहीं राजस्व अधिकारियों से साठगांठ कर लीज को कानूनी उलझन में डालने की साजिश रची जा रही है।
राजस्व अधिकारी सैनिक कल्याण बोर्ड द्वारा की जा रही सिफारिशों को अनदेखा कर रहे हैं। इन साजिशों के बीच सेना के जवान देश और अपनी जमीनों की रक्षा का दोहरा तनाव झेलने मजबूर हैं।
सेना के जवानों की जमीनों को हथियाने कैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। ताजा मामला शाजापुर जिले से सामने आया है। शाजापुर की कालापीपल तहसील के जाबड़िया भील के किसान परिवार का पुत्र दिनेश कुमार परमार असम रायफल्स में तैनात हैं।
वह मणिपुर राज्य में अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। उनकी और उनके भाई अशोक कुमार परमार की जमीन इनदिनों गांव के ही कुछ लोगों के निशाने पर है। उनके खेतों के बीच से रास्ता बनाने के बहाने कब्जा जमाने की साजिश की जा रही है। इसमें तहसीलदार संदीप श्रीवास्तव की भूमिका पर भी सवालों के दायरे में है।
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गलत आदेश पर एसडीएम का स्टे
दिनेश कुमार ने मणिपुर में तैनाती के दौरान अपनी यूनिट के माध्यम से शाजापुर जिला प्रशासन से शिकायत की। इसके बावजूद तहसीलदार संदीप श्रीवास्तव ने 17 दिसंबर 2025 को उनकी जमीन से रास्ता देने का आदेश जारी किया।
जमीन पर कब्जे की खबर मिलते ही दिनेश कुमार छुट्टी लेकर गांव लौटे। उन्होंने दस्तावेजों के साथ एसडीएम कोर्ट में अपील की। एसडीएम ने तहसीलदार के आदेश पर रोक लगा दी, लेकिन कब्जे की कोशिशें जारी हैं।
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रास्ते की आड़ में कब्जे की आशंका
असम रायफल्स के जवान ने कहा तहसीलदार ने पड़ोस के किसानों को रास्ता देने के नाम पर जो आदेश दिया था वह नियम विरुद्ध है। इन किसानों के आने-जाने के लिए अलग से सरकारी रास्ता है। दशकों से ये किसान इसी रास्ते से गुजरते रहे हैं।
अलग रास्ता होने के बावजूद उनकी जमीन के बीच से रास्ता मांगा जा रहा है। ऐसा होने पर उनकी दो-तीन बीघा जमीन चली जाएगी। जब पहले से ही निकासी की व्यवस्था है तो तहसीलदार द्वारा कैसे निजी जमीन से रास्ता दिया जा सकता है। इस मामले में जानकारी के लिए कई बार कोशिश की गई। लेकिन कालापीपल तहसीलदार संदीप श्रीवास्तव ने कॉल रिसीव नहीं किया।
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नियम से हटकर खेत से दिया रास्ता
दिनेश सिंह परमार के खेत के नजदीक विक्रम सिंह पंवार की जमीन है। विक्रम सिंह के खेत सरकारी जमीन यानी कांकड़ से सटे हैं। यहीं से रास्ता ग्राम मांदलाखेड़ी के मुख्य मार्ग से जुड़ा है। विक्रम सिंह पहले भी कई बार असम रायफल्स के जवान दिनेश सिंह और उसके परिवार के खेत से रास्ता बनाने का प्रयास कर चुका है।
इस बार विक्रम ने तहसीलदार संदीप श्रीवास्तव को आवेदन किया था। तहसीलदार ने पहले से सरकारी जमीन से रास्ता होने के बावजूद 17 दिसम्बर को बिना रिकॉर्ड की जांच किए आदेश दिया। ऐसे मामलों में नियमानुसार निजी भूमि से रास्ता नहीं दिया जा सकता था। नियम विरुद्ध होने के कारण एसडीएम कोर्ट ने उसी दिन तहसीलदार के आदेश पर स्टे दिया।
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लेफ्टि. कर्नल का होम स्टे हड़पने की साजिश
सेना के जवानों की जमीन हड़पने की साजिश का दूसरा मामला हिल स्टेशन पचमढ़ी का है। यहां आर्मी एज्युकेशन कोर से सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल बलवंत राव ने मिशनरी संस्था की लीज की जमीन को 1988 में खरीदा था। जिसे बाद में उन्होंने अपने नाम ट्रांसफर कराया। तब से वे इस जमीन पर होम स्टे चला रहे हैं। अब इस होम स्टे को कुछ लोग हड़पना चाहते हैं। इसके लिए राजस्व अधिकारियों से साठगांठ की जा रही है।
यही वजह है कि नर्मदापुरम कमिश्नर के आदेश के बावजूद उनकी लीज के नवीनीकरण का मामला अपर कलेक्टर कोर्ट में अटका हुआ है। लेफ्टिनेंट कर्नल बलवंत राव शारीरिक रूप से चलने- फिरने में असमर्थ हैं। कई तरह की बीमारियों से पीढ़ित हैं। इसके बावजूद उन्हें अपर कलेक्टर कोर्ट में पेशी के नाम पर बार- बार तलब किया जा रहा है। उनकी पुत्री समीरा नर्मदापुरम कलेक्टर से भी इसकी शिकायत कर चुकी हैं।
होम स्टे की लीज रिन्युअल में अटका रहे रोड़ा
सेना की जमीन पर अवैध बसाहट: लीज नवीनीकरण के लिए साल भर पहले से सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल का आवेदन राजस्व न्यायालय में अटका हुआ है। अपर कलेक्टर द्वारा नवीनीकरण रद्द करने के आदेश को नर्मदापुरम कमिश्नर कोर्ट खारिज कर चुका है। कमिश्नर कोर्ट ने आदेश के बाद अपर कलेक्टर कार्यालय से नोटिस जारी किया।
10 सितम्बर को सुनवाई के लिए बुलाया गया था। तब से महीने में दो- दो बार पेशी पर आने मजबूर किया जा रहा है। अब तक अपर कलेक्टर राजीव रंजन पांडे लेफ्टिनेंट कर्नल बलवंत राव को सात बार पेशी पर बुला चुके हैं। 11 सितंबर को आखिरी पेशी पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। लेकिन तीन माह बीतने पर भी आदेश जारी नहीं किया गया है।
अपर कलेक्टर पांडे मौखिक रूप से आदेश जारी करने से इंकार कर चुके हैं। इसके तहत बुजुर्ग, अशक्त सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल की लीज की जमीन को हड़पने की साजिश के तहत उन्हें महीनों से चक्कर कटवाए जा रहे हैं। जब अपर कलेक्टर से सुनवाई पूरी होने के बावजूद आदेश जारी न करने पर सवाल किया गया, तो वे मामले पर अनभिज्ञता जताते नजर आए। हालांकि, वे इसी मामले में सात बार सुनवाई कर चुके हैं।
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इसलिए गंभीर हैं ये मामले
सेना की जमीन पर कब्जा: हाल ही में लोकसभा में सेना की जमीनों पर अतिक्रमण का मामला उठ चुका है। इस पर केंद्र सरकार ने देश भर में सेना की 11 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन पर कब्जे की बात स्वीकार की है। वहीं मध्य प्रदेश में सेना के लिए आरक्षित 1733 एकड़ से अधिक जमीन पर अतिक्रमण पाया गया है।
देश के किसी भी राज्य के मुकाबले मध्य प्रदेश में सेना की सबसे अधिक जमीन अतिक्रमण की चपेट में है। इस मसले को देखते हुए सेना के जवान और पूर्व सैनिकों की जमीन पर कब्जे की बात अहम हो जाती है।
सेना के जवानों को हथियाने के मामले मध्य प्रदेश में लगातार सामने आ रहे हैं। लेकिन प्रशासन और राजस्व अधिकारी इस पर संजीदगी नहीं दिखा रहे। ऐसे में सवाल ये है कि देश के लिए जान को जोखिम में डालने वाले सैनिकों की जमीनों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन उठाएगा।
1. शाजापुर जिले में अपनी जमीन को बचाने के लिए अर्द्धसैनिक बल असम रायफल्स का जवान अधिकारियों के चक्कर काट रहा है।
2. बुजुर्ग लेफ्टिनेंट कर्नल अपने होम स्टे के नवीनीकरण के लिए भटक रहे हैं।
3. गुना जिले की विनायकखेड़ी में ऑपरेशन सिंदूर में शामिल रह चुके जवान की जमीन पर भी कब्जा हो चुका है।
4. मुरैना जिले के जौरा खुर्द में बिहार रेजिमेंट की अल्फा कंपनी में तैनात सैनिक रामनिवास की जमीन को हड़पने की साजिश भी हो चुकी है।
5. नीमच जिले में फौज के जवान मुकेश राठौर की जमीन पर भी कब्जा कर लिया गया। जम्मू कश्मीर में तैनात सैनिक को अब देश के साथ अपनी जमीन की सुरक्षा की भी चिंता है।
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