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Photograph: (the sootr)
BHOPAL.मध्यप्रदेश की 23 हजार पंचायतों में शिकायतों पर ‘सरहद’ खींचने की मांग उठी है। भोपाल में हुई पंचायत प्रतिनिधियों की हालिया कार्यशाला में सरपंचों ने एक प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव पारदर्शिता, जवाबदेही और नागरिक अधिकारों को पीछे धकेलता है।
सरपंचों का कहना है कि सीएम हेल्पलाइन और आरटीआई में बाहरी लोगों की शिकायतें रोकी जाएं। क्योंकि पंचायत क्षेत्र के बाहर का व्यक्ति उनके कामकाज पर सवाल उठाए, यह उन्हें मंजूर नहीं। विभागीय आंकड़ों के अनुसार अभी पंचायतों में 50 हजार से ज्यादा शिकायतें ऐसे लोगों ने की हैं, जो उस गांव के निवासी नहीं हैं।
यह मांग उठते ही कई सवाल खड़े हो गए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी मांग आजादी पर जंजीर डालने जैसी है। गांवों में शिकायत करने वाले अक्सर स्थानीय राजनीति, गुटबाज़ी, दबाव और डर के कारण सामने नहीं आते। कई बार सच्चाई तक पहुंचने का रास्ता किसी बाहर के व्यक्ति की शिकायत से ही खुलता है। ऐसे में बाहरी शिकायत रोकने का प्रस्ताव लोकतांत्रिक ढांचे को संकुचित करने का प्रयास है।
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आरटीआई पर उठाए सवाल
सरपंचों ने आरटीआई(सूचना का अधिकार अधिनियम) को भी पंचायत सीमा के भीतर सीमित रखने की बात कहकर अधिकार को चुनौती दी है। उनका कहना है कि पंचायत की जानकारी सिर्फ वही मांगे, जो पंचायत का हिस्सा हो। यह विचार आरटीआई की बुनियादी भावना पर हमला है। यह सरकार की उस प्रतिबद्धता को भी धक्का देता है जिसके सहारे ग्रामीण विकास में पारदर्शिता की बात कही जाती है।
विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस मांग पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है। सभी पहलुओं पर विचार किया जाएगा। बड़ा सवाल यह है कि क्या यह प्रस्ताव लोकतंत्र को मजबूत करेगा। या ग्रामीण व्यवस्था को और अधिक धुंधला और संदिग्ध बनाएगा?
अध्यक्ष बोले- सभी काम ऑनलाइन
‘द सूत्र’ ने इस मुद्दे पर सरपंच संघ प्रदेश अध्यक्ष राजवीर तोमर से बात की। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ बाहरी लोग मामूली पैसों के लालच में मोहरा बनकर फर्जी शिकायतें करते हैं।
अनावश्यक रूप से पंचायत प्रतिनिधियों को निशाना बनाया जाता है। ‘बाहरी व्यक्ति’ की परिभाषा पूछने पर तोमर ने कहा कि क्षेत्र का नहीं होने वाला व्यक्ति पंचायत के कामकाज को कैसे समझ सकता है।
जब उनसे पूछा गया कि यह मांग लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है, तो उनका जवाब था कि पंचायतों के सारे काम ऑनलाइन हैं। किसी को जानकारी चाहिए तो वहां से देख सकता है। वर्क ऑर्डर से लेकर भुगतान तक सब कुछ ऑनलाइन है।
पंचायतों में काम अटके
इधर, इसी कार्यशाला में पंचायत व्यवस्था की दूसरी बड़ी हकीकत भी सामने आई है। प्रदेश की पंचायतों में करीब 70 हजार विकास कार्य नियमों की उलझनों में अटके पड़े हैं। सरपंचों का कहना है कि 5वें और 15वें वित्त आयोग से मिलने वाली राशि पर इतने प्रतिबंध लगा दिए गए हैं कि जरूरी काम कराना मुश्किल हो गया है। छोटी पुलिया हो, गांव का सीसी रोड हो, तालाब हो या स्टॉप डेम... सब कुछ फाइलों में धूल खा रहा है।
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फंड नहीं होने से आक्रोश
इन सबके बीच जिला पंचायत और जनपद पंचायत अध्यक्षों में भी नाराजगी है। सभी 55 जिला पंचायत और 313 जनपद पंचायत अध्यक्ष मानते हैं कि बदलावों ने उन्हें हाशिये पर धकेल दिया है।
हाल ही में विभाग के तीन दिवसीय कार्यक्रम के बाद इन पदाधिकारियों की ऑनलाइन बैठक हुई, जिसमें उन्होंने बड़े आंदोलन की तैयारी का संकेत दिया है। जिला पंचायत संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष अरविंद धाकड़ ने कहा कि हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि बेहतर होगा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए।
सिर्फ सरपंच के चुनाव कराए जाएं। उनका कहना है कि पहले जिला पंचायत सीईओ और जनपद पंचायत सीईओ की ‘सीआर’ लिखने का अधिकार छीना गया। अब बजट भी सीधा पंचायत को दिया जा रहा है। नतीजा यह कि जिले और जनपद स्तर के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास विकास कार्य कराने के नाम पर नाममात्र का भी फंड नहीं बचा है।
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