70 साल बाद भी आत्मनिर्भर नहीं एमपी की पंचायतें, करोड़ों खर्च के बावजूद विकास क्यों अटका?

मध्य प्रदेश में पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास चल रहे हैं। हालात अभी भी संतोषजनक नहीं हैं। राज्य और केंद्र से करोड़ों की सहायता मिल रही है। फिर भी पंचायतों को विकास में बड़ी सफलता नहीं मिल रही।

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Ramanand Tiwari
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BHOPAL. केंद्र और राज्य सरकारें गांवों को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दे रही हैं। मध्य प्रदेश में भी कई योजनाएं चल रही हैं। हालांकि, नतीजे संतोषजनक नहीं हैं। प्रदेश की हजारों पंचायतें आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

MP की पंचायतें क्यों पिछड़ीं?

मध्य प्रदेश के गठन को 70 साल हो चुके हैं। 23 हजार पंचायतों में से कोई भी अपनी आय से संचालित नहीं हो रही। हर साल सड़कों, नालियों, पानी, भवन और सामुदायिक सुविधाओं पर करोड़ों खर्च होते हैं। फिर भी हालात नहीं बदलते। इसके विपरीत, महाराष्ट्र की माण और हिंजवाड़ी पंचायतें 10-12 करोड़ की वार्षिक कमाई कर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं।

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हिवरे बाजार पंचायत: देश का रोल मॉडल

अहमदनगर की हिवरे बाजार पंचायत अपने विकास मॉडल के लिए देशभर में चर्चित है। यह पंचायत अपनी आय से गांव के विकास कार्य चलाती है। यहां करोड़पति परिवारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। MP की पंचायतों के लिए यह मॉडल सीखने योग्य है।

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करोड़ों का बजट, फिर भी हालात जस के तस

पंचायतों को हर साल राज्य और केंद्र से हजारों करोड़ दिए जाते हैं। 2025-26 में ग्रामीण विकास विभाग के लिए 19,050 करोड़ का प्रावधान किया गया। पंचायत विभाग के लिए 13,279 करोड़ का प्रावधान किया गया। इसके बावजूद कई पंचायतें न्यूनतम अधोसंरचना मानकों को पूरा नहीं कर पा रही हैं।

MP के मॉडल गांव: उम्मीद की किरण

प्रदेश की बिलकिसगंज और मुरवारा पंचायतें उन्नत ग्राम पंचायत विकास योजना के तहत विकसित हो रही हैं। बिलकिसगंज सालाना 7-8 लाख रुपए का राजस्व कमाती है। मुरवारा ब्याज से जुटाई गई राशि से कई कार्य कर चुकी है। 

पंचायत राज विभाग: आत्मनिर्भरता पर फोकस

पंचायत राज निदेशक छोटे सिंह के अनुसार, पंचायतों को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास जारी हैं। लेकिन, कितनी पंचायतें वास्तव में आत्मनिर्भर बनीं इसका स्पष्ट रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। अधिकांश पंचायतें अभी सिर्फ सामान्य कार्यों तक सीमित हैं।

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आदर्श ग्राम योजना की विफलता

सांसदों द्वारा गोद लिए गए कई गांव भी अपेक्षित विकास नहीं कर पाए। इन गांवों में सड़क, नाली और शौचालय जैसे बेसिक काम तो हुए। लेकिन, कई जगह 75% शौचालय जर्जर हो गए। अब इन आदर्श गांवों पर कोई खास ध्यान भी नहीं दिया जा रहा।

विशेषज्ञों ने बताए सुधार के उपाय 

  1. हर पंचायत का 10 वर्षीय मास्टर प्लान बने। 
  2. जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की जवाबदेही तय हो। 
  3. सरपंचों को अधिक अधिकार और जिम्मेदारी दी जाए। 
  4. पंचायत सचिवों का स्थायी निवास पंचायत में हो। 
  5. कागजी निगरानी की जगह मैदानी स्तर पर वास्तविक निगरानी हो। 
  6. सामाजिक अंकेक्षण को पारदर्शी बनाया जाए। 
  7. भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ी पर कड़ी कार्रवाई हो। 
  8. आत्मनिर्भर पंचायतों को प्रोत्साहन बजट दिया जाए।

विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ सुधार लागू कर स्थिति में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। 

आत्मनिर्भर पंचायत की दिशा में कदम

भोपाल में 24–26 नवंबर को आत्मनिर्भर पंचायत समृद्ध मध्यप्रदेश पर तीन दिवसीय कार्यशाला आयोजित की जा रही है। इसमें त्रि-स्तरीय पंचायतों के जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। कार्यशाला में स्वनिधि से समृद्धि, वाटरशेड परियोजना, पेयजल, स्वच्छता, पीएम आवास, पीएम सड़क और पेसा ग्राम सभाओं की स्थिति पर चर्चा होगी।

2000 से अधिक प्रतिनिधि होंगे शामिल

इस कार्यशाला में राज्यभर से 2000 से अधिक अधिकारी और जनप्रतिनिधि शामिल होंगे। जिला पंचायत अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सीईओ, जनपद अध्यक्ष और सरपंच इसमें भाग लेंगे।

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सक्षम और आत्मनिर्भर पंचायतें

मुख्य लक्ष्य पंचायतों को प्रशासनिक, वित्तीय और सामुदायिक स्तर पर मजबूत बनाना है। डिजिटल मॉनिटरिंग, वित्तीय प्रबंधन, सामाजिक अंकेक्षण पर ध्यान होगा। राष्ट्रीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर भी फोकस होगा। सरकार का उद्देश्य है पंचायतें योजनाओं का केंद्र न बनें। पंचायतें अपने संसाधनों से विकास करने वाली इकाइयां बनें।

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