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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ जबलपुर ने पुलिस विभाग के सामने खड़ी एक अनूठी चुनौती को सामने रखा है। कोर्ट ने सोशल मीडिया और मोबाइल का नशा (Intoxication) और इसके दुष्परिणामों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने कहा है कि ड्यूटी के दौरान मोबाइल-आधारित गतिविधियाँ पुलिस कर्मियों में अनुशासनहीनता और कार्यक्षमता की गिरावट का कारण बन रही हैं।
ग्वालियर के पुलिसकर्मी से जुड़ा था मामला
ग्वालियर के बंगला नंबर 16 में गार्ड ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी को शराब के नशे की स्थिति में सोते पाए जाने के आरोप में जांच के बाद अनिवार्य सेवानिवृत्ति (compulsory retirement) दिया गया था। उच्च न्यायालय पहुंचे याचिकाकर्ता का तर्क था कि विभागीय जांच में शराब के प्रभाव की पुष्टि केवल गंध (smell test) और डॉक्टर की रिपोर्ट पर आधारित थी, जबकि ब्रीथ एनालाइजर से नशे का परीक्षण नहीं हुआ। इस मामले में विभागीय जांच के बाद रिट कोर्ट में भी राहत की मांग की गई थी, लेकिन पुलिसकर्मी को वहां से भी राहत नहीं मिली। इसके बाद वह उच्च न्यायालय पहुंचा।
पुलिसकर्मी को नहीं मिली राहत
उच्च न्यायालय की डिवीजनल बेंच ने भी पिछले आदेशों को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में किसी कर्मचारी का नशे की हालत में ड्यूटी करना एक बहुत गंभीर मामला है। जब एक पुलिसवाला खुद शराब पीकर या नशे में काम करता है, तो इससे कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है और उसकी ड्यूटी में बड़ी लापरवाही होती है, जिससे कई लोगों की सुरक्षा दाँव पर लग जाती है। इसलिए, ऐसे आचरण को सख्ती से देखना जरूरी है। याचिकाकर्ता को जो अनिवार्य सेवानिवृत्ति (Compulsory Retirement) की सजा दी गई है, वह उसके किए गए अपराध के हिसाब से सही है।
सोशल मीडिया की लत को रोकना जरूरी
जबलपुर हाइकोर्ट के जस्टिस आनंद पाठक और जस्टिस पुष्पेंद्र यादव की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस विभाग में अन्य प्रकार का नशा, यानी मोबाइल और सोशल मीडिया की लत भी व्याप्त है। उन्होंने कहा कि यह देखा जाता है कि आजकल बंगला ड्यूटी, कोर्ट ड्यूटी सहित कानून-व्यवस्था की वह ड्यूटी जहां जहां बैठकर निगरानी का काम करना होता है, वहां पुलिस कर्मियों को अपेक्षित सतर्कता बरतनी होती है। लेकिन उन्हें मोबाइल और सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए देखा जाता है। इससे अनुशासनहीनता बढ़ती है, कार्यों में लापरवाही आती है और कभी-कभी सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक क्लिप्स सार्वजनिक रूप से वायरल हो जाते हैं, जो विभाग की छवि को खराब करते हैं। कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण केंद्रों में संवेदनशीलता (sensitization) कार्यक्रम चलाने चाहिए, तथा ड्यूटी अवधि में सोशल मीडिया उपयोग पर निगरानी और नियंत्रण का मैकेनिज्म विकसित करना चाहिए।
हाईकोर्ट ने बताई नियंत्रण की राह
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस आदेश की प्रति डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस मध्य प्रदेश सहित एडीजीपी (एडमिनिस्ट्रेशन) और एडीजीपी (ट्रेनिंग) भोपाल को ऑपरेशन किए जाने के निर्देश के साथ कहा कि इस मामले में पुलिस को नीति निर्धारित करनी चाहिए। पुलिस विभाग को स्पष्ट दिशा-निर्देश देना चाहिए कि ड्यूटी के दौरान मोबाइल और सोशल मीडिया उपयोग किन सीमाओं में हो सकता है। इसके साथ ही गार्ड ड्यूटी, कोर्ट ड्यूटी आदि में मोबाइल उपयोग की निगरानी और उपयोग के समय, स्थान और प्रकार पर रोक लगानी चाहिए। कोर्ट ने पुलिस विभाग को प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने का सुझाव देते हुए कहा कि प्रशिक्षण केंद्रों में "ड्यूटी एवं सोशल मीडिया" विषय पर कार्यशालाएं और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं। साथ ही अनियमित उपयोग के लिए स्वरूप दंड या चेतावनी दी जाए और उसी तरह अनुशासनहीनता से दूर रहने वालों को प्रोत्साहन दिया जाए।
पुलिस विभाग का पर भी डिजिटल युग की चुनौतियां
उच्च न्यायालय की यह टिप्पणी सिर्फ एक याचिका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज के उस युग की चुनौतियों को भी उजागर करती है, जहाँ डिजिटल आदतें और सोशल मीडिया पर अधिक समय बिताने से अनुशासन और ड्यूटी पैटर्न को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। पुलिसकर्मियों को न केवल नियमों का पालन करना चाहिए, बल्कि समय और स्थान का बोध भी होना चाहिए कि कब मोबाइल का उपयोग किया जाए और कब नहीं, ताकि सुरक्षा और सार्वजनिक विश्वास दोनों का संतुलन बना रहे। उच्च न्यायालय ने इस आदेश की प्रति DGP सहित अन्य आला अधिकारियों को भेजते हुए इस पर चिंतन करने का निर्देश दिया।