हृदय रोग और मधुमेह के मरीजों के लिए दवाओं व डॉक्टरों की भारी कमी, प्रदेश में रोगियों की संख्या बढ़ी

राज्य में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष के अंत तक प्रदेश सरकार का लक्ष्य 26 लाख उच्च रक्तचाप और 15 लाख मधुमेह रोगियों की पहचान करना है।

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Reena Sharma Vijayvargiya
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MP News : मध्यप्रदेश में हृदय रोग और मधुमेह से पीड़ित मरीजों के लिए आवश्यक दवाओं और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। वर्तमान में राज्य में करीब 18 लाख से अधिक लोग उच्च रक्तचाप और 10.67 लाख से ’यादा मधुमेह से जूझ रहे हैं। यह संख्या प्रदेश के स्वास्थ्य तंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती बन चुकी है।

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मधुमेह और उच्च रक्तचाप के मरीजों की संख्या में निरंतर वृद्धि

राज्य में मधुमेह और उच्च रक्तचाप के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार,वर्ष के अंत तक प्रदेश सरकार का लक्ष्य 26 लाख उ‘च रक्तचाप और 15 लाख मधुमेह रोगियों की पहचान करना है। यह बढ़ती समस्या सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय बनी हुई है।

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दवाओं की कमी से मरीजों को हो रही परेशानी

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में दवाओं की उपलब्धता पर अध्ययन के चौंकाने वाले परिणाम
  • इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, रा’य के ग्रामीण इलाकों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य
  • केंद्रों को गैर-संचारी रोगों की दवाएं सालभर के लिए उपलब्ध है कराई जाती हैं, लेकिन वे केवल &-4 महीनों तक ही मरीजों को मिल पाती हैं।
  •  इसके बाद दवाओं की भारी कमी के कारण लगभग 7-8 महीने तक दवाओं की अलमारियां खाली रह जाती हैं।

अध्ययन का दायरा और भागीदारी

मध्यप्रदेश के तीन जिलों सीहोर, विदिशा और अनूपपुर में किए गए इस अध्ययन को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद, विश्व स्वास्थ्य संगठन, तथा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने संयुक्त रूप से किया है।

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प्रमुख निष्कर्ष

  • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में वर्ष भर की दवाएं केवल 3-4 महीनों के भीतर समाप्त हो जाती हैं।
  • दवाओं की कमी के कारण रोगियों को समय पर उपचार उपलब्ध नहीं हो पाता।
  • प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की संख्या बहुत कम है, जो इलाज को प्रभावित करता है।

डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मचारियों की कमी से सेवाओं पर असर

रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में विशेषज्ञ चिकित्सकों और प्रशिक्षित स्टाफ की भारी कमी पाई गई है। 2020-21 के ग्रामीण स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक, चिकित्सकों की 82.2% और सर्जनों की 83.2% पद रिक्त हैं। केवल 30% से भी कम स्वास्थ्य केंद्र राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम के मानकों पर खरे उतरते हैं। जबकि चिकित्सा उपकरण ठीक हैं, लेकिन मानव संसाधन की कमी के कारण रोगियों का उचित उपचार बाधित हो रहा है।

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दवाओं की कमी का ब्योरा

  • 105 उप-केंद्रों में से 37 में मधुमेह के लिए जरूरी मेटफॉर्मिन दवा की कमी।
  • उ‘च रक्तचाप के इलाज के लिए आवश्यक एम्लोडिपिन की 47 उप-केंद्रों में कमी।
  • इन दवाओं के स्टॉक औसतन सात महीने से खाली पड़े हैं, क्योंकि साल भर के लिए मिलने वाली दवाएं शुरू के 3-4 महीनों में खत्म हो जाती हैं।

व्यापक सर्वेक्षण के परिणाम

इस अध्ययन में भारत के सात रा’यों के 19 जिलों में कुल 415 सरकारी और निजी स्वास्थ्य केंद्रों की समीक्षा की गई, जिसमें मधुमेह और उच्च रक्तचाप के प्रबंधन की सुविधाओं की स्थिति का विश्लेषण किया गया।

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