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Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मध्य प्रदेश लोक निर्माण विभाग (PWD) में औचक निरीक्षण अब गुणवत्ता सुधार का नहीं, बल्कि इंजीनियरों पर कार्रवाई का हथियार बनते जा रहे हैं। हाल के महीनों में कई जिलों में बिना पूर्व सूचना हुए निरीक्षणों के बाद सीधे निलंबन की कार्रवाई की गई। इससे अभियंताओं में भारी आक्रोश फैल गया है।
इन्हीं हालातों के विरोध में प्रदेश भर के अभियंताओं ने एकजुट होकर “मध्य प्रदेश संयुक्त अभियंता संघर्ष मोर्चा” का गठन किया है। इस मोर्चे में कार्यपालन यंत्री, नियंत्रित मुख्य अभियंता के साथ-साथ ईएनसी (Engineer-in-Chief) स्तर के अभियंता भी शामिल किए गए हैं।
भोपाल में हुई बड़ी बैठक
भोपाल स्थित मप्र डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन के यांत्रिकी भवन में प्रदेश स्तरीय बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में सभी जिलों से अभियंताओं ने हिस्सा लिया और आंदोलन की रणनीति पर विस्तार से चर्चा की गई।
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31 दिसंबर को प्रमुख सचिव से मुलाकात
संयुक्त अभियंता संघर्ष मोर्चा 31 दिसंबर को लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव सुखबीर सिंह से मुलाकात करेगा। इस दौरान मोर्चा अपनी मांगें रखेगा, जिनमें स्टाफ की नियुक्ति, गुणवत्ता जांच के संसाधन और दमनात्मक कार्रवाई पर रोक प्रमुख हैं।
मांगें नहीं मानी गईं तो हड़ताल
मोर्चे ने साफ चेतावनी दी है कि यदि मांगें स्वीकार नहीं की गईं, तो 5 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की जाएगी। हड़ताल के दौरान मध्य प्रदेश में PWD का कोई भी अभियंता काम पर नहीं आएगा।
पहले भी हुई कार्रवाई, अब असंतोष चरम पर
यह पहला मौका नहीं है जब औचक निरीक्षण के नाम पर इंजीनियरों पर गाज गिरी हो। पूर्व में भी कई अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए सस्पेंड किया गया, जबकि मौके पर न तो जरूरी स्टाफ था और न ही गुणवत्ता जांच के संसाधन। अभियंताओं का आरोप है कि यह कार्रवाई एकतरफा और तानाशाहीपूर्ण है।
गुणवत्ता जांच के संसाधन ही नहीं
इंजीनियरों का बड़ा सवाल यही है कि जब विभाग के पास गुणवत्ता जांचने के लिए पर्याप्त संसाधन ही नहीं हैं, तो कार्रवाई किस आधार पर की जा रही है। PWD में न तो तकनीकी स्टाफ पर्याप्त है और न ही लैब, उपकरण और प्रशिक्षित सहायक मौजूद हैं। कई जगहों पर गुणवत्ता जांच के लिए जरूरी टेस्ट तक संभव नहीं हो पा रहे।
स्टाफ और सपोर्ट सिस्टम का अभाव
अभियंताओं का कहना है कि गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जिस सपोर्ट स्टाफ और तकनीकी सहायता की जरूरत होती है, वह लगभग शून्य है। स्थिति यह है कि गुणवत्ता नापने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ तो दूर, कई जगहों पर बेसिक सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं।
सरकार और विभाग की नीति पर सवाल
अभियंताओं का आरोप है कि सरकार और विभाग बिना संसाधन दिए परिणाम मांग रहे हैं। जब न स्टाफ है, न उपकरण और न ही तकनीकी सहयोग, तो गुणवत्ता की कसौटी पर खरा उतरना कैसे संभव है। अभियंताओं का मानना है कि ऐसी नीतियां सीधे तौर पर फील्ड इंजीनियरों को बलि का बकरा बना रही हैं।
मोर्चे के पदाधिकारी घोषित
संघर्ष मोर्चे में संरक्षक ई. रविंद्र सिंह कुशवाह,अध्यक्ष ई. कपिल देव त्यागी, महामंत्री ई. अनिल कुमार जैन। इन पदाधिकारियों की नियुक्ति सर्वसम्मति से की गई है।
PWD के खिलाफ बढ़ता रोष
लगातार हो रही कार्रवाई और संसाधनों की अनदेखी ने PWD के भीतर असंतोष को विस्फोटक स्थिति में पहुंचा दिया है। अब यह सिर्फ विभागीय मामला नहीं रह गया, बल्कि सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सीधा सवाल खड़ा कर रहा है।
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कार्रवाई नहीं, समाधान चाहिए
अभियंताओं का स्पष्ट कहना है कि वे गुणवत्ता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन बिना संसाधन दिए सजा देना अन्याय है। अगर सरकार और विभाग समय रहते समाधान नहीं करते, तो यह आंदोलन PWD के साथ-साथ सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती बन सकता है।
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