थैलेसीमिया से जूझ रहे बच्चों को चढ़ाया एचआईवी पॉजिटिव ब्लड, सतना ब्लड बैंक की लापरवाही उजागर

सतना जिला अस्पताल के ब्लड बैंक की लापरवाही से थैलेसीमिया से पीड़ित 4 बच्चों को HIV पॉजिटिव ब्लड चढ़ा दिया गया। मामले की जांच जारी है। संक्रमण के फैलने का खतरा बढ़ने पर प्रशासन ने तुरंत कदम उठाए हैं।

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Anjali Dwivedi
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मध्य प्रदेश के सतना जिला अस्पताल के ब्लड बैंक की लापरवाही ने 4 मासूम बच्चों की जिंदगी को खतरे में डाल दिया है। थैलेसीमिया बीमारी से पीड़ित इन बच्चों को एचआईवी पॉजिटिव ब्लड चढ़ा दिया गया। हालांकि यह घटना चार महीने पुरानी है, लेकिन इसका खुलासा अब हुआ है। अब प्रशासन मामले की गंभीरता से जांच कर रहा है। 

डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने पूछा संक्रमण फैला कैसे?

मामले में डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल ने जांच के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट मंगवाई गई है और यह भी जांच की जा रही है कि बच्चों को सरकारी अस्पताल के अलावा कहीं और से ब्लड तो नहीं दिया गया था। इस जांच से यह भी साफ होगा कि संक्रमण किस ट्रांसफ्यूजन के दौरान हुआ।

थैलेसीमिया क्या है?

थैलेसीमिया एक जेनेटिक ब्लड डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर ठीक से हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता है। इससे लाल रक्त कोशिकाएं कम बनती हैं और शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती, जिससे एनीमिया और कई स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। 

यह बीमारी माता-पिता से बच्चों में जीन के जरिए आती है। इस बीमारी की गंभीरता अलग हो सकती है। इसमें हल्के लक्षण से लेकर नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन और बोन मैरो ट्रांसप्लांट तक की जरूरत पड़ सकती है। 

थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों की उम्र क्या?

थैलेसीमिया से पीड़ित चारों बच्चों की उम्र 8 से 11 साल के बीच है। इन बच्चों को नियमित रूप से ब्लड ट्रांसफ्यूजन (Blood Transfusion) की जरूरत पड़ती है। आईसीटीसी (ICTC) में कराई गई जांच में यह सामने आया कि पहले ये सभी बच्चे HIV नेगेटिव थे, लेकिन बाद की जांच में उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई।

जीतू पटवारी ने सरकार को घेरा

अब इस मामले पर राजनीति भी गरमा गई है। मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा है। 

क्या बार-बार ब्लड चढ़ाने से बढ़ता है थैलेसीमिया का खतरा

ब्लड बैंक प्रभारी डॉ. देवेंद्र पटेल के मुताबिक, थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को कई बार ब्लड चढ़ाया जाता है। इनमें से कुछ बच्चों को 70, कुछ को 80 और कुछ को 100 बार तक ट्रांसफ्यूजन हो चुका है। ऐसे मामलों में HIV संक्रमण का जोखिम ज्यादा रहता है। इसीलिए यह जांच की जा रही है कि किस ट्रांसफ्यूजन के दौरान संक्रमण हुआ।

ब्लड डोनेट करने से पहले कौन-कौन सी जांचें होती हैं? 

डॉ. देवेंद्र पटेल ने यह भी बताया कि ब्लड डोनेशन के लिए मानक तय किए गए हैं। सिर्फ उन्हीं डोनरों से ब्लड लिया जाता है, जिनकी उम्र 18 साल से अधिक, वजन 45 किलो से ज्यादा और हीमोग्लोबिन 12 ग्राम से ऊपर होता है। इसके अलावा, ब्लड डोनेशन से पहले प्राथमिक स्वास्थ्य जांच और HIV समेत अन्य संक्रमणों की स्क्रीनिंग भी की जाती है।

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ब्लड कहां से लिया गया था?

इन बच्चों को सिर्फ सतना जिला अस्पताल से ही नहीं, बल्कि रीवा के बिरला अस्पताल और एमपी के अन्य जिलों से भी ब्लड उपलब्ध कराया गया था। इसलिए, अब सभी संबंधित ब्लड डोनरों की पहचान की जा रही है और उनकी जांच की जा रही है। बच्चों के माता-पिता की भी जांच कराई गई है, लेकिन वे HIV नेगेटिव पाए गए हैं। 

ब्लड बैंक प्रशासन के मुताबिक, जांच में सबसे बड़ी समस्या गलत मोबाइल नंबर और अधूरे पते से आ रही है। इससे डोनरों की पहचान और उनका ट्रैकिंग मुश्किल हो रहा है।

संक्रमण के फैलने का खतरा

चार बच्चों में HIV मिला है। शक है कि HIV वाला खून और मरीजों को चढ़ा। उस ब्लड बैंक से गर्भवती महिलाओं को भी खून दिया। कुछ अन्य मरीजों को भी खून दिया गया था। उनमें से कुछ लोग अब तक जांच को नहीं लौटे हैं। और लोगों में भी संक्रमण का डर है।

कलेक्टर ने रिपोर्ट मांगी

मामले की गंभीरता को देखते हुए, कलेक्टर डॉ. सतीश कुमार एस ने सीएमएचओ (CMHO) से पूरे प्रकरण की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है।

पीड़ित परिवार का दावा: 6 बच्चे HIV संक्रमित

पीड़ित परिवार ने भी अपनी बात सामने रखी है। एक पीड़ित बच्ची के पिता ने दावा किया कि उनकी बच्ची का जन्म 23 दिसंबर 2011 को हुआ था। 9 साल की उम्र में उसे थैलेसीमिया का पता चला था। इसके बाद उसे इलाज के लिए सतना और पुणे में जाना पड़ा। इस दौरान उसे ब्लड ट्रांसफ्यूजन सतना जिला अस्पताल, जबलपुर और बिरला अस्पताल से मिला।

उनके अनुसार,सतना में HIV पॉजिटिव बच्चे सिर्फ चार नहीं, बल्कि छह हैं। परिवार ने आरोप लगाया कि प्रशासन की लापरवाही की वजह से उनकी बच्ची को HIV संक्रमण हुआ।

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