इधर स्पोर्ट्स ग्रेजुएट बेरोजगार, उधर स्कूलों में प्रशिक्षकों के हजारों पद खाली

प्रशिक्षकों की कमी सरकार के दावों की हवा निकाल रही है। छोटे-छोटे कस्बे और गांवों में भी स्टेडियम बनाने वाली सरकार स्कूलों में खाली पड़े खेल प्रशिक्षकों के पद नहीं भर पा रही है।

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Sanjay Sharma
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BHOPAL : पेरिस ऑलंपिक के बाद फिर प्रदेश में खेल गतिविधियों की चर्चा हो रही है। प्रशिक्षकों की कमी सरकार के दावों की हवा निकाल रही है। छोटे-छोटे कस्बे और गांवों में भी स्टेडियम बनाने वाली सरकार स्कूलों में खाली पड़े खेल प्रशिक्षकों के पद नहीं भर पा रही है। ऐसे में खेल प्रतिभाओं को तराशना तो दूर ज्यादातर स्कूलों में खेल के पीरियड का मतलब छुट्टी हो गया है। खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने वाली सरकार की योजनाएं प्रशिक्षकों की कमी के कारण दम तोड़ रही हैं। खेल- स्कूल शिक्षा जैसे दो बड़े विभाग और सरकार की सीधी निगरानी के बावजूद व्यवस्था नहीं सुधर रही है। न तो हर जिले में खेल अधिकारी है और न हर स्कूल के हिस्से में खेल प्रशिक्षक। नतीजा कभी बच्चे खुद ही खेलों की तैयारी करते हैं या अंतर जिला और संभागीय स्पर्धाओं के दौरान शिक्षक ही बच्चों के प्रशिक्षक बन जाते हैं। प्रदेश में खेल प्रशिक्षक से लेकर अधिकारी स्तर के करीब 26 सौ पद स्वीकृत हैं लेकिन इनमें से एक हजार भी पदस्थ नहीं हैं।

खेल के मामले में एमपी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है। स्कूल गेम्स के जितने आयोजन होते हैं उनमें प्राइवेट स्कूलों को अलग कर दें तो गिनी चुनी उपलब्धियां ही प्रदेश के खिलाड़ियों के हिस्से में आई हैं। प्रदेश में प्रतिभाएं तो बहुत हैं लेकिन  उन्हें तराशने की सुध न स्कूलों को होती है न विभाग इस पर ध्यान देते हैं। हांलाकि सफलता हाथ आते ही अफसर से लेकर नेता तक सभी श्रेय लेने की होड़ में उतर आते हैं। सरकार ने बीते एक दशक में खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने कई योजनाएं शुरू की हैं। यही नहीं अब गांव स्तर तक स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स या स्टेडियम नजर आने लगे हैं, लेकिन सरकार स्टेडियम-कॉम्पलेक्स जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर को उपयोगी बनाना भूल गई। यानी संसाधन तो उपलब्ध करा दिए लेकिन इनके उपयोग के लिए खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति करना याद ही नहीं रहा।

सवा लाख से ज्यादा स्कूल, प्रशिक्षक हजार भी नहीं

बच्चों को खेल गतिविधियों का प्रशिक्षण देकर उनकी प्रतिभा को संवारने के लिए स्कूल स्तर पर प्रशिक्षक की नियुक्ति को स्वीकृति दी गई है। यानी स्कूल में कम से कम एक खेल प्रशिक्षक होना जरूरी है। लेकिन सरकार की यह मंशा अब तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है। प्रदेश में खेल प्रशिक्षण के लिए 26 सौ पद स्वीकृत हैं। इनमें से लगभग 18 सौ पद खाली  हैं। यानी प्रदेश में सवा लाख से ज्यादा स्कूलों में प्रतिभाओं को संवारने एक हजार प्रशिक्षक भी उपलब्ध नहीं हैं। बीते पांच सालों में बुंदेलखंड के जिलों में ग्रामीण स्टेडियमों की बाढ़ सी आई लेकिन अब इनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है। स्कूलों में तो पहले से ही प्रशिक्षकों का टोटा है। इस कारण एक-डेढ़ करोड़ की लागत से बना एक_एक स्टेडियम बेकार पड़ा है। जिलों में लाखों बच्चों पर 10 या 12 प्रशिक्षक ही तैनात हैं। ऐसे में खेल उत्सव और स्पर्धाओं के दौरान स्कूल के शिक्षकों को ही प्रशिक्षक बना दिया जाता है।

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सब्जेक्ट टीचर को बताते हैं स्पोर्ट ट्रेनर

स्कूलों में खेल प्रशिक्षकों की कमी का असर खेलों में रुचि लेने वाले बच्चों पर पड़ रहा है। स्पर्धा में आगे आने वाले खिलाड़ियों को प्रशिक्षण न मिलने से वे धीरे-धीरे हताश होकर खेलना ही छोड़ देते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में हर साल ऐसे हजारों बच्चे खेल से दूर हो जाते हैं क्योंकि उन्हें उनके पसंदीदा खेल की बारीकियां बताने कोई मार्गदर्शक ही नहीं मिलता। स्कूल शिक्षा विभाग से खेल स्पर्धाओं के लिए अब खासा राशि उपलब्ध कराई जाती है। खेल विभाग भी लगातार खेलों को बढ़ावा देने आयोजन करता है। स्कूल में खेल गतिविधियों के लिए पूरा पीरियड भी रखना जरूरी है। लेकिन यह पीरियड या तो खाली पड़ा रहता है या इसका उपयोग दूसरे सबजेक्ट की पढ़ाई में हो जाता है। इसके पीछे भी वजह खेल प्रशिक्षकों की कमी ही है। बीते साल डीपीआई ने इस कमी को पूरा करने सबजेक्ट टीचर को ही सप्ताह में दो दिन खेल प्रशिक्षक का जिम्मा सौंपने का आदेश जारी कर दिया था। डीपीआई के इस आदेश का तब खूब मजाक भी बना था, क्योंकि खेल के बारे में जानकारी न रखने वाले शिक्षकों को प्रशिक्षण का दायित्व सौंपा गया था।

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हर साल 4 हजार ग्रेजेएट, पर वैकेंसी नहीं

स्कूल शिक्षा और खेल विभाग स्पोर्ट्स टीचर की कमी के मामले में पल्ला झाड़ते रहे हैं। प्रदेश में कुशल स्पोर्ट्स ग्रेजूएट नहीं मिलने की दलील भी अकसर अधिकारी करते हैं लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश के युवा नौकरियों के लिए जैसा संघर्ष दूसरे क्षेत्रों में कर रहे हैं वहीं हालत खेलों के मामले में भी है। प्रदेश में करीब 40 ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो स्पोर्ट्स पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कराते हैं। इनसे हर साल लगभग 4 हजार ग्रेजूएट तैयार हो रहे हैं। ये स्पोर्ट्स ग्रेजूएट पढ़ाई के बाद या तो प्राइवेट संस्थाओं में काम करने मजबूर हैं या फिर खेल को अलविदा कर दूसरी नौकरी कर रहे हैं। क्योंकि प्रदेश में बीते एक दशक में खेल प्रशिक्षक और खेल अधिकारियों की भर्ती ही नहीं निकली है। यानी यह फील्ड भी नौकरी न निकलने के कारण युवाओं  की रुचि से बाहर होती जा रही है।

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नौकरी दें तो निखरेंगी खेल प्रतिभाएं

हर साल राज्य और केंद्रीय खेल स्पर्धाओं में प्रदेश के सैंकड़ों खिलाड़ी अव्वल प्रदर्शन करते हैं। इनमें से कुछ पद हासिल करने तो कुछ रिकॉर्ड लेवल तक पहुंचने में सफल होते हैं। उधर स्पोर्ट्स पाठ्यक्रमों से भी हर साल 4 हजार युवा खेल के क्षेत्र में डिग्री-डिप्लोमा लेकर आ रहे हैं। लेकिन खेल विधाओं की बारीकियां जानने-समझने वाले इन युवाओं को नौकरी ही नहीं दी जा रही है। यानी एक ओर जिलों में बेहिसाब पद खाली पड़े हैं और दूसरी ओर स्पोर्ट्स टीचरों की कमी बनी हुई है। यदि खेल प्रशिक्षकों के खाली पदों को भरा जाए तो न केवल बेरोजगारों को नौकरी मिलेगी बल्कि खेल प्रतिभाएं भी निखरेंगी।

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फैक्ट फाइल

पदनाम   स्वीकृत खाली  
स्पोर्ट ट्रेनर (A) 916     714
स्पोर्ट ट्रेनर (B) 465     271
स्पोर्ट टीचर (निम्न वेतनमान) 1078     737
स्पोर्ट टीचर (उच्च वेतनमान) 24     16
जिला स्पोर्ट ऑफिसर 38     19
अन्य एक्सपर्ट   17        14

 

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