अजाक्स विवाद के बाद अब मध्यप्रदेश शिक्षक कांग्रेस में घमासान, लेटरपैड और पंजीयन नंबर के कथित दुरुपयोग पर सवाल

मध्य प्रदेश शिक्षक कांग्रेस में फर्जीवाड़े का मामला सामने आया है। प्रांताध्यक्ष नवनीत चतुर्वेदी ने सतीश शर्मा पर संगठन के लेटरपैड और पंजीयन नंबर का अवैध उपयोग करने का आरोप लगाया। सरकारी दस्तावेजों में नवनीत चतुर्वेदी का नाम अध्यक्ष के रूप में दर्ज है।

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Ramanand Tiwari
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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. मध्य प्रदेश में सरकारी मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों को लेकर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। अजाक्स विवाद अभी पूरी तरह शांत भी नहीं हुआ था कि अब मप्र शिक्षक कांग्रेस संगठन में कथित फर्जीवाड़ा का मामला सामने आ गया है। यह विवाद सिर्फ संगठन तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी मान्यता, निगरानी और कार्रवाई की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाता है।

क्या है प्रांताध्यक्ष विवाद मामला?

 मध्यप्रदेश शिक्षक कांग्रेस संगठन के प्रांताध्यक्ष नवनीत चतुर्वेदी ने भोपाल पुलिस कमिश्नर और पुलिस अधीक्षक को शिकायत देकर शिक्षक सतीश शर्मा पर गंभीर आरोप लगाए हैं। शिकायत में कहा गया है कि सतीश शर्मा खुद को संगठन का प्रांताध्यक्ष बताकर संगठन के लेटरपैड और पंजीयन नंबर का कथित रूप से अवैध उपयोग कर रहे हैं।

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सरकारी रिकॉर्ड में असली अध्यक्ष?

सरकारी दस्तावेजों के अनुसार, मप्र शिक्षक कांग्रेस एक मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठन है। विधानसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में रजिस्ट्रार फर्म्स एवं संस्थाएं कार्यालय ने स्पष्ट किया है कि संगठन के प्रांताध्यक्ष के रूप में नवनीत चतुर्वेदी का नाम दर्ज है। यह जानकारी सामान्य प्रशासन विभाग को 2 दिसंबर 2025 को भेजी गई थी।

नियमों की अनदेखी का आरोप

शिकायत में कहा गया है कि सतीश शर्मा द्वारा रजिस्ट्रार कार्यालय में जो सूची प्रस्तुत की गई थी, वह नियमों के अनुरूप नहीं पाई गई। इसी आधार पर 15 मई 2025 को संबंधित कार्यालय ने पत्र जारी कर सूची को अमान्य कर दिया था। इसके बावजूद गतिविधियां जारी रहना प्रशासनिक ढिलाई की ओर इशारा करता है।

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फर्जी हस्ताक्षर का भी दावा

मामले ने उस वक्त और गंभीर मोड़ ले लिया जब आरोप लगाया गया कि शहडोल जिले के शिक्षक अख्तर हुसैन के फर्जी हस्ताक्षर सूची में शामिल किए गए। अख्तर हुसैन ने इस संबंध में शपथ पत्र देकर कार्रवाई की मांग की है।

प्रचार पर आपत्ति

शिकायत में यह भी उल्लेख है कि सतीश शर्मा खुद को प्रांताध्यक्ष बताकर सोशल मीडिया और अखबारों में खबरें प्रकाशित करवा रहे हैं। संगठन के लेटरपैड और पंजीयन नंबर का ऐसा उपयोग आपराधिक श्रेणी में आ सकता है, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई न होना सिस्टम की चुप्पी को दर्शाता है।

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प्रांत अध्यक्ष का पक्ष

चतुर्वेदी का कहना है कि मध्य प्रदेश शिक्षक कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष पद के निर्वाचन में शिक्षक कांग्रेस के निर्वाचन अधिकारी के द्वारा मुझे प्रांत अध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया गया।

इस संबंध में निर्धारित प्रारूप एवं नियमानुसार धारा 27 धारा 28 की जानकारी असिस्टेंट रजिस्टर कार्यालय भोपाल में जमा की गई। मेरी सूची जमा करने के पूर्व श्री सतीश शर्मा नाम के शिक्षक द्वारा एक कूट रचित फर्जी सूची जमा की गई जिसमें उसके द्वारा स्वयं को प्रांत अध्यक्ष उल्लेखित किया गया था।

इस विषय को लेकर मेरे द्वारा सामान्य प्रशासन विभाग रजिस्टर कार्यालय एवं अस्सिटेंट रजिस्टार कार्यालय में शिकायत की गई। अस्सिटेंट रजिस्टार कार्यालय में मेरी सूची और सतीश शर्मा के द्वारा प्रस्तुत की गई सूची का परीक्षण किया गया जिसमें मेरे द्वारा प्रस्तुत सूची को सत्य मानते हुए मुझे प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराई गई तथा सतीश शर्मा की सूची को प्रावधानों के अनुरूप नहीं पाया जाकर सूचित किया गया। 

अस्सिटेंट रजिस्टार के द्वारा किए गए इस परीक्षण के उपरांत ही सामान्य प्रशासन विभाग कर्मचारी कल्याण संगठन के द्वारा मुझे प्रांत अध्यक्ष मान्य किए जाने की सूचना मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रश्न के उत्तर में दी गई।

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सतीश शर्मा का पक्ष

सतीश शर्मा ने अपने बयान में कहा है कि मध्य प्रदेश शिक्षक कांग्रेस के प्रांताध्यक्ष पद के निर्वाचन में संगठन के निर्वाचन अधिकारी द्वारा मुझे प्रांताध्यक्ष निर्वाचित घोषित किया गया। इसके बाद नियमानुसार धारा 27 और धारा 28 की जानकारी असिस्टेंट रजिस्ट्रार कार्यालय, भोपाल में जमा की गई।

इसकी जानकारी क्रमांक एक पर सामान्य प्रशासन विभाग मध्य प्रदेश शासन द्वारा जारी की गई मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों की सूची में मध्य प्रदेश शिक्षक कांग्रेस संगठन के समक्ष क्रमांक एक पर अंकित है क्रमांक 2 पर 23. 8.2024 को जमा की गई धारा 27 के प्रतिनिधि का नाम अंकित है। सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा उक्त सूची दिनांक 24.11.2025 को जारी की गई है।                                              

सिस्टम पर उठते सवाल

लगातार सामने आ रहे ऐसे विवाद यह संकेत देते हैं कि मान्यता प्राप्त कर्मचारी संगठनों की निगरानी में सरकार और प्रशासनिक तंत्र कहीं न कहीं कमजोर नजर आ रहा है। सवाल यह है कि क्या इस मामले में समय रहते सख्त कार्रवाई होगी या फिर यह विवाद भी फाइलों में ही दबकर रह जाएगा।

यह मामला अब सिर्फ शिक्षक कांग्रेस संगठन का नहीं, बल्कि पूरे सरकारी सिस्टम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता से जुड़ गया है। अब निगाहें पुलिस और प्रशासन की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं।

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