मध्य प्रदेश में नई सरकार का गठन होने के बाद संभावना जताई जा रही थी कि विधानसभा के मानसून सत्र के तुरंत बाद ही सरकार ट्रांसफर पॉलिसी लाएगी, लेकिन सीएम डॉ.मोहन यादव की व्यस्तताओं के चलते ऐसा नहीं हो सका। आमतौर पर प्रदेश में जून या जुलाई में ट्रांसफर पॉलिसी की घोषणा हो जाती है, मगर इस बार इंतजार लंबा हो गया है। स्कूल-कॉलेज भी खुल चुके हैं। ऐसे में सभी को इंतजार है कि सरकार आखिर क्या करने जा रही है।
एमपी की तबादला नीति पर दो तरह की बातें
एमपी की तबादला नीति ( MP transfer policy ) पर सरकार में इस समय दो तरह की बातें चल रही हैं। सरकार और नीति निर्धारकों का एक धड़ा यह मानता है कि तबादला नीति जारी करने के बाद जिस तरह से थोकबंद ट्रांसफर होते हैं, वे सरकार की बदनामी का कारण बनते हैं। दरअसल सरकार के न चाहने के बावजूद हर स्तर पर तबादला उद्योग पनप जाता है। इस कारण डॉ मोहन यादव सरकार MP transfer policy जारी करने से बच रही है।
जबकि दूसरे पक्ष का मानना है कि सरकार को तबादला नीति जारी करने की बजाय CM समन्वय से ट्रांसफर करना चाहिए। इसके तहत संबंधित विभाग अपने- अपने प्रस्ताव भेजें और सरकार जांच कर उन पर अपनी स्वीकृति देगी।
बहरहाल सरकार के स्तर पर एमपी की तबादला नीति ( MP transfer policy ) पर मंथन जारी है। सभी को उम्मीद है कि जल्द ही इस पर कोई फैसला आ सकता है।
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तबादला नीति आई तो मंत्रियों को फिर मिलेंगे अधिकार
अगर मध्य प्रदेश की नई तबादला नीति जारी होती है तो एक बार फिर जिले के प्रभारी मंत्रियों को ताकतवर बनाया जा सकता है। अब पहले की तरह ही प्रभारी मंत्री को जिले के अंदर तबादले करने के अधिकार होंगे। किस जिले में कौन प्रभारी मंत्री होगा, इसकी सूची भी मानसून सत्र के बाद सार्वजनिक हो जाएगी। सूत्रों का कहना है कि तबादला नीति का प्रस्ताव GAD ने तैयार कर लिया है। CMO के निर्देश मिलते ही कैबिनेट में लाया जाएगा। बता दें कि तबादला नीति लागू होने से पहले जरूरी तबादले सीएमओ के अनुमोदन से होंगे।
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क्या थी पुरानी तबादला नीति
आपको 2023 की ट्रांसफर पॉलिसी बताते हैं। पिछली सरकार की ट्रांसफर पॉलिसी 15 जून से 30 जून तक के लिए लागू की गई थी। इसमें जिले के भीतर प्रभारी मंत्री के अप्रूवल से ट्रांसफर किए गए थे। वहीं, जिले के बाहर और विभागों में तबादलों पर मुख्यमंत्री की अनुमति की जरूरत थी। पिछली तबादला नीति के हिसाब से 201 से 2000 तक के संवर्ग में 10 प्रतिशत से ज्यादा तबादले नहीं हो सकते थे, जबकि किसी भी संवर्ग में 20 प्रतिशत से ज्यादा तबादले नहीं किए जा सकते थे।
एक ही जिले में दोबारा पोस्टिंग नहीं मिलेगी
पिछली तबादला नीति को देखें तो जिले में प्रभारी मंत्री के अनुमोदन से ट्रांसफर हो सकते थे। इसी के साथ राज्य संवर्ग में विभाग के अध्यक्ष और प्रथम श्रेणी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के तबादले सीएम के अनुमोदन (अप्रूवल) से सामान्य प्रशासन विभाग जारी करता था। हालांकि, अभी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंत्रियों को जिलों का प्रभार नहीं दिया है। ऐसे में यह नियम कितना लागू होगा, इस पर कोई स्पष्ट मत नहीं है।
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बड़े अधिकारियों के तबादले सीएम की सहमति से
पिछली तबादला नीति के अनुसार, सभी विभागों के स्टेट कैडर के विभागाध्यक्ष और सरकारी उपक्रमों एवं संस्थाओं में पदस्थ प्रथम श्रेणी के मुख्य कार्यपालन अधिकारी (चाहे वे किसी भी पदनाम से जाने जाते हों) के ट्रांसफर आदेश में मुख्यमंत्री की अनुमति जरूरी होती थी। वहीं, राज्य कैडर के बाकी प्रथम श्रेणी अधिकारी, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के अधिकारियों-कर्मचारियों के ट्रांसफर (जिले के भीतर किए जाने वाले ट्रांसफर को छोड़कर) मुख्यमंत्री के अनुमोदन के बाद प्रशासकीय विभाग जारी करता था।
200 कर्मचारी वाले संवर्ग में 20% ही तबादले संभव
शिवराज सरकार की नीति के तहत 200 कर्मचारियों की संख्या वाले संवर्ग में 20 फीसदी, 201 से दो हजार की संख्या होने पर 10 प्रतिशत और दो हजार से ज्यादा संख्या होने पर 5 फीसदी तबादले किए जाने का नियम है।
स्कूल शिक्षा विभाग में तबादले के लिए ऑनलाइन आवेदन लेने की व्यवस्था की गई थी।
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3 साल तक नहीं होगा कोई तबादला
2023 में सरकार ने तय किया था कि नई शिक्षा नीति में एक बार स्वैच्छिक स्थानांतरण होने के बाद विशेष परिस्थिति छोड़कर 3 साल तक तबादला नहीं किया जा सकेगा। यह भी निर्णय हुआ था कि कोई भी स्कूल शिक्षक विहीन न हो जाए।
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