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जब भी राज्य में किसी बड़े घोटाले की बात होती है, तो व्यापमं फर्जीवाड़ा (MP Vyapam Scam) का नाम सबसे पहले जुड़ता है। एक ऐसा मामला जो न केवल राज्य सरकार की प्रतिष्ठा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि लाखों युवा छात्रों के भविष्य को भी दांव पर लगा देता है। अब, इस मामले में एक अहम मोड़ आया है। 10 साल के बाद, आखिरकार 122 आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए जाएंगे।
FIR के 10 साल बाद न्याय की उम्मीद
साल 2015 में जब इस घोटाले की पोल खुली, तब सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई (CBI) को सौंप दी थी। इसके बाद एसआईटी (SIT) से केस सीबीआई को ट्रांसफर हो गया था। वहीं, जुलाई 2015 में सीबीआई ने एफआईआर दर्ज कर इस मामले की छानबीन शुरू की थी।
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आरोपियों के खिलाफ जल्द सुनवाई
सीबीआई ने 5 दिसंबर 2020 को मामले में चालान पेश किया था। इस मामले की जांच में आए नए तथ्य और सबूतों के बाद, 3 जुलाई 2025 को सीबीआई ने केस को मजिस्ट्रेट कोर्ट से विशेष ट्रायल कोर्ट में भेज दिया। 26 जुलाई को प्रधान जिला न्यायाधीश (Principal District Judge) के आदेश के बाद यह केस सीबीआई की विशेष ट्रायल कोर्ट में पहुंचा। वहीं अब बहुत जल्द इस मामले की सुनवाई सीबीआई कोर्ट में शुरू होने वाली है।
एमपी व्यापमं घोटाले को एक नजर में समझें
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घोटाले में सामने आए कई चर्चित नाम
इस मामले में कई चर्चित नाम सामने आ चुके हैं। आरोपियों में नौ से अधिक डॉक्टरों का नाम भी शामिल है। इन आरोपियों में कांग्रेस विधायक फुंदेलाल सिंह के बेटे अमितेश कुमार, निगम अधिकारी डॉ. अतिबल सिंह यादव के बेटे अरुण यादव, और लखनऊ की डॉ. स्वाति सिंह प्रमुख हैं।
कानूनी सूत्रों के अनुसार, डॉ. स्वाति सिंह पर मोनिका यादव के स्थान पर पीएमटी (PMT) देने का आरोप है। यही नहीं, इस मामले में कई और नाम भी सामने आए हैं जैसे डॉ. विजय सिंह, डॉ. उमेश कुमार बघेल, डॉ. अभिषेक सचान, और डॉ. संजय वर्मा। इस केस में आरोपी उन छात्रों के साथ भी जुड़ी हुई हैं। इन्होंने फर्जी तरीके से पीएमटी (PMT) पास किया था।
2013 में शुरू हुआ था यह मामला
इस पूरे मामले की शुरुआत 2013 में हुई थी, जब झांसी रोड पुलिस थाना में सबसे पहले एफआईआर (FIR) दर्ज की गई थी। तब से लेकर अब तक यह मामला कई मोड़ों से गुजरा है और अब जाकर आरोप तय होने जा रहे हैं।
जानें क्या है व्यापमं घोटाला
2013 में मप्र में व्यापमं घोटाला सामने आया था। इसे मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा परीक्षा घोटाला माना जाता है। इस घोटाले में परीक्षा में नकल करवाना, किसी के स्थान पर दूसरे को बैठाना और अन्य धांधलियों की घटनाएं शामिल थीं। इसके चलते हजारों लोगों को गिरफ्तार किए गया था।
हालांकि, इस मामले में एक रहस्यमयी मोड़ तब आया जब घोटाले से जुड़े संदिग्धों की मौतें शुरू हो गईं। इन मौतों में सड़क दुर्घटनाएं, दिल का दौरा, सीने में दर्द और आत्महत्याएं शामिल थीं, और ये सभी असामयिक और संदिग्ध परिस्थितियों में हुईं। सरकार के अनुसार 2007 से 2015 के बीच इस घोटाले से जुड़े 32 लोगों की मौत हुई। वहीं एक मीडिया रिपोर्टों में इस संख्या को 40 से अधिक बताया गया है।
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