MPPSC, ESB की मॉडल आंसर की पर क्या आपत्ति लगाना चाहिए,  बिजली कंपनी पर आदेश से उठी नई बात

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी), कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी), और मध्य प्रदेश बिजली कंपनी भर्ती करती हैं। इन संस्थाओं के प्रश्नों पर हमेशा विवाद उठते हैं, खासकर मॉडल आंसर को लेकर। द सूत्र ने इस लेकर इनडेप्थ स्टडी की है।

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Sanjay Gupta
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MP News: मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (पीएससी) और कर्मचारी चयन मंडल (ईएसबी) मप्र की दो सबसे बड़ी भर्ती एजेंसी है। इसके साथ ही मध्य प्रदेश बिजली कंपनी भी अपने स्तर पर विभाग की भर्ती करती है। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा और विवाद हर बार इनके द्वारा लिए गए प्रश्न के बाद जारी हुई मॉडल आंसर की पर उठता है।

पीएससी में तो लगभग हर बार प्री के सवालों को लेकर आपत्तियां लगती हैं। इसमें ताजा मामला 2023 की राज्य सेवा परीक्षा का था। अब बिजली कंपनी के तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के 700 पदों की भर्ती को लेकर इस मामले में हाईकोर्ट जबलपुर के फैसले से नया मुद्दा उठा है।

द सूत्र ने इसलिए की इनडेप्थ स्टडी

इस मामले में द सूत्र ने इनडेप्थ स्टडी की। पुराने केस व फैसलों का अध्ययन किया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से लेकर विविध राज्यों के फैसले हैं। इसका कारण सिर्फ एक है कि हर बार उम्मीदवार आंसर की को लेकर कोर्ट जाते हैं। इससे कानूनी लड़ाई में राशि और समय दोनों लगाते हैं। आखिर क्या इनका मतलब बनता है। यह उम्मीदवार खुद तय करें।

ESB के मॉडल आंसर पर अपत्ति क्यों

  • मॉडल आंसर की पर विवाद: 2023 राज्य सेवा परीक्षा में आंसर की पर आपत्ति उठी।

  • जबलपुर हाईकोर्ट का आदेश: 15 दिन में आपत्तियां सुनने और आंसर की में बदलाव का आदेश।

  • 2017 का फुल बेंच आदेश: कोर्ट को विशेषज्ञों की आंसर की में दखल का अधिकार नहीं।

  • पीएससी दखल का मामला: 2017 में कराधान सहायक परीक्षा के आंसर की पर कोर्ट ने निर्णय दिया था।

  • हाईकोर्ट का तर्क: बिजली कंपनी के मामले में प्रक्रिया में गलती पाई गई, आंसर की में बदलाव के निर्देश।

हाईकोर्ट ने यह दिया है आदेश

पूरा पीडीएफ यहां से डाउनलोड करें

जबलपुर हाईकोर्ट जस्टिस दीपक खोत की कोर्ट में कुछ उम्मीदवारों द्वारा याचिका दायर की गई। इसमें बताया गया तृतीय व चतुर्थ श्रेणी के पद असिस्टेंट ग्रेड व अन्य की भर्ती परीक्षा में जारी मॉडल आंसर की सही नहीं है।

इसमें दो सवालों को लेकर आपत्ति ली गई। इस पर भर्ती एजेंसी द्वारा दलील दी गई कि मॉडल आंसर की को लेकर आपत्ति नहीं ली जा सकती है। यह विशेषज्ञों द्वारा तय की जाती है। नितिन पाठक केस मप्र 2017 फुल बैंच में इसे लेकर निर्देश जारी हुए हैं।

लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला दिया और कहा कि-

विशेषज्ञों द्वारा लिए गए फैसले की समीक्षा नहीं की जा सकती है, लेकिन कोर्ट द्वारा यह फैसले लेने के लिए की गई प्रक्रिया की समीक्षा की जा सकती है। न्यायालय खुद इस आंसर की को संशोधित नहीं कर सकता है, लेकिन यदि प्रक्रिया में कुछ चूक हुई है तो इसे लेकर निर्देश दे सकता है। इसलिए आदेश दिए जाते हैं कि भर्ती एजेंसी 15 दिन के भीतर मॉडल आंसर की पर आपत्तियों को सुने। फिर यदि इन्हें सही पाता है तो फिर मॉडल आंसर की में बदलाव करें। वहीं नए सिरे से आवंटित अंकों के आधार पर फिर मेरिट सूची को तैयार कर जारी करें। 

क्या है फुल बैंच 2017 का आदेश और विवाद

मॉडल आसंर की को लेकर सबसे बड़ा विवाद साल 2017 में उठा था। तब साल 2010 में पीएससी द्वारा ली गई कराधान सहायक परीक्षा की आंसर की का विवाद कोर्ट में गया। यह चंचल मोदी केस था। यहां पर हाईकोर्ट में आदेश हुआ कि पूर्व चीफ जस्टिस इस आंसर की को देखें और चेंज करें। इसके बाद पूर्व चीफ जस्टिस ने मॉडल आंसर की के कुछ सवाल गलत पाए और बदलने के लिए कहा। इस पर पीएससी ने अपील की और मामला फुल बैंच में गया। 

फुल बेंच में तीन सवाल उठे

  • इसमें सवाल उठा कि क्या कोर्ट विशेषज्ञों द्वारा तय आंसर की बदलने के लिए खुद कमेटी बना सकता है?

  • क्या माडल आंसर की में कोर्ट द्वारा दखल दिया जा सकता है?

  • एक एकेडमिक मामलों का रि वेल्यूशन किया जा सकता है?

इस पर फुल बेंच ने यह तय किया

फुल बेंच ने तय किया कि विशेषज्ञों की तय आंसर की में कोर्ट दखल नहीं दे सकता है, विशेषज्ञों के एकेडमिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। कोर्ट विशेषज्ञों के फैसले की समीक्षा के लिए कमेटी नहीं बना सकता। लेकिन कोर्ट फैसले की प्रक्रिया में कोई खामी पाए जाने पर इसके लिए आदेश दे सकता है। 

हाईकोर्ट जस्टिस ने ताजा मामले में यह अहम बात कही

हाईकोर्ट जस्टिस दीपक खोत के फैसले में इसी फुल बेंच की इस आदेश को सामने रखते हुए एक अहम लाइन कही। उन्होंने फैसले में लिखा कि

यदि कुछ उत्तर स्पष्ट रूप से गलत पाए जाते हैं तो कोई भी समझदार व्यक्ति उन्हें स्वीकार्य नहीं मानता है तो कोर्ट निर्देश दे सकता है कि परीक्षा निकाय को आंसर की फिर जांच करने का अधिकार है। हालांकि कोर्ट आंसर की को अंतिम रूप देने के काम को अपने हाथ में नहीं ले सकता है।

एक अहम बात हाईकोर्ट ने यह क्यों दिया आदेश

इसमें एक अहम बात यह भी है कि बिजली कंपनी मामले में हाईकोर्ट ने आखिर यह आदेश क्यों दिए। इसमें कारण था कि उम्मीदवार ने यह कहा था कि उन्होंने दो प्रश्न को लेकर आपत्ति ली और समय पर ली। यह आपत्ति केवल यह बोलकर खारिज की गई कि इसमें प्रश्न संख्या गलत बताई।

इसमें मेरिट पर आपत्ति को सुना ही नहीं और आंसर की में बदलाव नहीं किया गया। हाईकोर्ट जस्टिस ने इसी अहम बात को माना कि प्रक्रियागत गलती की गई है। हम विशेषज्ञों की आंसर की समीक्षा नहीं कर रहें प्रक्रिया की कर रहे हैं। इसलिए आपत्ति को सुने और सही पाएं तो आंसर की में बदलाव करें। 

साल 2023 राज्य सेवा में बदली थी आंसर की

इस मामले में इस फुल बेंच के विपरीत फैसला सिंगल बेंच ने राज्य सेवा परीक्षा 2023 को लेकर दिया था। तब प्री के दो सवालों को लेकर लगी आपत्तियों को हाईकोर्ट ने मान्य किया। इसमें बदलाव के आदेश पीएससी को दिए। लेकिन तब पीएससी ने डबल बैंच में स्टे लिया। इसके बाद फुल बेंच के फैसले का हवाला दिया गया। आंसर की में दखल नहीं देने की बात कही गई। सिंगल बेंच के आदेश को खारिज किया गया। इस फैसले से स्पष्ट हुआ कि आंसर की में कोई बदलाव नहीं होगा।

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