अमानत राशि लेकर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना भूले नगर निगम

मध्यप्रदेश में भवनों पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना जरूरी है। इसके लिए नगरीय निकाय बिल्डिंग परमिशन के समय अमानत राशि जमा कराते हैं लेकिन सिस्टम लगाते ही नहीं हैं।

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Sanjay Sharma
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The Sootr

water harvasting system Photograph: (The Sootr)

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BHOPAL. गर्मियों में पानी की किल्लत की समस्या का समाधान करने का यही सही मौका है। बरसात में हम जितना पानी धरती के गर्भ में सहेज लेंगे वहीं पानी हमें ट्यूबवेल और हैंडपम्पों के जरिए साल भर वापस मिलता रहेगा।

बारिश के पानी को धरती के गर्भ तक पहुंचाने के लिए सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर जागरुकता अभियान चलाती है। इससे लोगों में तो जागरुकता आ रही है लेकिन जिन संस्थाओं के पास इसके क्रियान्वयन की जवाबदेही है वे पल्ला झाड़े बैठी हैं। नगर पालिका अधिनियम में नगरीय निकायों को दायित्व सौंपा गया है, लेकिन अमानत राशि होने के बाद भी इसमें उनकी रुचि नहीं हैं।

नगरीय क्षेत्र में निर्माण की अनुमति के लिए अमानत राशि जमा करानी होती है। ऐसा इसलिए किया गया ताकि लोगों की लापरवाही की स्थिति में नगरीय निकाय ये काम करा सकें। बिल्डिंग परमिशन के समय नगरीय निकाय यह राशि तो जमा करा रहे हैं, लेकिन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने में सुस्त हैं।

प्रदेश के नगर निगम और नगर पालिकाओं के पास वाटर हार्वेस्टिंग की मद में करोड़ों रुपए का फंड जमा हो चुका है। अकेले भोपाल की ही बात करें तो बीते तीन साल में ही यह राशि तीन करोड़ से ज्यादा हो गई है। जबलपुर नगर निगम ने बीते दस सालों में भवन निर्माण की जो अनुमतियां जारी की हैं, उनसे वाटर हार्वेस्टिंग की मद में 5 करोड़ से भी अधिक राशि जमा हुई है।

नगर निगम ग्वालियर के खजाने में बीते तीन साल में एक करोड़ रुपए जमा हुए हैं। इनके अलावा उज्जैन, रीवा, सागर, बुरहानपुर, खंडवा, देवास, रतलाम, मुरैना, सतना, कटनी जैसे नगर निगमों के खजाने में वाटर हार्वेस्टिंग के हिस्से का करोड़ों रुपए जमा है। 

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अमानत राशि ही वापस नहीं ले रहे लोग

ट्यूबवेलों से भूमिगत पानी के बेहिसाब दोहन की वजह से जलस्तर काफी नीचे चला गया है। इस वजह से प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में सर्दी बीतने से पहले ही  पानी की किल्लत शुरू हो जाती है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में तो आमजन की जलापूर्ति पूरी तरह नदियों और तालाबों पर निर्भर हो गई है। पानी की इस विकराल समस्या के बावजूद जहां लोग लापरवाह बने हुए हैं।

वहीं नगरीय निकाय भी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। बरसात में व्यर्थ बह जाने वाले पानी को भूगर्भ तक पहुंचाने के लिए ठोस उपायों की अनदेखी की जा रही है। लोग बिल्डिंग परमिशन लेते समय जो राशि जमा कराते हैं वह वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की ग्यारंटी के रूप में होती है। लोग भी उलझन से बचने राशि वापस लेने नहीं आते और निकाय भी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। 

4 पॉइंट्स में समझें पूरी खबर

  • वाटर हार्वेस्टिंग पर जोर क्यों: प्रदेश में पानी की किल्लत को हल करने के लिए, सरकार ने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को अनिवार्य किया है। यह सिस्टम बारिश के पानी को जमीन में जमा करके जलस्तर को रिचार्ज करता है। यह जलस्रोतों के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर गर्मियों में पानी की कमी को पूरा करने के लिए।

  • अमानत राशि का मुद्दा: नगर निगम और नगर पालिकाओं के पास वाटर हार्वेस्टिंग के लिए जमा की गई करोड़ों रुपये की राशि है, लेकिन इसे सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा। जबकि बिल्डिंग परमिशन के दौरान यह राशि ली जाती है, लेकिन अधिकांश निर्माणों में इस प्रणाली की अनुपस्थिति है।

  • नगरीय निकायों की जिम्मेदारी: सरकार ने नगर पालिका अधिनियम के तहत नगरीय निकायों को जिम्मेदार ठहराया है। हालांकि, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, और जबलपुर जैसे बड़े शहरों में यह सिस्टम सही तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है, और निकायों ने इन निधियों का उपयोग अन्य कार्यों में कर लिया है।

  • शहरी क्षेत्रों में स्थिति: प्रदेश के प्रमुख शहरों में, जैसे भोपाल और जबलपुर, सरकार द्वारा दिए गए बिल्डिंग परमिशन के बावजूद 10,000 से ज्यादा इमारतों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाया गया है। यह स्थिति चिंता का विषय है क्योंकि जलवायु संकट के कारण जल स्तर गिरता जा रहा है।

 

पानी सहेजना भूल खजाना भर रहे निकाय

भोपाल नगर निगम ने वित्त वर्ष 2024-25 में बिल्डिंग परमिशन देते समय वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की मद में 1,16,95,629 की अमानत राशि जमा कराई है। इससे पहले 2023-24 में जमा की गई अमानत राशि 80,48,000 रुपए थी वहीं 2022-23 में नगर निगम के खजाने में वाटर हार्वेस्टिंग के मद में 1,07,21,000 रुपए पहुंचे थे। इससे पहले के सालों में भी नगर निगम को इस मद में बेहिसाब रुपया मिलता रहा है।

वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर खजाना भरने में जबलपुर नगर निगम भी पीछे नहीं है। साल 2019 तक जबलपुर में 4809 बिल्डिंग परमिशन जारी करने के दौरान इस मद में 5 करोड़ रुपए जमा थे। इसके बाद के पांच साल यानी 2024 के बीच भी 2 करोड़ रुपए नगर निगम को मिले हैं। ग्वालियर नगर निगम वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के नाम पर रुपया जमा करने में प्रदेश के तीन बड़े शहरों में चौथे नंबर पर है। इसके बावजूद नगर निगम को हर तीन साल में बिल्डिंग परमिशन के दौरान 80 लाख से एक करोड़ रुपए मिल रहे हैं। 

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वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की अमानत राशि

भूखंड का आकार राशि
140 से 200 वर्गफीट तक 7,000
200 से 300 वर्गफीट तक 10,000
300 से 400 वर्गफीट तक 12,000
400 वर्गफीट से अधिक 15,000

 

 

सरकारी भवनों पर भी नहीं लगे सिस्टम

मध्यप्रदेश में भले ही भवनों पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाना जरूरी है लेकिन इस नियम का उल्लंघन किया जा रहा है। न तो लोग इसके लिए जागरुकता दिखा रहे हैं और जिम्मेदार संस्थाएं भी आंखें मूंदे बैठी हैं। सरकारी प्रोजेक्टों में भी इसकी अनिवार्यता को अनदेखा कर अनुमतियां जारी की जा रही हैं।

राजधानी भोपाल की बात करें तो बीते कुछ सालों में अनगिनत हाउसिंग प्रोजेक्टों को मंजूरी दी गई है। इनमें से कुछ तो पूरी तरह से बनकर तैयार हो चुके हैं लेकिन उनमें भी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं लगाए गए हैं। वहीं सरकार के विभागों के भवनों में भी या तो ये सिस्टम लगाए ही नहीं गए या फिर रस्मअदायगी कर छोड़ दिए गए हैं। यही हालत प्रदेश के दूसरे शहरों की है। 

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अमानत राशि लेकर भूले निकाय  

नगरीय निकायों द्वारा बीते दो सालों में बेहिसाब बिल्डिंग परमिशन जारी की गई हैं। इसके बदले में लोगों द्वारा जो अमानत राशि जमा कराई गई थी उसके बदले में निकाय हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाना ही भूल गए। जबलपुर, ग्वालियर, इंदौर और भोपाल में ही बीते दो सालों में 10 हजार से ज्यादा निजीऔर सरकारी इमारतें बनी हैं। लेकिन इनमें से 10 फीसदी पर भी वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम नहीं है। सरकार के स्तर पर भी नगरीय निकायों पर वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की कसावट नहीं है। इसका फायदा उठाकर निकाय इस राशि का उपयोग दूसरे कामों में कर रहे हैं। 

जलस्तर को ऐसे करता है रिचार्ज 

वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम एक प्रणाली है जो बारिश के व्यर्थ बहते पानी को जमीन के नीचे उतारता है। इसमें बारिश में छत पर बरसने वाले पानी को पाइप लाइन के सहारे नीचे उतारा जाता है और एक फिल्टर की मदद से साफ कर जमीन के अंदर पहुंचाया जाता है। हार्वेस्टिंग सिस्टम को बाजार से खरीदा या स्वयं तैयार किया जा सकता है।

आमतौर पर एक हजार वर्गफीट की छत से बारिश के दिनों में आठ लाख लीटर पानी से भूमिगत जल स्तर को रिचार्ज किया जा सकता है। इस लिहाज से अकेले भोपाल में सरकारी संस्थाओं की छतों से ही करोड़ों लीटर पानी जमीन में उतारकर जल स्तर को बढ़ा सकते हैं।  

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