जबलपुर जिले में जमीन के एक नामांतरण ( मालिकाना हक बदलने ) से जुड़ा मामला इन दिनों सुर्खियों में है। इस प्रकरण में तहसीलदार और पटवारी पर कार्रवाई होने के बाद पूरे जिले के तहसीलदारों में भारी असंतोष है। उनका कहना है कि जो अधिकारी गड़बड़ी को समय रहते पकड़ ले और उसे रोकने की कोशिश करे, अगर उसी को आरोपी बना दिया जाए, तो यह न्याय के बिल्कुल खिलाफ है। इस मुद्दे को लेकर तहसीलदारों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और साफ शब्दों में कहा कि इस पूरे मामले की जांच में निष्पक्षता नहीं बरती गई। अधिकारियों ने आरोप लगाया कि EOW (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) ने आधे-अधूरे तथ्यों के आधार पर तहसीलदार और पटवारी को दोषी ठहराने की कोशिश की, जबकि असली गड़बड़ी करने वाला कोई और था।
तहसीलदारों की दलील- आवेदन में खसरा नंबर गलत थे
इस मामले की जड़ में जो विवाद है, वह एक सामान्य सी तकनीकी गलती से शुरू हुआ। हरचंद नाम के व्यक्ति ने जमीन के नामांतरण के लिए आवेदन दिया था, जिसमें खसरा नंबर 17 लिखा था। लेकिन बाद में जब उस आवेदन के साथ लगी जमीन की नक्शे की प्रति (खसरा प्रतिलिपि) देखी गई, तो उसमें खाता नंबर 17 के अंतर्गत खसरा नंबर 86/2 और 87/2 दर्ज था। यानी, जिसने आवेदन किया उसने गलती से खाता नंबर को खसरा नंबर समझ लिया। यह आम बात है क्योंकि गांवों में ऐसे दस्तावेजों में अकसर भ्रम होता है। पटवारी ने जब जमीन की मुआयना (जांच) की तो उसने खसरा प्रति में दर्ज असली जमीन का ही पंचनामा (निरीक्षण रिपोर्ट) तैयार किया। तहसीलदार ने भी उसी आधार पर नामांतरण की प्रक्रिया पूरी की। अधिकारियों का कहना है कि ऐसी मामूली गलतियों के आधार पर किसी आवेदन को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जाता।
ये खबरें भी पढ़ें...
इनसाइड स्टोरी: 4 महीने में बदला छत्तीसगढ़ की अफसरशाही का चेहरा, सुबोध सिंह ने कैसी कसी लगाम
खबर छपने से खफा भिंड एसपी का पुलिसिया अंदाज, पहले प्यार से दफ्तर बुलाया, फिर करवाई पिटाई
फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र की सच्चाई सबसे पहले पटवारी लाए
प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक और अहम बात सामने आई कि इस केस में जिस फर्जी मृत्यु प्रमाणपत्र के आधार पर नामांतरण हुआ था, उसे सबसे पहले पटवारी ने ही पहचाना था। पटवारी को जब इस प्रमाणपत्र पर शक हुआ तो उसने इसकी सूचना तहसीलदार को दी। तहसीलदार ने बिना किसी शिकायत का इंतजार किए, स्वयं नगर निगम से प्रमाणपत्र की जांच करवाई। नगर निगम ने बताया कि यह प्रमाणपत्र असली नहीं है, यानी फर्जी तरीके से बनाया गया था। तहसीलदार ने इस रिपोर्ट को मिलते ही उसी दिन नामांतरण को रद्द कर दिया। यह दर्शाता है कि अधिकारियों ने गलती होने के बाद तुरंत और जिम्मेदारी के साथ कार्रवाई की। उन्होंने कोई अपराध नहीं किया बल्कि गड़बड़ी को रोका।
ये खबरें भी पढ़ें...
प्रदीप मिश्रा का विवादास्पद बयान, अब लड़कियों के पहनावे को लेकर क्या बोल गए?
छत्तीसगढ़ में पुलिस विभाग में तबादले, बड़ी संख्या में इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, एएसआई के ट्रांसफर, देखें सूची
गलती पकड़ने वालों को ही आरोपी बनाने के आरोप
तहसीलदारों का कहना है कि यह मामला न्याय की मूल भावना के बिल्कुल उलट है। उनके अनुसार किसी मामले में गलती को पकड़ने वाला और उसे रोकने वाला अधिकारी अगर खुद कटघरे में खड़ा कर दिया जाए, तो यह सरकारी सेवा में काम कर रहे ईमानदार अधिकारियों के मनोबल को तोड़ने जैसा है। इससे साफ संदेश जाएगा कि किसी भी गड़बड़ी को रोकने की कोशिश करना ही सबसे बड़ा जोखिम बन सकता है। तहसीलदारों ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से अच्छे अधिकारी डरे रहेंगे और नतीजतन जनता के कामों में देरी और अड़चनें बढ़ेंगी।
तहसीलदारों की अपील, हम जांच से नहीं डरते, लेकिन जांच सही हो
जिले के तहसीलदारों ने कहा कि वे जांच से नहीं घबराते, लेकिन उन्हें यह जरूर उम्मीद है कि जांच निष्पक्ष और तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। इस प्रकरण में जिस तरह की बातें जांच रिपोर्ट में लिखी गई हैं, उनसे लगता है कि जांचकर्ताओं को राजस्व संबंधी दस्तावेजों की सही जानकारी नहीं थी। तहसीलदारों ने मांग की है कि इस मामले की दोबारा गहराई से जांच की जाए ताकि असली दोषी सामने आए और ईमानदार अधिकारियों को बेवजह बदनाम न किया जाए।
जमीनों का नामांतरण | मध्यप्रदेश