नर्मदा साहित्य मंथन में संघ के वरिष्ठ प्रचारक सुरेश सोनी ने समझाई सनातन संस्कृति

इंदौर में आयोजित विश्व संवाद केंद्र के प्रतिष्ठित साहित्योत्सव नर्मदा साहित्य मंथन का DAVV सभागृह में शुभारंभ हुआ। इस मौके पर RSS के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी ने सनातनी संस्कृति पर अपने विचार रखें।

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Sanjay gupta
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INDORE. विश्व संवाद केंद्र के प्रतिष्ठित साहित्योत्सव नर्मदा साहित्य मंथन 'अहिल्या पर्व' का शुक्रवार को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय सभागृह में शुभारंभ हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य सुरेश सोनी ने मुख्य तौर पर भारत की सनातनी संस्कृति पर जोर दिया और यह क्या है, इस पर आधारित अपनी बातें रखी। इस अवसर पर पद्म पुरस्कार के लिए चयनित निमाड़ के साहित्यकार जगदीश जोशीला का सम्मान भी किया गया। पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और विश्व संवाद केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में हो रहे इस आयोजन का यह चौथा सोपान है।

हिंदुओं में इच्छाशक्ति की कमी से भारत में कई पाकिस्तान

लेखक, चिंतक क्षमा कौल ने कहा कि वास्तव में हिंदुओं में इच्छा शक्ति की कमी है, जिसके कारण आज भी यह कहना गलत होगा कि आज भी कश्मीर पूरी तरह से हमारा है। हिंदू समाज की इच्छा शक्ति की कमी का ही प्रभाव है कि पूरे भारत में कई जगहों पर छोटे-छोटे पाकिस्तान बन गए है। हिंदुओं को अपने पर हुए अत्याचारों को याद रखना चाहिए, ताकि भविष्य में उन्हें दोबारा होने से रोका जा सके। कश्मीरी हिंदुओं की वापसी के बिना कश्मीर भारत का नहीं होगा।

यह है हमारी सनातन संस्कृति

सुरेश सोनी ने कहा कि  समाज में मूल्य प्रणाली को स्थापित करने के लिए विमर्श गढ़ने और उसे प्रसारित करने की आवश्यकता है। हमारी सनातनी संस्कृति मूल्य आधारित ही रही है, लेकिन समय-समय पर नए विमर्श गढ़ने की जरूरत है।

उन्होंने 'विचार खंडन-मंडन की भारतीय परंपरा’ विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा कि राष्ट्र निर्माण में आचार, विचार और अनुभूति की आवश्यकता होती है। भारत महापुरूषों की धरती है और इसकी आचार-विचार की अपनी एक महान सनातनी परंपरा रही है। आज भी भारत में सनातनी परंपरा विकसित और स्थापित है। समय-समय पर विचारों पर आक्रमण होते रहते हैं। ऐसे में हमें अपने विचारों को शुद्ध करने की जरूरत होती है। विचार शुद्धिकरण के लिए विचारों का खंडन-मंडन जरूरी है। समाज में मूल्य स्थापित होना ही चाहिए। मूल्यों के बिना आदर्श समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है और इसके लिए विमर्श गढ़ने ही होंगे।

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नर्मदा एक नदी नहीं पूरी सभ्यता है...

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलगुरू राकेश सिंघई ने कहा कि मां नर्मदा केवल एक नदी नहीं है, बल्कि एक पूरी सभ्यता है। उसी तरह मां अहिल्या केवल एक नारी नहीं हैं बल्कि वह नारी शक्ति का प्रतीक हैं। मां नर्मदा जीवनदायिनी है तो मां अहिल्या संस्कृति और नारी शक्ति की प्रतीक हैं। दोनों हमारे लिए पूज्यनीय और प्रेरणादाई हैं। साहित्यकार जगदीश जोशीला ने मां अहिल्या को महान नारी बताते हुए कहा कि मां अहिल्या वास्तव में नारी शक्ति की मिसाल हैं।

मां नर्मदा के जल का कलश भी लाए

तीन दिवसीय नर्मदा साहित्य मंथन के प्रथम दिवस का आरंभ मां नर्मदा के जलपूरित कलश की स्थापना एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। पूर्ण सम्मान और श्रृद्धा से मां नर्मदा के जल कलश की अगवानी की गई। उद्घाटन में वरिष्ठ साहित्यकार देवकृष्ण व्यास, आयोजन संयोजक श्रीरंगजी पेंढ़ारकर उपस्थित थे। वक्ता, चिंतक और साहित्यकार श्याम मनावत ने विश्व कल्याण में रामराज्य की भूमिका विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, हमारे आस-पास ही ऐसे लोग होते हैं, जो हमारे विरोध में काम करते है, लेकिन इसके बीच ही हमें अपना रास्ता निकालना होता है। जो रास्ता निकाल लेते है, उनकी ही पहचान होती है और बाद में समाज का नेतृत्व करते है।  वरिष्ठ समाजिक कार्यकर्ता भारती ठाकुर ने कहा, मां अहिल्या का जीवन पूरी तरह से सामाजिक आदर्श स्थिति का रहा है।

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कश्मीरी पंडितों की भी उठी बात

हिंदू विस्थापन की पीड़ा विषय पर अपने विचार रखते हुए लेखक, चिंतक क्षमा कौल ने कहा, कश्मीरी पंड़ितों ने ऐसा उत्पीड़न सहन किया है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। कश्मीरी पंडितों की अपनी व्यथा है, जिस पर पूरे भारतीय समाज को समझना होगा। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर में विकास तो हो रहा है, लेकिन वह मशीनरी विकास है, जबकि वहां आज मानवीय विकास की जरूरत है।

चारण साहित्य के गिरधरदान रतनू ने हिंदू संस्कृति रक्षा में मातृशक्ति का योगदान विषय पर अपनी बात रखी। मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक विकास दवे ने मंचीय कविता का वर्तमान परिदृश्य- चिंताएं और समाधान विषय पर बात रखते हुए समूह परिचर्चा की। चर्चा में गौरव साक्षी, अमर अक्षर और देवकृष्ण व्यास शामिल हुए।

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उद्घाटन सत्र में यह भी हुआ

आरंभ में मां अहिल्या के जीवन पर आधारित चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन मालवा प्रांत के संघचालक प्रकाश शास्त्री और दिलीप सिंह जाधव ने किया। मां अहिल्या की मूर्ति पर माल्यार्पण कर प्रदर्शनी का श्रीगणेश हुआ। अपूर्वा गुप्ता और उनके सहयोगियों ने नर्मदाष्टकम कत्थक नृत्य की प्रस्तुति भी दी। पद्म पुरस्कार के लिए चयनित साहित्यकार जगदीश जोशीला को शाल-श्रीफल के साथ ही मां अहिल्या की मूर्ति देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मालवा प्रांत की प्रसिद्ध पत्रिका जागृत मालवा के विशेषांक का विमोचन भी किया गया।

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