NEP में बेहतर शिक्षा के दावों की हकीकत, कॉलेजों में लैब न टेक्नीशियन

मध्य प्रदेश में नई शिक्षा नीति में भले ही आधुनिक शिक्षा के लाख दावे किए गए हों लेकिन शिक्षा की हालत जस की तस है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू तो कर दी गई है लेकिन इसके लिए जरूरी इंतजाम अब भी नहीं है।

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Sanjay Sharma
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Photograph: (the sootr)

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BHOPAL. नई शिक्षा नीति में भले ही आधुनिक शिक्षा के लाख दावे किए गए हों लेकिन प्रदेश में शिक्षा की हालत जस की तस है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू तो कर दी गई है लेकिन इसके लिए जरूरी इंतजाम अब भी नहीं है। उच्च शिक्षा की स्थिति तो और भी बेहाल है। कॉलेजों में प्रायोगिक कक्षाओं के संचालन के लिए उपकरणों की कमी तो है ही उन्हें संभालने वाले तकनीशियन भी नहीं है। सरकार पीएम श्री कॉलेजों में शिक्षा के बेहतर अवसरों के खूब दावे कर रही है लेकिन भोपाल में पीएमश्री हमीदिया पीजी कॉलेज में कोई बदलाव नहीं आया है। कहने को ये कॉलेज पीएमश्री है लेकिन यहां विज्ञान के छात्रों के लिए प्रयोगशाला ही नहीं है। उन्हें प्रायोगिक कक्षाओं के लिए अब भी मोतीलाल नेहरु साइंस कॉलेज ही जाना पड़ रहा है। राजधानी के दूसरे कॉलेजों में भी इससे अलग हालात नहीं है। 

एनईपी से भी नहीं आया बदलाव  

उच्च शिक्षा को बेहतर बनाने एनईपी यानी नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बेहिसाब प्रावधान किए गए हैं। आधुनिक, रोजगारमूलक शिक्षा के लिए कई बदलाव भी इसमें शामिल हैं। इन प्रावधानों के बाद भी प्रदेश में उच्च शिक्षा पुराने ढर्रे पर ही है। ऊपरी दिखावे के लिए चमक_दमक वाले भवन तो हैं लेकिन अंदर पढ़ाई के संसाधन गायब हैं। विज्ञान विषय के छात्र अब भी प्रायोगिक कक्षाओं से दूर हैं क्योंकि कहीं प्रयोगशाला नहीं है तो कहीं उपकरणों का टोटा है। इससे भी बड़ी दिक्कत प्रयोगशाला का संचालन करने वाले तकनीशियन और अटेंडरों की कमी के कारण है। 

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तकनीशियनों के आधे पद खाली 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रायोगिक अध्ययन को प्राथमिकता पर रखा गया है लेकिन मैदानी हकीकत अलग है। प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में प्रयोगशाला तकनीशियनों के 1267 पद स्वीकृत हैं लेकिन कार्यरत केवल 680 ही हैं। वहीं प्रयोगशाला अटेंडर के 4215 पदों के विरुद्ध केवल 2203 पर ही कर्मचारी काम कर रहे हैं। यानी प्रदेश में तकनीशियनों के 587 और अटेंडरों के 2012 पद लंबे समय से खाली पड़े हैं। पदों के खाली होने से कॉलेजों की प्रयोगशालाएं भगवानभरोसे हैं।

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परीक्षा में दो- तीन शिफ्ट में काम

तकनीशियन और अटेंडर की कमी के कारण कॉलेजों में प्रायोगिक शिक्षा कामचलाऊ हालत में है। प्रायोगिक कक्षाएं केवल रस्मअदायगी बन गई हैं। संसाधन और कर्मचारी न होने से परीक्षा के दौरान प्रयोगशालाओं में दो या तीन शिफ्ट में काम करना होता है। इस वजह से प्रायोगिक परीक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। 

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राजधानी के कॉलेजों की स्थिति

मोतीलाल साइंस कॉलेज प्रदेश का सबसे बड़ा साइंस कॉलेज है। यहां 6 साइंस लैब में दो टेक्नीशियन और दो अटेंडर हैं। बाबूलाल गौर कॉलेज की स्थिति भी अलग नहीं है। यहां 4 प्रयोगशालाओं पर सिर्फ एक टेक्नीशियन है। पीएमश्री हमीदिया पीजी कॉलेज में प्रयोगशालाएं न होने से छात्र एवीएम कॉलेजों की लैब के भरोसे हैं। छात्रों का कहना है नई शिक्षा नीति के दावों के विपरीत उच्च शिक्षा की हालत बदतर है। जो प्रावधान है वे फाइल पर नहीं जमीन पर होने चाहिए।

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