भोपाल।
मध्य प्रदेश विधानसभा ने गुरुवार को श्रम कानूनों में बड़ा बदलाव करते हुए नया विधेयक पारित किया है। अब राज्य में किसी भी उद्योग में हड़ताल या तालाबंदी से पहले 45 दिन पूर्व सूचना देना अनिवार्य होगा। सरकार का दावा है कि इससे उद्योगों को स्थायित्व मिलेगा और निवेश को बढ़ावा मिलेगा। वहीं कांग्रेस ने इस विधेयक को मज़दूरों के अधिकारों का हनन बताते हुए इसका विरोध किया।
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कांग्रेस विधायकों ने सदन से वॉकआउट करते हुए कहा कि यह मजदूरों की हड़ताल और आंदोलन करने की आज़ादी छीनने वाला कानून है। विधायक ओमकार सिंह मरकाम ने आरोप लगाया, यह पूंजीपतियों की सरकार है, जो मज़दूरों की आवाज़ दबा रही है।
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ठेकेदारी और कारखाना लाइसेंसिंग में भी राहत
श्रम कानून संशोधन के बाद मप्र में अब ठेकेदारों को लाइसेंस लेने की बाध्यता 50 कर्मचारियों के बाद लागू होगी। पहले यह सीमा 20 कर्मचारियों की थी। संशोधित अधिनियम में फैक्ट्री लाइसेंस के लिए कर्मचारियों की न्यूनतम संख्या 40 कर दी गई है। अधिनियम पर चर्चा के दौरान श्रम मंत्री प्रहलाद पटेल ने दावा किया कि इससे औद्योगिक माहौल सुधरेगा और नई नौकरियां आएंगी। पटेल ने कहा, नया कानून उद्योगों और श्रमिकों दोनों पक्षों के हित में है।
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आउट सोर्स कर्मचारियों का मुद्दा भी गूंजा
प्रदेश में आउट सोर्स रखे जा रहे कर्मचारियों का मामला भी उठा। कांग्रेस विधायक दिनेश जैन बोस ने भी कहा कि आउटसोर्स कर्मचारी का ठेका सिस्टम के माध्यम से भारी शोषण होता है।
कंप्यूटर ऑपरेटर को सरकार 18 हजार का भुगतान करती है, लेकिन उन्हें 12 हजार रुपए से 13 हजार रुपए मिलते हैं। बीच में बिचौलिए पैसे खा जाते हैं, इसलिए सीधे आउटसोर्स कर्मचारी के खाते में पैसे डालने की व्यवस्था होनी चाहिए।