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Photograph: (thesootr)
"अक्सर जब कोई लड़की घर से निकलकर लौटकर वापस नहीं आती तो सबसे पहला शक होता है– कहीं वो अपराध का शिकार तो नहीं हो गई? ये कहानी भी शुरू हुई थी एक ऐसी ही गुमशुदगी के साथ… एक लॉ स्टूडेंट… एक एडवोकेट… और उसके सात दिन तक के रहस्यमयी सफर ने पुलिस, परिवार और मीडिया सबको हिलाकर रख दिया।
7 अगस्त की रात– इंदौर।
अर्चना तिवारी अपने घर से निकली। घरवालों को यही लगा कि रोज की तरह कहीं जा रही है। लेकिन समय गुजरा… रात बीती… और लड़की वापस नहीं लौटी। सुबह होते ही परिवार के चेहरे पर बेचैनी थी। सामान… बैग… सबकुछ कमरे में मिल गया। मोबाइल की आखिरी लोकेशन मिडघाट सेक्शन पर मिली– जहां नेटवर्क बंद हो गया था।
पुलिस की पहली थ्योरी साफ थी– लड़की किसी हादसे की शिकार हो गई। इसलिए मिडघाट इलाके में कॉम्बिंग ऑपरेशन चला। हर स्टेशन के सीसीटीवी, हर लोकेशन की तलाशी। पर लड़की का कोई सुराग नहीं…
पहला खुलासा...
500 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे खंगाले
जब जिलों की पुलिस ने 500 से ज़्यादा सीसीटीवी कैमरे खंगाले, तो शक की सुई घूमी सारांश नाम के लड़के पर। लड़की के कॉल डीटेल, आईपी लॉग्स और वॉट्सऐप की डिटेक्ट हुई कॉल्स से पता चला – अर्चना का लगातार संपर्क इसी लड़के से था।
सवाल ये उठा – क्या दोनों साथ थे? सारांश को उठाकर पूछताछ हुई, तो कहानी परत दर परत खुलने लगी-
दूसरा खुलासा...
सारांश ने कबूला-
- अर्चना ने खुद ही ये पूरा प्लान बनाया था। परिवार का दबाव, शादी की ज़िद, और अपने लिए नई शुरुआत की चाहत।
- लेकिन वो अकेली नहीं थी– इस मिशन मिसिंग में शामिल था तेजिंदर, जो पहले से ही फ्रॉड और पैसों के मामलों में लिप्त था।
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तीसरा खुलासा...
कमाल की प्लानिंग-
- 7 अगस्त की रात – अर्चना ने सबकुछ जान-बूझकर किया। सामान कमरे में छोड़ दिया, ताकि लगे कि शायद कोई हादसा हुआ है।
- दरअसल वो सारांश और तेजिंदर के साथ शहर से बाहर निकल गई।
- इन्होंने टोल नाके से बचने के लिए बाइपास रूट चुना, ताकि गाड़ी नंबर कैमरे में कैद न हो।
- शुजालपुर में रुककर नया मोबाइल खरीदा।
- फिर जब मीडिया में केस तूल पकड़ा, तो प्लान बना – “मध्यप्रदेश छोड़ना पड़ेगा।”
- गाड़ी से होते-होते ये हैदराबाद पहुंचे।
- फिर बुरहानपुर से बस पकड़ी और निकल गए नेपाल बॉर्डर की तरफ।
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तो असली मास्टरमाइंड कौन!
चौंकाने वाली सच्चाई ये थी कि मामले का असली मास्टरमाइंड कोई और नहीं बल्कि खुद अर्चना तिवारी थी। एक लॉ स्टूडेंट, सिस्टम को अच्छे से जानती हुई है, उसने ऐसा प्लान बनाया था कि पुलिस उसे ढूंढ ही न पाए। लेकिन लगातार ट्रैकिंग, डिजिटल क्लूज और टीमवर्क ने पूरी साजिश खोल दी।
कहानी के मुख्य पात्र और उनकी भूमिकाएं...अर्चना तिवारी (मिसिंग लड़की):अर्चना एक शिक्षित और होशियार लड़की थी, जो अपने माता-पिता के दबाव से बचने के लिए अपने परिवार से गायब हो गई थी। वह एक एडवोकेट थी और सिविल जज बनने की तैयारी कर रही थी। उसकी योजना थी कि वह किसी दूसरे नाम और पहचान के साथ एक नई जिंदगी शुरू करेगी। अर्चना ने अपनी मिसिंग प्लानिंग पूरी तरह से सोच-समझ कर बनाई थी। सारांश (मुख्य सह आरोपी):सारांश एक युवा लड़का था, जिसने अर्चना के साथ मिलकर इस पूरी साजिश को अंजाम दिया। वह एक ड्रोन स्टार्टअप चला रहा था और उसका कनेक्शन नेपाल तक था। उसकी अहम भूमिका थी इस भागने की योजना को अमली जामा पहनाने में। तेजिंदर (पूर्व ड्राइवर और धोखेबाज):तेजिंदर, जो पहले सारांश के ड्राइवर के रूप में काम कर चुका था, इस योजना में शामिल था। उसे पहले इस केस में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था, लेकिन बाद में उसकी भूमिका की जांच की गई और वह इस साजिश का हिस्सा निकला। राम तोमर (पारिवारिक संबंधों में आरोपी):राम तोमर, एक अन्य व्यक्ति था जो अर्चना से संपर्क में था। उसने कई बार अर्चना को ग्वालियर बुलाने के प्रयास किए थे। हालांकि, अर्चना ने कभी भी उसे सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया। वह सिर्फ एक संदिग्ध व्यक्ति था, जिसकी जांच की गई, लेकिन वह इस साजिश में शामिल नहीं था। |
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कानूनी पहलू
- कानून के हिसाब से, चूंकि अर्चना बालिग़ थी और उसने अपनी मर्जी से ये कदम उठाया– इस पर कोई आपराधिक धारा लागू नहीं होती। पर
- समाज में ये केस कई सवाल छोड़ गया…
- क्या परिवार का शादी का दबाव आज भी युवाओं को इस कदर भागने पर मजबूर करता है?
- या फिर यह आधुनिक सोच की आड़ में रिश्तों और भरोसे को धोखा है?
घटना की टाइमलाइन...👉 6 अगस्त: अर्चना तिवारी घर से गायब हो जाती है। वह अपने सामान को जानबूझकर सीट पर छोड़कर चली जाती है, जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वह गिर गई है। 👉 7 अगस्त (रात 1 बजे): तेजिंदर को दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है। उसकी गिरफ्तारी से जुड़ी जानकारी जल्दी ही अपराध शाखा तक पहुंचती है। 👉 8 अगस्त: पुलिस अर्चना के मोबाइल के बारे में जांच करती है और पता चलता है कि उसने मोबाइल को एयरप्लेन मोड में डाल दिया था। उसे जल्द ही गायब होने से पहले नजदीकी इलाके में एक नया सिम कार्ड खरीदा गया था। 👉 9 अगस्त: अर्चना और सारांश मध्यप्रदेश से बाहर निकलने का निर्णय लेते हैं। दोनों लोग सुजालपुर होते हुए बुरहानपुर और फिर हैदराबाद जाते हैं। 👉 12 अगस्त: पुलिस को पता चलता है कि अर्चना और सारांश ने अपनी यात्रा जारी रखी और काठमांडू पहुंच गए। 👉 14 अगस्त: अर्चना काठमांडू में थी और सारांश ने उसे अपनी मदद से नेपाल से भारतीय सीमा पार करवाने की योजना बनाई। 👉 15 अगस्त: अर्चना का लोकेशन पुलिस के पास आता है। भारतीय पुलिस ने नेपाल पुलिस की मदद से काठमांडू से अर्चना को बरामद किया। |
ऐसे हुआ केस का पर्दाफाश
यह मामला जांच के दौरान कई मोड़ लेता है। अर्चना ने जब अपनी योजना बनाई थी तो उसने पुलिस की कई प्रक्रियाओं को ध्यान में रखा। उसने यह सुनिश्चित किया कि वह कहीं भी यात्रा करते वक्त टोल नाका या सीसीटीवी कैमरों के आसपास न आए। उसने अपना मोबाइल बंद कर दिया था और अलग से एक नया सिम कार्ड लिया था।
जब पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और अन्य डिजिटल साक्ष्यों की जाँच की, तो धीरे-धीरे यह बात सामने आई कि अर्चना और सारांश ने मिलकर यह योजना बनाई थी। सारांश की लगातार लंबी कॉल्स और अर्चना के साथ उसके संबंधों को देखते हुए पुलिस को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है।
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विशेष जांच और तकनीकी उपाय
पुलिस ने सीडीआर (Call Data Records) और आईपीडीआर (Internet Protocol Data Records) की जाँच की। पुलिस के साइबर और टेक्निकल एक्सपर्ट्स ने अर्चना के मोबाइल और डिजिटल डिवाइस की पूरी जांच की। जब पुलिस ने सारांश से पूछताछ की, तो उसने पूरी साजिश का खुलासा किया और बताया कि कैसे अर्चना ने अपनी योजना बनाई थी।
🎭 निष्कर्ष...
18 दिन की रहस्यमयी गुमशुदगी खत्म हुई नेपाल बॉर्डर पर... पुलिस के लिए ये केस सिर्फ गुमशुदगी नहीं, बल्कि “प्लांड मिसिंग” का वो चेहरा था जिसने 4 राज्यों की पुलिस, मीडिया और पूरे समाज को हिलाकर रख दिया।
"हर गुमशुदगी अपहरण नहीं होती… हर गुमशुदा लाश नहीं बनता… कभी-कभी… गायब होना भी एक सोचा-समझा खेल होता है।"
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