News Strike : 17 साल में बने कितने जांच आयोग, रिपोर्ट पर सरकार ने क्या लिया एक्शन?

मध्यप्रदेश में ऐसे कितने जांच आयोग हैं जो सिर्फ हाथी के खाने के दांत बनकर रह गए हैं। ये जानने के बाद आप चाहें तो सवाल पूछें कि उन आयोगों की रिपोर्ट पर क्या हुआ और जनता को जो पैसा उन पर लगा, उसका हिसाब कौन देगा...

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Harish Divekar
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News Strike Photograph: (THE SOOTR)

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NEWS STRIKE : मध्यप्रदेश में अब तक कितने जांच आयोग बने और उनकी जांच पर सरकार ने क्या एक्शन लिया। इस सवाल का जवाब आपको हैरान कर सकता है। प्रदेश में पिछले कुछ सालों में अलग-अलग मामलों के लिए कई जांच आयोग बनाए गए, लेकिन उनमें से अधिकांश की रिपोर्ट पर सरकार ने अब तक कोई फैसला लिया ही नहीं हैं। आज हम आपको बताएंगे कि ऐसे कितने जांच आयोग हैं जो सिर्फ हाथी के खाने के दांत बनकर रह गए हैं। ये जानने के बाद आप चाहें तो सवाल पूछें कि जब उन आयोगों की रिपोर्ट पर क्या हुआ और जनता को जो पैसा उन पर लगा, उसका हिसाब कौन देगा।

हर आयोग की जांच की एक समय सीमा होती है

इस चर्चा को आगे बढ़ाएं उससे पहले ये जान लीजिए कि जांच आयोग का गठन क्यों होता है। जब भी कोई बड़ी घटना या फिर बड़ा हादसा होता है। तब सरकार उसकी तह तक जाने के लिए जांच आयोग का गठन करती है। हर आयोग की जांच की एक समय सीमा तय होती है। जिसमें वो रिपोर्ट पेश करता है और उसके बाद रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई तय होती है। लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसे कुछ जांच आयोग हैं, जो या तो समय सीमा में अपनी रिपोर्ट ही सौंप नहीं पाए और तारीख पर तारीख बढ़ाते रहे। या फिर उनकी रिपोर्ट पर एक्शन लेना सरकार को ही याद नहीं रहा।  

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मप्र में 17 साल में 8 बड़ी घटनाओं पर बने जांच आयोग

मध्यप्रदेश में जांच आयोग की बात करें तो पिछले करीब सत्रह साल के भीतर 8 बड़ी घटनाओं पर अलग-अलग जांच आयोग बने। इनमें से कई अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप भी चुके हैं, लेकिन उन पर अब तक कार्रवाई नहीं हुई है। चलिए पहले एक नजर में जांच आयोगों की डिटेल भी जान लीजिए...

8 फरवरी 2008 को सामाजिक सुरक्षा पेंशन घोटाले की जांच के लिए आयोग बना।

2010 में यूनियन कार्बाइड से गैस रिसाव की जांच के लिए आयोग बनाया गया। 

2012 में भिंड गोली कांड की जांच के लिए आयोग बना।

2015 में ग्वालियर के गोसपुरा में पुलिस मुठभेड़ के दौरान मौत की जांच के लिए जांच आयोग बना।

2015 में पेटलावद में हुए विस्फोट की जांच के लिए भी एक जांच आयोग गठित किया गया।

इसी साल पेटलावद में मोहर्रम जुलूस रोका गया, उसकी गहन जांच के लिए भी आयोग बना।

2022 में लटेरी में हुई गोलीबारी की घटना के लिए जांच आयोग बना

इन आयोगों में से सिर्फ लटेरी के मामले पर बने आयोग का जांच प्रतिवेदन आना शेष है। 

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कुछ आयोगों की रिपोर्ट पहुंची, लेकिन कार्रवाई का पता नहीं... 

कुछ ऐसे आयोग भी हैं जिनकी रिपोर्ट संबंधित विभाग तक पहुंच गई है, लेकिन उन पर आगे क्या कार्यवाही हो रही है। इसकी जानकारी अब तक सामने नहीं आई है। 

फरवरी 2008 में सामाजिक सुरक्षा पेंशन और राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना में कुछ अनियमितताएं मिलीं। इनकी जांच के लिए जस्टिस एनके जैन की अध्यक्षता में आयोग गठित हुआ। इस आयोग ने 15 सितंबर 2012 को रिपोर्ट सौंप दी। 

भिण्ड गोली कांड मामले पर सेवानिवृत्त अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश सीपी कुलश्रेष्ठ की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित हुआ था।  आयोग ने 31 दिसम्बर 2017 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। इस रिपोर्ट को 17 जनवरी 2018 को गृह विभाग भेज दिया गया था। 

2015 में पेटलावद में घर में चल रही अवैध पटाखा फैक्ट्री में हुए विस्फोट की जांच के लिए हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज आर्येन्द्र कुमार सक्सेना की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किया गया था। उसका जांच प्रतिवेदन भी मुख्य सचिव कार्यालय से गृह विभाग में भेजा जा चुका है। पर कार्यवाही क्या हुई, इसकी कुछ जानकारी नहीं मिली है। 

पेटलावद में ही मोहर्रम का जुलूस रोकने की घटना की जांच की जिम्मेदारी सेवानिवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश राजकुमार पाण्डेय की अध्यक्षता में बने जांच आयोग को सौंपी गई। 20 नवंबर 2017 में आयोग ने जांच रिपोर्ट सौंप दी। 

इन सभी मामलों में आगे क्या हुआ ये कोई जानकारी सामने नहीं आई है। जब भी विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला होता है। घटना से जुड़े लोगों को उम्मीद होती है कि इस बार शायद जांच रिपोर्ट पटल पर आए, लेकिन इतने साल बीतने के बाद पीड़ितों के या घटना के शिकार लोगों के हालात बदल चुके होते हैं। कई मामलों में वो घटना को भूल चुके होते हैं।

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जांच आयोग यूं ही नहीं बनते, इन पर होता है लाखों खर्च

आपको बता दें कि आयोग बनाना सिर्फ एक कागजी कार्रवाई नहीं होती। इन पर हजारों लाखों रुपए खर्च होते हैं। हर आयोग के गठन के बाद आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों को भी अधिकांश मामलों में सैलरी दी जाती है। इसके अलावा जांच के लिए जो भी खर्च होता है, वो खर्च भी सरकार ही वहन करती है। इसके अलावा आयोग के सहायक कर्मचारियों की सैलरी, जांच के लिए यात्रा और रुकने ठहरने का खर्च भी होते है। प्रिटिंग, फोन का खर्च जैसे छोटे मोटे खर्च तो आप भूल ही जाइए। अब जरा सोचिए कि जब एक आयोग पर इतना खर्च होता है तो सरकार उसकी जांच के लिए गंभीर क्यों नहीं होती। क्या ये पूछा जाने वाला सवाल नहीं है।
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