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News Strike MP Subhash Yadav Photograph: (the sootr)
NEWS STRIKE : बीजेपी ने मध्यप्रदेश में सहकारिता आंदोलन का आगाज कर दिया है। 20 साल बाद ही सही बीजेपी को सहकारिता की याद आ ही गई। इससे पहले तक सहकारिता आंदोलन को कांग्रेस नेता सुभाष यादव ने एक्टिव रखा था। उनके बाद गोपाल भार्गव सरकार में रहते हुए कॉपरेटिव मूवमेंट को चलाने की कोशिश करते रहे। अब खुद अमित शाह ने मध्यप्रदेश में आकर सहकारिता आंदोलन का आगाज किया है। आज समझते हैं कि मोहन यादव का सहकारिता आंदोलन कैसा होगा और सुभाष यादव के आंदोलन से कितना अलग होगा।
दिग्विजय सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे सुभाष यादव
दरअसल, सहकारिता राजनीतिक दलों की सत्ता में भागीदारी का एक मजबूत जरिया है। महाराष्ट्र इसका उदाहरण है। जहां सहकारिता ने शरद पंवार जैसे दिग्गज नेता पैदा किए। पंवार की पूरी राजनीति ही सहकारिता के इर्द—गिर्द घूमती है और इसी के बलबूते वह सत्ता में काबिज होते रहे। सहकारिता आंदोलन के मामले में मध्यप्रदेश ने एक लंबा दौर देखा है। कांग्रेस नेता सुभाष चंद्र यादव लंबे समय तक इस आंदोलन का चेहरा बने रहे। आपको याद दिला दूं कि सुभाष चंद्र यादव दिग्विजय सिंह की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी रहे थे। कांग्रेस नेता अरुण यादव, उन्हीं के बेटे हैं।
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सुभाष यादव 1980 में पहली बार बने सहकारी बैंक के अध्यक्ष
सुभाष यादव का राजनीतिक सफर ही सहकारिता के सहारे शुरू हुआ था। 1971 में वो प्राथमिक सेवा सहकारी समिति, ग्राम बोरावां के सदस्य बने थे। 27 जून 1974 में खरगोन के जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर रहे। उनकी सक्रियता को देखते हुए 1980 में प्रदेश सरकार ने उन्हें राज्य सहकारी बैंक का अध्यक्ष बनाया। इसके बाद वो अलग-अलग समय पर अध्यक्ष मनोनीत हुए। इस तरह उनका कार्यकाल 2002 तक चला। मध्यप्रदेश के अलावा वो राष्ट्रीय स्तर पर भी सहकारिता से जुड़े रहे। नेशनल फेडरेशन ऑफ स्टेट कॉपरेटिव बैंग मुंबई में वो दो अलग-अलग कार्यकाल में अध्यक्ष रहे।
इसके बाद उनका पॉलिटिकल करियर भी काफी लंबा रहा। पर, उसका यहां जिक्र करने की जरूरत नहीं है। हम उनके सहकारिता आंदोलन पर ही फोकस करते हैं। कांग्रेस सरकार में वो कृषि और सहकारिता मंत्री रहे।
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सहकारिता को समझने सुभाष यादव ने 15 देशों का किया भ्रमण
सहकारिता और कृषि का गहरा नाता है। सुभाष यादव के नाम सरकार को 888 सुझाव देने का भी योगदान दर्ज है। सहकारिता को गहराई से समझने के लिए वो अमेरिका, रूस, चेकोस्लोवाकिया, नार्वे, इटली, हैम्बर्ग, स्वीट्जरलैंड, काठमांडू, हंगरी, स्वीडन, हालैंड, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैण्ड, इंडोनेशिया, पौलेंड जैसे कई देशों में भी गए। निमाड़ के क्षेत्र में कई साल पहले पथरीली जमीन हुआ करती थी। उस जमीन पर अब खेत लहलहाते हैं तो इसका क्रेडिट भी सुभाष यादव को ही जाता है। निमाड़ के किसानों की जरूरत को समझते हुए उन्होंने इंदिरा सागर बांध परियोजना की पहल की थी। उस डैम के भूमि पूजन के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री इंदिरा गांधी मध्यप्रदेश आई थीं। इसके अलावा खरगोन में सूत मिल और शुगर फैक्टरी लगने का क्रेडिट भी सुभाष यादव को ही जाता है। उनके बाद में कांग्रेस के डॉ. गोविंद सिंह, भगवान सिंह यादव ने मोर्चा संभाला, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए। बीजेपी सरकार आने के बाद गोपाल भार्गव काफी समय तक सहकारिता मंत्री रहे। उन्होंने भी काम तो कई किए, लेकिन सुभाष यादव की तरह सहकारिता के फेस नहीं बन सके। सुभाष यादव के बाद से सहकारिता आंदोलन का डाउनफॉल होता चला गया। बीते दो दशक में सूबे की सियासत सहकारिता पर हावी होकर इसे कमजोर करती गई। हालात यहां तक आ पहुंचे कि बीते नौ सालों से राज्य की सहकारी संस्थाओं के चुनाव तक नहीं हो सके। अब एक बार फिर उसे नए सिरे से जिंदा करने की कोशिश की जा रही है।
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सहकारिता आंदोलन की दिशा में सीएम मोहन का एक कदम...
सीएम मोहन यादव सरकार ने फिर सहकारिता को नए सिरे से आंदोलन में तब्दील करने का फैसला किया है। सहकारिता सम्मेलन इसी दिशा में एक कदम है। मध्यप्रदेश सरकार ने सहकारी समितियों को मजबूत बनाने का पूरा प्लान तैयार किया है। इस प्लान के तहत...
- अब सहकारी समितियां एक बिजनेस मॉडल के तहत भी काम कर सकेंगी। इसकी शुरूआत होगी सारी सहकारी समितियों को कंप्यूटराइज्ड करने से। दिसंबर तक ये टारगेट पूरा करने की कोशिश है।
- एग्री ड्रोन, जन औषधि केंद्र, कॉमन सर्विस सेंटर, जल कर वसूली केंद्र और पीएम किसान समृद्धि केंद्र भी एक्टिव होंगे।
- सरकार सीपीपीपी यानी कि को ऑपरेटिव पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर भी काम करेगी। ड्रिप इरिगेशन, ग्रेडिंग सॉर्टिंग, पैकेजिंग, जंगल सफारी में ये मॉडल अप्लाई होगा और इनोवेशन्स पर भी बात होगी।
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सहकारिता आंदोलन के जरिए किसानों को शामिल करने की कोशिश
प्रदेश के वॉटर सोर्सेस पर भी खास ध्यान दिया जाएगा। क्योंकि ये जल स्त्रोत ही किसानों की असल लाइफ लाइन हैं। इसलिए उन्हें रेज्यूविनेट करने पर भी जोर दिया जाएगा। इसके अलावा सहकारिता के क्षेत्र में क्या बदलाव आएंगे। सहकारिता के दिशा में काम करने की बड़ी लंबी प्लानिंग नजर आ रही है। सुभाष यादव के सहकारिता आंदोलन से लेकर मोहन यादव के सहकारिता आंदोलन में जो सबसे बड़ा बदलाव दिख रहा है वो है तकनीक का बदलाव। बदलते दौर के साथ डिजिटल रेस में शामिल होना जरूरी है। अब सहकारिता आंदोलन के जरिए किसानों को गांववासियों को इस रेस में शामिल करने का जतन किया जा रहा है। देखना ये है कि क्या सहकारी आंदोलन की मशाल उठाकर मोहन यादव भी सुभाष यादव से आगे निकल पाएंगे। दरअसल भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी की है, भाजपा लगभग अपने हर चुनावी संकल्प पत्र में किसानों की आय दूनी करने की बात कहती रही है।
बीजेपी की अब कोशिश है सहकारिता के क्षेत्र में मजबूती की...
सहकारिता सम्मेलन के जरिए अब भाजपा मप्र में दूध का उत्पादन बढ़ाकर व किसानों को इससे जोड़कर वह अपने वादे को पूरा करने का जतन करेगी। वहीं, दूसरी ओर गांव-गांव में सहकारी समितियों के जरिए पैठ बढ़ाने का जतन भी वह करेगी। इस नाते केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एनडीडीबी व सांची के बीच अनुबंध तथा सहकारिता सम्मेलन को सहकारिता के क्षेत्र में दुग्ध क्रांति का आंदोलन भी माना जा रहा है। साल 2018 के चुनाव को छोड़ कांग्रेस पिछले चार चुनाव में कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी नहीं कर सकी, लेकिन उसका वोट बैंक 40 फीसदी के आसपास हमेशा रहा। बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें सेंध नहीं लगा सकी। पिछले यानी साल 2023 के चुनाव में लाड़ली बहना की बदौलत ही वह वापसी कर पाई, लेकिन हर बार यह दांव चले। यह संभव नहीं है। यही वजह है कि बीजेपी अब सहकारिता के क्षेत्र में खुद को मजबूत करना चाहेगी।
मप्र में केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह का कल का दौरा व दो बड़े को-आपरेटिव सेक्टर के बीच अनुबंध सूबे की सियासत में एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट बन सकता है।