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Photograph: (THESOOTR)
BHOPAL. मध्यप्रदेश भाजपा की नई टीम का ऐलान हो गया है। इस बार टीम में नेताओं की मेहनत, जमीनी पकड़ और संगठनात्मक क्षमता को तवज्जो दी गई है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने 25 नेताओं की टीम घोषित की है, जिसमें 9 उपाध्यक्ष हैं और इन्हीं में से एक नाम है डॉ. निशांत खरे का।
यह नाम इसलिए खास है, क्योंकि डॉ.खरे का राजनीतिक सफर दिलचस्प है। वे प्रदेश के नामी प्लास्टिक सर्जन हैं। संघ में एक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने अपनी निष्ठा दिखाई और फिर कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलने के बाद खुद को साबित किया। उनके जीवन का बड़ा कालखंड संगठन के नाम है। सरल, सौम्य और मिलनसार व्यक्तित्व के कारण वे युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं।
इस तरह आगे बढ़ा सफर
संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक के रूप में शुरू हुआ उनका सफर धीरे-धीरे भाजपा के अहम दायित्वों तक पहुंचा। पहले वे मध्यप्रदेश युवा आयोग के अध्यक्ष बनाए गए। फिर उन्होंने जनजातीय मोर्चा के सहप्रभारी और फीडबैक विभाग के सह-संयोजक के रूप में काम किया।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने आदिवासी बेल्ट में भाजपा के लिए रणनीतिक और जमीनी स्तर पर मेहनत की। उनके प्रयासों से कई क्षेत्रों में भाजपा को मजबूत पकड़ मिली। फिर उनके काम को देखते हुए पार्टी ने महाराष्ट्र चुनाव में भी उन्हें आदिवासी सीटों पर जीत दिलाने की जिम्मेदारी दी और वे वहां भी खरे उतरे।
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आदिवासी वर्ग में मजबूत पकड़
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डॉ. खरे की मालवा-निमाड़ के आदिवासी इलाकों में गहरी पैठ है। वे सिर्फ राजनीतिक चेहरा नहीं हैं, बल्कि जनजातीय समाज के बीच लगातार काम करने वाले नेता हैं। हर साल वे बिरसा मुंडा क्रिकेट लीग का आयोजन करते हैं, जिसमें सैकड़ों आदिवासी युवा भाग लेकर मुख्य धारा में उभरते हैं। डॉ.खरे स्वास्थ्य शिविरों के जरिए भी आदिवासी अंचल में सक्रिय रहते हैं।
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लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका
लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा ने जब आदिवासी इलाकों में अपनी स्थिति मजबूत करने की रणनीति बनाई तो डॉ. खरे को इसमें अहम जिम्मेदारी दी गई। उनके अनुभव, लोकप्रियता और विश्वसनीयता का फायदा पार्टी को मिला। यही कारण है कि अब उन्हें प्रदेश संगठन में उपाध्यक्ष जैसी जिम्मेदारी दी गई है, जिससे साफ है कि पार्टी ने समर्पित चेहरों को प्राथमिकता दी है।
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महापौर पद के लिए आया था नाम
डॉ. निशांत खरे का नाम पहली बार इंदौर महापौर पद की दावेदारी में तेजी से उभरा था। हालांकि स्थानीय समीकरणों के कारण उन्हें टिकट नहीं मिला, पर उनकी संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए उन्हें मध्यप्रदेश युवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। इस पद पर रहते हुए उन्होंने युवाओं से जुड़ी नीतियों पर काम किया और नवाचार शुरू किए थे।
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