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Photograph: (The Sootr)
भारत सरकार ने हाल ही में संसद में 24 स्थायी समितियों के पुनर्गठन की घोषणा की है। इन समितियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सांसदों को नियुक्त किया गया है। इनमें बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी, डीएमके, और अन्य दलों के नेताओं को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया है। इस निर्णय का मुख्य उद्देश्य संसद के कार्यों को बेहतर ढंग से चलाना और सरकार की नीतियों तथा विधेयकों की समीक्षा करना है।
दिग्विजय महिला, बाल विकास, शिक्षा और युवा मामलों के अध्यक्ष
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को एक महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई है। उन्हें महिला बाल विकास, शिक्षा और युवा मामलों से संबंधित संसदीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
इस समिति के तहत उन मुद्दों पर चर्चा होगी जो महिलाओं, बच्चों, शिक्षा और युवा सशक्तिकरण से जुड़े हैं। इसके अलावा, डीएमके सांसद टी. शिव को उद्योग समिति का अध्यक्ष बनाया गया है, जबकि जेडीयू के नेता संजय कुमार झा को परिवहन समिति की जिम्मेदारी दी गई है।
क्या होती हैं संसदीय स्थायी समितियां?
संसदीय स्थायी समितियां संसद के स्थायी निकाय मानी जाती हैं। इन समितियों का मुख्य उद्देश्य सरकार की नीतियों, बजट आवंटन, और विधेयकों की समीक्षा करना है। यह समितियां मंत्रालयों से साक्ष्य और जवाब-तलब करती हैं, जिससे सरकार को जवाबदेह बनाया जाता है। इन समितियों के कार्य संसद के सत्रों के बीच निरंतर चलते रहते हैं।
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कार्य:
- प्रस्तावित कानूनों की जांच करना
- सरकारी नीतियों की समीक्षा करना
- बजट आवंटन का अध्ययन करना
मिनी संसद की भूमिका
जब संसद का सत्र नहीं चलता, तब ये समितियां सक्रिय रूप से काम करती हैं। यह समितियां ‘मिनी संसद’ की तरह कार्य करती हैं, जहां सांसद गहराई से नीति और विधायी मसलों पर चर्चा करते हैं और उनका निरीक्षण करते हैं। इस प्रकार, समितियां संसद सत्रों के दौरान सीधे बेहतर सुझाव और सिफारिशें पेश करने में मदद करती हैं।
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केंद्र सरकार का पुनर्गठन निर्णय
केंद्र सरकार ने 24 स्थायी समितियों के गठन पर निर्णय लिया और इसे अंतिम रूप दिया। सरकार ने बताया कि अधिकांश समितियों के मौजूदा अध्यक्षों को फिर से वही जिम्मेदारी दी गई है जो वे पहले निभा रहे थे। इसका उद्देश्य कामकाजी दक्षता बनाए रखना और संसदीय प्रक्रियाओं में कोई विघ्न नहीं आने देना है।
24 समितियों में बीजेपी को 11, कांग्रेस को 4, टीएमसी और डीएमके को 2-2, समाजवादी पार्टी, जेडीयू, एनसीपी (अजीत पवार गुट), टीडीपी और शिवसेना (शिंदे गुट) को 1-1 समिति की कमान दी गई है।
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किसे मिली अहम जिम्मेदारी?
संसदीय समितियों के पुनर्गठन में कई महत्वपूर्ण नेताओं को अहम जिम्मेदारियां दी गई हैं। इनमें प्रमुख नेता और सांसद शशि थरूर, दिग्विजय सिंह, तेजस्वी सूर्या, और अन्य कांग्रेस और बीजेपी नेताओं के नाम शामिल हैं।
नेता | पार्टी | समिति का नाम |
---|---|---|
दिग्विजय सिंह | कांग्रेस | महिला-बाल विकास, शिक्षा और युवा मामलों की समिति |
रामगोपाल यादव | सपा | स्वास्थ्य और परिवार कल्याण समिति |
टी. शिवा | डीएमके | उद्योग समिति |
संजय कुमार झा | जेडीयू | परिवहन समिति |
राधा मोहन अग्रवाल | बीजेपी | गृह मामलों की समिति |
डोला सेन | टीएमसी | वाणिज्य समिति |
भर्तृहरि महताब | बीजेपी | वित्त समिति |
कीर्ति आजाद | टीएमसी | रसायन और उर्वरक समिति |
सी एम रमेश | बीजेपी | रेलवे समिति |
अनुराग ठाकुर | बीजेपी | कोयला, खनन और स्टील समिति |
तेजस्वी सूर्या | बीजेपी | जनविश्वास बिल सिलेक्ट कमेटी |
बैजयंत पांडा | बीजेपी | इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड सिलेक्ट कमेटी |
संसदीय समितियों का कार्य
संसदीय स्थायी समितियां संसद के सत्रों के बीच निरंतर कार्य करती हैं। ये समितियां न केवल विधायिका के कामकाज की समीक्षा करती हैं, बल्कि मंत्रालयों की जिम्मेदारी तय करती हैं। यह समितियां विभिन्न सरकारी विभागों से साक्ष्य प्राप्त करती हैं और इसके आधार पर सरकार को जवाबदेह बनाती हैं। इन्हें 'मिनी संसद' के रूप में भी देखा जाता है क्योंकि ये संसद के सत्रों के दौरान महत्वपूर्ण कामों को गति देती हैं।
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संसदीय समितियां क्यों अहम हैं?
इन समितियों का कामकाजी स्वरूप संसद के सत्रों के बीच शासन की कार्यप्रणाली को प्रभावी बनाए रखता है। यह समितियां संसद सत्रों के दौरान मंत्रालयों के कामकाज और प्रस्तावित कानूनों की समीक्षा करती हैं और सुधारात्मक कदम सुझाती हैं।
भारत में संसदीय समितियों का महत्व
संसदीय समितियां भारतीय लोकतंत्र के मजबूत तंत्र का हिस्सा हैं। ये समितियां सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा करती हैं, और इसके साथ ही यह सुनिश्चित करती हैं कि सरकारी खर्चे और योजनाओं का सही उपयोग हो रहा है। इन समितियों का कार्य संसद के सत्रों के दौरान परिपूर्ण होता है, जिससे शासन की कार्यप्रणाली को निरंतर देखा जा सकता है।
संसदीय समितियों के पुनर्गठन के फायदे
केंद्र सरकार के इस पुनर्गठन से संसदीय समितियों की कार्यक्षमता और बेहतर होगी। यह निर्णय संसद के कार्यों में सुचारूता लाने, मंत्रालयों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और प्रस्तावित कानूनों की समीक्षा में मदद करेगा। इसके अलावा, सांसदों को उनके कार्यक्षेत्र में अधिक स्वतंत्रता मिलेगी, जिससे वे अपनी जिम्मेदारियों को और बेहतर तरीके से निभा सकेंगे।