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देश की फार्मा एमएसएमई इकाइयां वर्तमान में अभूतपूर्व संकट से गुजर रही हैं। देश में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयां उपलब्ध कराने का काम करने वाली ये फार्मा इकाइयां अब संकट की स्थिति में हैं। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा लागू की गई सख्त नीतियों और कार्रवाइयों ने लगभग 4,000 से 5,000 इकाइयों को बंद होने की स्थिति में डाल दिया है। इस बीच फार्मा कंपनियों के संगठन FOPE ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखकर हस्तक्षेप की मांग की है।
फेडरेशन ऑफ फार्मा एंटरप्रेन्योर्स मध्यप्रदेश चैप्टर के चेयरमैन हिमांशु शाह और वाइस प्रेसिडेंट अमित चावला ने कहा कि फार्मा MSME आज संकट का सामना कर रही हैं। केंद्र सरकार की कठोर नीतियां और सीडीएससीओ की सख्त कार्रवाइयों ने इन इकाइयों को बंदी की स्थिति में ला दिया है।
ज्वॉइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल ने की मांग
ज्वॉइंट फोरम ऑफ फार्मास्यूटिकल MSME ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा को पत्र भेजकर हस्तक्षेप की मांग की है। फोरम ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार राहत नहीं देती, तो चार से पांच हजार इकाइयां बंद हो सकती हैं। इससे किफायती दवाओं का उत्पादन ठप होगा और भारत का दुनिया की फार्मेसी का गौरव भी खतरे में पड़ सकता है। प्रतिनिधियों ने कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में जीएसटी सुधार और अन्य योजनाओं से आत्मविश्वास बढ़ा था, लेकिन अब सीडीएससीओ की नीतियाँ छोटे निर्माताओं के खिलाफ हैं।
पत्र में कहा गया है कि नए सर्कुलरों ने व्यापार सुगमता को प्रभावित किया है और उद्योग का भविष्य संकट में है। एक बड़ा संकट बायो-इक्विवेर्लेस अध्ययन है, जिसे प्रमाणित दवाओं पर भी अनिवार्य किया गया है। इसकी लागत प्रति दवा 25 से 50 लाख रुपए है, जो छोटे उद्योगों के लिए अत्यधिक है। इससे जन औषधि केंद्रों और सरकारी आपूर्ति व्यवस्थाओं में दवा संकट पैदा हो सकता है। एनडीसीटी नियम 2019 के तहत पहले से स्वीकृत दवाओं को न्यू ड्रग मानकर लाइसेंस वापस लेने की प्रक्रिया भी उद्योग के लिए खतरनाक है।
फार्मा सेक्टर के लिए केंद्र जल्द उठाए कदम
हिमांशु शाह ने कहा कि सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना हमारी जिम्मेदारी है। इसके लिए केंद्र सरकार का सहयोग और कम से कम दस वर्षों का स्पष्ट रोडमैप जरूरी है। उन्होंने कहा कि छोटे उद्योगों पर कठोर नियम लागू करना देश के स्वास्थ्य तंत्र और आने वाली पीढ़ियों के लिए घातक होगा। शाह ने चेतावनी दी कि यदि ऐसा हुआ, तो सरकार को भविष्य में दवाइयों के उत्पादन के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
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सीडीएससीओ की सख्त नीतियां
सीडीएससीओ (CDSCO) के नए नियम और कार्रवाई छोटे दवा निर्माताओं के लिए बेहद मुश्किल बन गए हैं। विशेष रूप से 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले संशोधित शेड्यूल-एम मानकों का पालन बिना भारी निवेश के संभव नहीं है। छोटे उद्योग पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं, और ऐसे में उन्हें ये नए मानक अपनाने के लिए अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता है, जिसे वह वहन नहीं कर पा रहे हैं।
फोरम का कहना है कि यदि राहत नहीं दी गई, तो इन इकाइयों को उत्पादन बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। फार्मा MSME फोरम ने इस संकट को हल करने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है।
नवीनतम दवा मानकों के खिलाफ शिकायत
एनडीसीटी नियम 2019 के तहत, पुरानी स्वीकृत दवाओं को अब नए ड्रग के रूप में मानकर लाइसेंस वापस लिया जा रहा है। इससे उद्योग में अस्थिरता बढ़ रही है। साथ ही, निर्यात अनुमोदन केवल नशीली दवाओं तक सीमित किया जा रहा है, जबकि अन्य सामान्य दवाओं पर रोक लगाई जा रही है। इससे विदेशी बाजारों में चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों को फायदा हो रहा है, जबकि भारतीय कंपनियां निर्यात से वंचित हो रही हैं।
आवश्यक छूट की मांग
फेडरेशन ऑफ फार्मा एंटरप्रेन्योर्स के प्रतिनिधियों ने केंद्र से अपील की है कि 50 करोड़ रुपए से कम टर्नओवर वाली इकाइयों को अप्रैल 2027 तक छूट दी जाए, ताकि वे इन नए मानकों को अपना सकें। इन इकाइयों के पास इतना वित्तीय संसाधन नहीं है कि वे इन महंगे परीक्षणों और बायो-इक्विवेलेंस अध्ययन का खर्च वहन कर सकें।
गैर-मानक दवाओं की सूची
फोरम ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार गैर-मानक दवाओं के साथ मानक गुणवत्ता वाली दवाओं की सूची भी जारी करे। इससे छोटे दवा निर्माताओं को उनके उत्पादों के लिए सही दिशा मिलेगी, और उन्हें सही मानकों का पालन करने में मदद मिलेगी।
देशभर के एसोसिएशनों की साझा आवाज
फार्मा MSME संकट पर देशभर की 21 से अधिक एसोसिएशनों ने एक साझा मंच बनाया है और सरकार से अपील की है कि वह छोटे दवा निर्माताओं की समस्याओं को प्राथमिकता से हल करें। हिमाचल दवा निर्माता संघ के प्रवक्ता संजय शर्मा ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने तुरंत कदम नहीं उठाए तो देश के स्वास्थ्य तंत्र और आने वाली पीढ़ियों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा।