MP News : भोपाल स्थित एडवांस मटेरियल प्रोसेस एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (एम्प्री) ने एक ऐसा बायोडिग्रेडेबल मटेरियल तैयार किया है, जो प्लास्टिक का इको-फ्रेंडली विकल्प बन सकता है। खास बात यह है कि यह मटेरियल धान की पुआल से बनाया गया है और उपयोग के दो साल बाद यह खुद-ब-खुद नष्ट हो जाता है। यह तकनीक देश में पहली बार इस्तेमाल हो रही है और इसे जल्द ही बाजार में लाया जाएगा।
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प्लास्टिक जैसा मजबूत, लेकिन पर्यावरण के लिए सुरक्षित
वर्तमान में ज्यादातर फूड पैकेजिंग—जैसे चिप्स और बिस्किट के रैपर—प्लास्टिक से बने होते हैं, जो वर्षों तक नष्ट नहीं होते और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। हालांकि बाजार में बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक उपलब्ध है, पर इसकी लागत अधिक होने के कारण इसका उपयोग सीमित है। अभी जो बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक तैयार किया जा रहा है, उसमें पॉलीलेक्टिक एसिड का इस्तेमाल होता है, जो महंगा पड़ता है।
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धान की पुआल से बना सस्ता और टिकाऊ विकल्प
एम्प्री ने जो नया फूड पैक मटेरियल तैयार किया है, उसमें धान की कटाई के बाद बची पुआल का इस्तेमाल किया गया है। यह मटेरियल प्लास्टिक जितना मजबूत है और इसमें बहुत ही कम मात्रा में पीएलए का उपयोग किया गया है। इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।
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लागत में 50% तक सस्ता
एम्प्री के सीनियर वैज्ञानिक डॉ. मनोज गुप्ता के अनुसार, जहां पीएलए से बनने वाला मटेरियल लगभग 400 प्रति किलो पड़ता है, वहीं धान की पुआल से तैयार यह मटेरियल मात्र 200 प्रति किलो में बन सकता है। एक किलो मटेरियल से कई फूड कंटेनर बनाए जा सकते हैं।
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इसकी लाइफ भी तय
मप्र के डायरेक्टर डॉ. अवनीश श्रीवास्तव ने बताया हम पेडिस्ट्रा का उपयोग कर बायोडिग्रेडेबल फॉर्म में ले आए हैं। इसमें पीएलए का भी थोड़ा उपयोग किया जाएगा। इसे इंजेक्शन मोल्डिंग और एक्सटूडर के द्वारा कैसे भी उपयोग में ला सकते हैं। इसकी लाइफ भी तय की जा सकती है।