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5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी...
👉9 महीनों से मध्याह्न भोजन योजना की निगरानी नहीं हो रही है, जिससे बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
👉बालाघाट जिले की प्राथमिक शाला मेंड्रा में बच्चों को जमीन पर केले के पत्तों पर भोजन करना पड़ रहा है।
👉ग्राम मेंड्रा के स्कूल भवन की हालत खतरनाक है। छत से प्लास्टर गिरता रहता है, दीवारें जर्जर हो चुकी हैं और फर्श टूट चुका है।
👉10 महीनों में 1.92 करोड़ रुपए गाड़ी और डीजल पर खर्च किए गए। इस दौरान निरीक्षण प्रणाली पूरी तरह फेल नजर आ रही है।
👉केंद्र सरकार ने 102 करोड़ रुपए बर्तनों की खरीद के लिए दिए थे, लेकिन यह राशि उपयोग नहीं हो पाई।
सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना आज बदहाली का शिकार है। 1600 करोड़ रुपए के बजट के बावजूद, हजारों स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। नियमित निगरानी की कमी है। यह अव्यवस्था नहीं, सिस्टम की गंभीर नाकामी है।
9 महीने से बिना निगरानी चल रही योजना
प्रदेश के 16,945 सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन व्यवस्था की जांच के लिए पिछले नौ महीनों से कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं पहुंचा। योजना चल रही है, लेकिन बिना निरीक्षण और जवाबदेही के। सवाल उठता है कि बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है।
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1600 करोड़ का बजट
चौंकाने वाली सच्चाई है कि करोड़ों के बजट के बावजूद कई स्कूलों में बच्चों को भोजन परोसने के लिए थालियां तक उपलब्ध नहीं हैं। यह लापरवाही नहीं, बल्कि संवेदनहीनता का उदाहरण है, जहां बच्चों की मूलभूत जरूरतों को नजरअंदाज किया जा रहा है।
बालाघाट से आई शर्मनाक तस्वीर
बालाघाट जिले की प्राथमिक शाला मेंड्रा से सामने आई तस्वीरें व्यवस्था की पोल खोल देती हैं। यहां बच्चे जमीन पर केले के पत्तों पर बैठकर मध्याह्न भोजन करने को मजबूर हैं। स्कूल में पुराने बर्तन खराब हो चुके हैं। नए बर्तनों की मांग महीनों से फाइलों में अटकी है।
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स्कूल प्रभारी का बयान: कई बार भेजी शिकायत
प्राथमिक शाला मेंड्रा के प्रभारी सूर्यकांत कालबेले के अनुसार, स्कूल में मध्याह्न भोजन की स्थिति लंबे समय से चिंताजनक है। उपलब्ध बर्तन खराब हो चुके हैं और इसकी जानकारी कई बार उच्चाधिकारियों को दी गई। लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकला। मजबूरी में बच्चों को केले के पत्तों पर खाना परोसा जा रहा है।
जर्जर स्कूल भवन, बच्चों की जान खतरे में
किरनापुर तहसील के ग्राम मेंड्रा की यह प्राथमिक शाला सिर्फ भोजन के मामले में ही नहीं, बल्कि भवन की हालत के कारण भी खतरनाक स्थिति में है। स्कूल की छत से प्लास्टर गिरता रहता है, फर्श टूट चुका है और दीवारें जर्जर हो चुकी हैं। बावजूद इसके, करीब 20 बच्चे उसी भवन में पढ़ने को मजबूर हैं।
चेतावनी के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
ग्रामीणों का कहना है कि कई बार छत से गिरते प्लास्टर से बच्चे बाल-बाल बचे हैं। स्कूल प्रभारी ने जर्जर भवन और बच्चों की सुरक्षा के बारे में अधिकारियों को लिखित रूप से बताया। अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। जिन स्कूलों की हालत बेहतर है, उन्हें नए भवनों की स्वीकृति मिल रही है।
मॉनिटरिंग के नाम पर 795 करोड़ का खर्च
मध्यप्रदेश में मध्याह्न भोजन योजना की निगरानी के लिए हर साल 795 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। इसके बावजूद जमीनी स्तर पर निरीक्षण न के बराबर है। पीएम पोषण कार्यक्रम की 4 अप्रैल से 1 दिसंबर तक की ऑनलाइन निरीक्षण रिपोर्ट ने लापरवाही की पुष्टि की है।
निरीक्षण हो नहीं रहा, पैसा जा कहां रहा?
मध्याह्न भोजन की व्यवस्था सुधारने के लिए 10 महीनों में 1.92 करोड़ रुपए गाड़ी और डीजल पर खर्च दिखाया गया। प्रत्येक जिले को 35 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं, यानी 10 महीनों में 3.5 लाख रुपए। सवाल है कि जब निरीक्षण नहीं होता, तो यह राशि कौन इस्तेमाल कर रहा है।
तीन सदस्यीय टीम, फिर भी लापरवाही
हर जिले में मध्याह्न भोजन के लिए तीन सदस्यीय टीम बनाई गई है। इसमें एक टास्क मैनेजर, एक क्वालिटी मैनेजर और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर शामिल हैं। इन्हें 20 से 45 हजार रुपए तक मासिक वेतन दिया जाता है। इसके बावजूद निरीक्षण व्यवस्था पूरी तरह फेल नजर आ रही है।
सबसे गंभीर मामला बर्तनों की खरीदी से जुड़ा है। केंद्र सरकार ने स्कूलों में खाना बनाने और खाने के बर्तनों के रिप्लेसमेंट के लिए 102 करोड़ रुपए करीब 9 महीने पहले दिए थे। लेकिन पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग इन पैसों का उपयोग ही नहीं कर पाया।
इसी लापरवाही के कारण सितंबर से दिसंबर तक 44 लाख बच्चों के लिए कुकिंग कॉस्ट जारी नहीं हो सकी। केंद्र सरकार के पोर्टल पर राशि बिना उपयोग दिखने से आगे की रकम रोक दी गई। इसका असर बच्चों के भोजन की गुणवत्ता और निरंतरता पर पड़ा।
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सेंट्रलाइज्ड किचन की जिद, समाधान अधूरा
MP के अधिकारी कई जिलों में सेंट्रलाइज्ड किचन के जरिए मध्याह्न भोजन चलाना चाहते थे। 313 विकासखंडों में जगह चिन्हित कर योजना बनाई गई। हालांकि, केंद्र सरकार से अनुमति नहीं मिल सकी। न पुरानी व्यवस्था सुधरी और न नई व्यवस्था लागू हो सकी।
सवाल सिर्फ व्यवस्था का नहीं, जवाबदेही का
पीएम पोषण योजना: मध्यप्रदेश की मध्याह्न भोजन योजना आज प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार की कहानी बन चुकी है। 1600 करोड़ का बजट, 795 करोड़ की मॉनिटरिंग और 102 करोड़ की बिना उपयोग राशि है। सवाल यही है क्या बच्चों की थाली से बड़ा कोई मुद्दा नहीं?
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