पुलिस नहीं टाल सकेगी मामले, FIR दर्ज करने से पहले सूचना की सच्चाई जांचना जरूरी नहीं - SC

सुप्रीम कोर्ट ने FIR के लेकर एक अहम आदेश दिया है। पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले सूचना की सच्चाई की जांच नहीं करनी होगी। जानें इस फैसले का आम जनता पर असर...

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Neel Tiwari
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने FIR को लेकर एक अहम आदेश दिया है। इसमें SC ने साफ कर दिया है कि पुलिस को किसी भी गंभीर अपराध (Cognizable Offence) की सूचना मिलते ही FIR दर्ज करना अनिवार्य है। इस दौरान पुलिस को यह जांचने की जरूरत नहीं है कि सूचना कितनी सच्ची है या उसमें कितनी विश्वसनीयता है। कोर्ट ने कहा कि FIR दर्ज करना पुलिस का पहला कर्तव्य है, जबकि जांच और साक्ष्य जुटाना बाद की प्रक्रिया है।

दिल्ली के पूर्व कमिश्नर नीरज कुमार से जुड़ा मामला

यह फैसला दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार और इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे से जुड़े विवाद पर आया। मामला साल 2000 का है। इस दौरान इन अधिकारियों पर आरोप लगा था कि सीबीआई में तैनाती के दौरान उन्होंने दस्तावेजों में हेरफेर किया। साथ ही, डराने-धमकाने जैसे भी काम किए।

इस मामले में शिकायतकर्ता ने FIR दर्ज कराने की मांग की थी। वहीं, दिल्ली हाई कोर्ट ने FIR दर्ज करने का आदेश दिया था। इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है। साथ ही, यह साफ कर दिया कि पुलिस को FIR दर्ज करने से पहले सूचना की जांच करने की जरूरत नहीं है।

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FIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एक नजर

  • सुप्रीम कोर्ट ने FIR दर्ज करने को लेकर अहम आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि पुलिस को गंभीर अपराध की सूचना मिलते ही FIR दर्ज करना अनिवार्य है।

  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुलिस को सूचना की सत्यता या विश्वसनीयता की जांच करने की जरूरत नहीं है, FIR दर्ज करना उनका पहला कर्तव्य है।

  • यह आदेश दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर नीरज कुमार और इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे से जुड़े मामले पर आया था।

  • सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के फैसले (Ramesh Kumari vs State) का हवाला देते हुए कहा कि FIR दर्ज करने से पहले सूचना की सच्चाई की जांच जरूरी नहीं है।

  • इस आदेश से आम जनता को राहत मिलेगी, क्योंकि अब पुलिस किसी भी संदिग्ध सूचना को दरकिनार कर FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती।

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SC ने 2006 के फैसले का किया जिक्र

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान 2006 के एक अहम फैसले (Ramesh Kumari vs State (NCT of Delhi)) का भी उल्लेख किया। उस फैसले में भी यह साफ किया गया था कि FIR दर्ज करने के लिए सूचना की genuineness या credibility यानी सच्चाई या विश्वसनीयता की जांच जरूरी नहीं है। यदि सूचना से यह स्पष्ट हो कि अपराध हुआ है, तो पुलिस को तुरंत FIR दर्ज करनी ही होगी।

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आम जनता के लिए इस फैसले के मायने

इस आदेश का सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है। कई बार शिकायतकर्ता यह कहते हैं कि पुलिस FIR दर्ज करने से पहले सूचना को टाल देती है या पहले उसकी सच्चाई पर सवाल उठाती है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह स्थिति साफ हो गई है कि पुलिस FIR दर्ज करने से इनकार नहीं कर सकती, भले ही सूचना कितनी ही संदिग्ध क्यों न लगे। असली जांच और साक्ष्य का मूल्यांकन FIR दर्ज होने के बाद ही किया जाएगा।

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