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BHOPAL. प्रमोशन में आरक्षण के मामले में मंगलवार को जबलपुर हाईकोर्ट में अहम सुनवाई होने जा रही है। पिछली सुनवाई में बैकफुट पर रही सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के नामी वकीलों को उतारने जा रही है।
10 साल से पदोन्नति पर लगे ब्रेक से प्रभावित 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को सुनवाई के बाद हाईकोर्ट से राहत मिलने की आस लगी है। वहीं एक दशक में कई बार पदोन्नति की राह में रोड़े अटकने से कर्मचारी दुविधा से उबर नहीं पा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में पिछले 10 साल से सरकारी विभागों में पदोन्नति बंद हैं। बीते पांच साल में ही एक लाख से ज्यादा कर्मचारी पदोन्नति के बिना ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं। विभागों में कार्य करने वाले हजारों कर्मचारी ऐसे हैं जो 20 साल पहले जिस पद पर थे आज भी वहीं हैं।
पदोन्नति न मिलने से सरकारी विभागों में कार्यदक्षता भी प्रभावित हुई है। इसको देखते हुए कर्मचारी संगठन लगातार पदोन्नति पर लगी पाबंदी हटाने की मांग कर रहे थे।
मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने कर्मचारियों की इस मांग को देखते हुए नए नियम तैयार कराते हुए पदोन्नति का रास्ता खोला था। हालांकि सरकार पदोन्नति शुरू करती उससे पहले ही आरक्षण के आधार पर प्रमोशन के विरोध में कर्मचारियों का एक धड़ा याचिका लेकर हाईकोर्ट पहुंच गया और फिर एक बार पदोन्नति खटाई में पड़ गई है।
अब तक बैकफुट पर रही सरकार
प्रमोशन के मामले में प्रदेश के विभिन्न विभागों के 13 कर्मचारियों ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। पदोन्नति में आरक्षण को असंवैधानिक बताते हुए दाखिल की गई याचिका पर हाईकोर्ट ने पदोन्नति पर रोक लगा दी थी। अब तक इस मामले में तीन सुनवाई हो चुकी हैं।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संजय के.अग्रवाल, मनोज शर्मा और सुयश मोहन गुरु द्वारा रखे गए तथ्यों के चलते अब तक सरकार हर बार बैक फुट पर रही है। वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में पूर्व से विचाराधीन याचिका पर यथास्थिति का आदेश होने का हवाला भी दिया था।
इसके बाद हाईकोर्ट ने सरकार को नए और पुराने नियमों में अंतर स्पष्ट करने के निर्देश दिए थे। सरकार के वकील जवाब पेश करने के बाद भी हाईकोर्ट को संतुष्ट नहीं कर सके थे।
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4 लाख कर्मचारियों पर असर
इस मामले में पिछली सुनवाई में सरकार के वकीलों ने हाईकोर्ट से समय मांगा था जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई के लिए 9 सितम्बर की तारीख तय की थी। अब मंगलवार को इस मामले में सुनवाई होने जा रही है। इस सुनवाई और आने वाले निर्णय से प्रदेश के 4 लाख से ज्यादा कर्मचारी और अधिकारियों का हित सीधे तौर पर जुड़ा है।
इनमें वे कर्मचारी जो आने वाले दिनों में सेवानिवृत्त होने वाले हैं वे सबसे ज्यादा हाईकोर्ट के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। उन्हें मंगलवार को पदोन्नति पर निर्णय आने अथवा लाखों कर्मचारियों के हित में हाईकोर्ट से सशर्त पदोन्नति देने जैसे बीच के रास्ते की आस लगी है। अब सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों की दलील और हाईकोर्ट द्वारा सरकार से मांगे गए तथ्यों पर आधारित सुनवाई ही मामले की दिशा तय करेगी।
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सुप्रीम कोर्ट के वकीलों का सहारा
अब तक पदोन्नति में आरक्षण के मामले में हाईकोर्ट में पिछड़ती आ रही राज्य सरकार की ओर से 9 सितम्बर की सुनवाई के लिए तगड़ी तैयारी की गई है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सीएस वैद्यनाथन जबलपुर हाईकोर्ट में प्रदेश सरकार का पक्ष रखने मौजूद रह सकते हैं।
इसके लिए सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, विधि विशेषज्ञ और वकील भी उनके साथ बैठक कर चुके हैं। वर्षों से पदोन्नति की आस लगाए बैठे कर्मचारी मंगलवार को होने वाली सुनवाई को लेकर असमंजस में हैं। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकीलों के सुनवाई में शामिल होने से उन्हें पदोन्नति का रोड़ा हटने की उम्मीद तो है लेकिन याचिका के समर्थन में दूसरे पक्ष की तैयारी उनकी चिंता बढ़ा रही है।