चाकरी के खिलाफ एमपी पुलिस के 270 सिपाही-हवलदारों ने लगाई हाईकोर्ट में गुहार

मध्य प्रदेश पुलिस के 270 सिपाही-हवलदारों ने जबलपुर हाईकोर्ट की शरण ली है। बताया जा रहा है कि पुलिस विभाग के ट्रेड आरक्षक कैडर यानी कुक, नाई, धोबी, मोची और स्वीपर जैसे पुलिसकर्मियों ने सरकारी आदेशों के खिलाफ मोर्चा खोला है।

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Sandeep Kumar
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जबलपुर हाईकोर्ट की शरण में 270 सिपाही

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BHOPAL. मध्य प्रदेश में ट्रेड आरक्षक कैडर के 270 पुलिसकर्मी जबलपुर हाईकोर्ट (  Jabalpur High Court  ) जा पहुंचे हैं। बताया जा रहा है कि पुलिस के इन सिपाहियों ने पुलिस के अफसरों की 'चाकरी' के विरोध में हाईकोर्ट की शरण ली है। प्रदेश में ऐसा पहली बार हुआ है, जब ट्रेड आरक्षक कैडर यानी कुक, नाई, धोबी, मोची, स्वीपर जैसे पुलिसकर्मियों ने सरकारी आदेशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। आपको बताते चलें कि यहां पर 'चाकरी' का मतलब है कि पुलिस अफसरों के घर में नौकरों जैसै काम करना पड़ते हैं।

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पुलिसकर्मियों का आरक्षक जीडी

मध्य प्रदेश पुलिस में ट्रेड आरक्षक कैडर के 5500 पुलिसकर्मी हैं, जो आरक्षक जीडी ( जनरल ड्यूटी ) में संविलियन की मांग कर रहे हैं। जबलपुर हाई कोर्ट में इन 270 पुलिसकर्मियों ने सामूहिक याचिका न करते हुए इंडिविजुअल पिटिशन दायर की है। हाईकोर्ट ने पहले मामले में अगली सुनवाई 29 अप्रैल को तय की है। आरक्षक ट्रेड कैडर से भर्ती हुए ये पुलिसकर्मी तकरीबन 5 साल की सेवा पूरी कर जिला पुलिस के सहयोगी बनने के पात्र हो गए हैं। दस साल से इनके जीडी में संविलियन पर रोक लगी है। पड़ोसी राज्यों में संविलियन कर बल की कमी पूरी की जा रही है।

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औसतन 45 हजार रुपए महीने वेतन

आरक्षक ट्रेड से भर्ती हुए नए सिपाही की तनख्वाह करीब 25000 रुपए होती है। इसी कैडर में पदोन्नत होकर एसआई बने पुलिसकर्मी को करीब 75 हजार रुपए वेतन मिल रहा है। सिपाही और एसआई के बीच सैकड़ों पुलिसकर्मी हवलदार और एएसआई भी बने हैं, जिनकी तनख्वाह अलग-अलग है। यदि इन 5500 पुलिसकर्मियों का बगैर भत्ते जोड़े भी औसत वेतन 45000 रुपए महीना माना जाए तो इन पर सरकार हर महीने करीब 24.75 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। इसके बाद भी ये केवल अफसरों-नेताओं के बंगलों पर काम कर रहे हैं।

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प्रमोशन तो मिला लेकिन काम नहीं बदला

नतीजा ये है कि ट्रेड में भर्ती हुए इन पुलिसकर्मियों को प्रमोशन तो मिल रहा है, लेकिन उन्हें काम कुक, नाई, धोबी, मोची, स्वीपर के ही करने पड़ रहे हैं। इनमें कई ऐसे भी हैं, जो पदोन्नति पाकर सब इंस्पेक्टर स्तर तक पहुंच गए, लेकिन अफसरों के घर पर काम कर रहे हैं।

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नियम बनते-बिगड़ते चले गए, 10 साल से रोक


1. 23 अक्टूबर 1993 में तत्कालीन डीजीपी आरपी शर्मा ने एक आदेश निकालकर ट्रेडमैन के संविलियन के लिए 5 साल का सेवाकाल जरूरी बताया।

2. 19 जून 2013 को जारी हुए पत्र के आधार पर तत्कालीन डीजीपी नंदन दुबे ने संविलियन पर रोक लगा दी।

3. 28 अप्रैल 2016 को एडीजी विसबल केएन तिवारी ने दोबारा संविलियन शुरू करने के लिए शासन से अनुशंसा की।

4. 4 दिसंबर 2018 को अवर सचिव गृह ने एडीजी विसबल से सवाल किया कि क्या संविलियन से वित्तीय भार बढ़ेगा?

5. 4 जनवरी 2019 को इसका जवाब डीआईजी विसबल ने जवाब दिया कि वित्तीय भार नहीं पड़ेगा।

6.24 मार्च 2022 को तत्कालीन गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने नोटशीट पर लिखा कि पूर्वानुसार संविलियन आदेश जारी करना चाहिए।

 

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