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MP news: पुलिस पर रसूखदारों और नेताओं के दबाव में काम करने के आरोप लगते रहे हैं। 'द सूत्र' ने ऐसा खुलासा किया है जो इसे प्रमाणित करता है। पुलिस सत्ता पक्ष के नेताओं और रसूखदारों की इज्जत बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन कर रही है।
पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन FIR अपलोड होती हैं। कोई भी नागरिक पोर्टल पर लॉगिन कर FIR देख और डाउनलोड कर सकता है। पुलिस पोर्टल पर FIR चेहरे देखकर अपलोड करती है। क्रिमिनल मामलों के विशेषज्ञ अधिवक्ता अमिताभ गुप्ता ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिए हैं। पुलिस को 48 घंटे के भीतर FIR अपलोड करनी होती है। दूर-दराज के थानों में कनेक्टिविटी की वजह से 72 घंटे का समय दिया गया है। केवल संवेदनशील मामलों में FIR अपलोड न करने की अनुमति होती है। इसके लिए डीएसपी रैंक या उससे ऊपर के अधिकारी की मंजूरी जरूरी है।
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पोर्टल पर नहीं दिखती रसूखदारों की FIR
हमने साल 2024 से लेकर अब तक के रसूखदारों और नेताओं से जुड़े हुए मामले पुलिस के FIR पोर्टल पर सर्च किये, जिसके नतीजे चौंकाने वाले थे। इस पड़ताल में यह सामने आया की नामचीन बिल्डरों पत्रकारों और भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज अपराधों में FIR महीनो बाद भी पोर्टल पर अपलोड नहीं की जाती।
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पत्रकार गंगा पाठक का मामला पोर्टल से नदारत
आदिवासी की जमीन हड़पने के मामले में जबलपुर में पत्रकार गंगा पाठक और उसके साथियों के खिलाफ राजस्व विभाग की जांच के बाद मामला दर्ज करने के लिए आदेश दिया गया था। इस मामले में थाना बरगी में FIR क्रमांक 120/25 दर्ज की गई थी। पुलिस के ऑफिशल पोर्टल में यह FIR 2 महीने बीतने के बाद भी अपलोड नहीं हुई है। पोर्टल में 12 मार्च 2025 को FIR क्रमांक 92/25 दिख रही है और उसके बाद 13 मार्च को FIR क्रमांक 121/25 नजर आ रही है। पुलिस ने गंगा पाठक के खिलाफ दर्ज FIR 120/25 को आज तक अपलोड नहीं किया है। इसी तरह तिलवारा थाने में दर्ज की गई FIR क्रमांक 93/25 भी पोर्टल से नदारत है।
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नरसिंहपुर बीजेपी उपाध्यक्ष की FIR भी छुपाई
हाल ही में नरसिंहपुर के भाजपा उपाध्यक्ष संतोष पटेल के ऊपर एक अनुसूचित जाति की महिला से अश्लील बातें करने के आरोप लगे थे जिसके बाद भाजपा जिला उपाध्यक्ष ने इस्तीफा भी दे दिया था। इस मामले में FIR क्रमांक 69/25 दर्ज की थी। इस मामले ने मीडिया में सुर्खियां भी बटोरी थी लेकिन पुलिस के पोर्टल में यह FIR अपलोड ही नहीं हुई। आपको बता दें कि इसी तरह का एक मामला जीतू पटवारी के ऊपर भी लगा था जब इमरती देवी ने डबरा थाने में उनके खिलाफ FIR क्रमांक 355/24 दर्ज कराई थी। यह FIR पुलिस ने पोर्टल में तुरंत अपलोड की और इसमें कोई भी कोताहि नहीं बरती, क्योंकि जीतू पटवारी सत्ता पक्ष के नेता नहीं है।
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वकीलों और पुलिस के खिलाफ FIR भी नहीं हुई अपलोड
बीते दिनों जबलपुर में माढ़ोताल थाना अंतर्गत चेकिंग के दौरान वकीलों और पुलिस कर्मियों के बीच विवाद हुआ था। इस मामले में वकीलों के भारी आक्रोश के चलते पुलिस कर्मियों के खिलाफ FIR दर्ज की गई थी। पुलिस के द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार वकीलों के खिलाफ भी FIR दर्ज करने की बात की गई थी। घटना दिनांक को पोर्टल में FIR 291/25 के बाद सीधे फिर 294/25 नजर आ रही है। इस तरह पोर्टल से कुल 2 FIR अपलोड ना करके छुपा दी गई हैं।
भाजपा नेता अमित द्विवेदी की FIR नहीं हुई अपलोड
भाजपा नेता अमित द्विवेदी जो अपने साथियों के साथ एक रहवासी क्षेत्र में पेड़ काटने के लिए पहुंचे थे तो इसके विरोध के चलते उनके ऊपर एक दलित परिवार से मारपीट करने के आरोप लगे थे। अमित द्विवेदी के साथियों ने भी उस परिवार के खिलाफ मारपीट के आरोप लगाए थे। इस मामले में दलित परिवार के खिलाफ दर्ज की गई FIR क्रमांक 419/24 तो पुलिस के द्वारा पोर्टल पर अपलोड की गई लेकिन भाजपा नेता अमित द्विवेदी के खिलाफ दर्ज की गई FIR क्रमांक 420/24 को 7 महीने बीत जाने के बाद भी आज तक पोर्टल पर अपलोड नहीं किया गया है। ऐसे ढेरों मामले हैं जिसमें यह साफ नजर आ रहा है कि सत्ता पक्ष के नेताओं और रसूखदारों से जुड़े मामलो की FIR पुलिस के द्वारा जानबूझकर छुपाई जा रही और समय-समय पर हाई कोर्ट के द्वारा दिए गए निर्देशों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुला उल्लंघन हो रहा है।
पुलिस की साख पर उठे सवाल
इस पड़ताल से यह साफ हो जाता है कि पुलिस तंत्र अब न सिर्फ सत्ता पक्ष के रसूखदारों और प्रभावशाली नेताओं के दबाव में काम कर रहा है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देशों की भी खुलेआम अवहेलना कर रहा है। FIR पोर्टल की पारदर्शिता का उद्देश्य आमजन को न्याय व्यवस्था में भरोसा दिलाना था, लेकिन जब कानून के रखवाले ही चेहरों और पहचान के आधार पर FIR छिपाने लगें, तो आम आदमी की न्याय तक पहुंच और भी मुश्किल हो जाती है। यह प्रवृत्ति न केवल लोकतंत्र के लिए घातक है, बल्कि न्याय की अवधारणा पर सीधा प्रहार भी है। अगर समय रहते इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं लाई गई, तो आम जनता का पुलिस और कानून पर से विश्वास पूरी तरह खत्म हो जाएगा।
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मध्य प्रदेश एमपी हिंदी न्यूज