आदिवासियों की जमीन हड़पने के मामले में गंगा पाठक के घर पर पुलिस की दबिश
नगर पुलिस अधीक्षकों के नेतृत्व में तीन थानों की पुलिस ने गंगा पाठक के सुख सागर स्थित ग्वारीघाट आवास पर छापेमारी की। हालांकि, गंगा पाठक फरार हो गया और पुलिस के हाथ नहीं लगा। इस कार्रवाई के दौरान पुलिस ने गंगा पाठक के घर में तलाशी ली।
आदिवासियों की भूमि हड़पने के मामले में फरार गंगा पाठक और उनकी पत्नी को पकड़ने के लिए पुलिस की कोशिश नाकामयाब रही। नगर पुलिस अधीक्षकों के नेतृत्व में लगभग तीन थाने के बल ने गंगा पाठक के सुख सागर वाली ग्वारीघाट स्थित आवास पर अचानक छापामार कार्यवाही की लेकिन फरार गंगा पाठक पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ पाया।
जबलपुर में आदिवासी जमीनों पर कब्जे का एक और बड़ा मामला सामने आया है, जिसमें चर्चित पत्रकार गंगा पाठक और उसके साथियों द्वारा फर्जी दस्तावेजों के जरिए करोड़ों की आदिवासी भूमि हड़पने का घोटाला उजागर हुआ है। प्रशासनिक जांच में यह साबित हुआ कि आरोपियों ने कूटरचित दस्तावेजों के आधार पर वीरन सिंह गोंड की पुश्तैनी जमीन अपने नाम करवा ली। एसडीएम अभिषेक सिंह ठाकुर ने इस धोखाधड़ी को देखते हुए न केवल रजिस्ट्री को शून्य घोषित किया, बल्कि जमीन को पीड़ित परिवार के नाम पुनः दर्ज करने के आदेश भी दिए। इस मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद से ही गंगा पाठक उनकी पत्नी और अन्य आरोपी फरार हैं जिनको पकड़ने के लिए पुलिस अलग-अलग ठिकानों पर दबिश दे रही है, लेकिन पुलिस के हाथ सफलता अब तक नहीं लग पाई है।
गोंड बना राजपूत, सरकारी कागजों में हेराफेरी
इस फर्जीवाड़े को अंजाम देने के लिए गंगा पाठक और उसके सहयोगियों ने वीरन सिंह गोंड के नाम को बदलकर "वीरन सिंह राजपूत" करवा दिया। इतना ही नहीं, उसके पिता के नाम में भी "राजपूत" जोड़ दिया गया ताकि कोई यह न समझ सके कि यह जमीन आदिवासी समुदाय की है। यह हेराफेरी इसलिए की गई क्योंकि मध्य प्रदेश भूमि राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 के तहत बिना कलेक्टर की अनुमति के आदिवासी जमीन बेची नहीं जा सकती। आश्चर्यजनक रूप से, तत्कालीन उप पंजीयक जितेंद्र राय की भूमिका इस पूरे मामले में संदिग्ध पाई गई। उन्होंने बिना किसी ठोस जांच के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर गंगा पाठक और उसके सहयोगियों के नाम पर जमीन की रजिस्ट्री कर दी।
आदिवासी परिवार को खुद की जमीन से निकालने पर हुआ खुलासा
यह घोटाला तब सामने आया जब वीरन सिंह गोंड को अचानक पता चला कि उनकी पुश्तैनी जमीन अब उनके नाम पर नहीं रही। जब उन्होंने तहसील कार्यालय से जानकारी मांगी, तो पता चला कि जमीन की रजिस्ट्री गंगा पाठक और उसके साथियों के नाम हो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने कलेक्टर कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई, जिसके आधार पर तहसीलदार ने जांच शुरू की। रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया कि रजिस्ट्री में भारी गड़बड़ी हुई थी।
एसडीएम कोर्ट का फैसला और आरोपियों की फरारी
एसडीएम कोर्ट ने इस घोटाले को गंभीर मानते हुए फर्जी रजिस्ट्री को शून्य करने और जमीन को असली मालिक के नाम वापस करने का आदेश दिया। जैसे ही एसडीएम कोर्ट में मुकदमा दायर हुआ और गंगा पाठक समेत अन्य आरोपियों को नोटिस भेजे गए, तो वे सभी फरार हो गए।
पुलिस ने मारा रेड, बंगले से गायब मिला गंगा पाठक
पुलिस ने जब इस मामले में एफआईआर दर्ज की तब से ही गंगा पाठक समेत अन्य आरोपी फरार हैं। गंगा पाठक और उसकी पत्नी समेत अन्य आरोपियों पर शिकंजा कसने के लिए जबलपुर के ग्वारीघाट स्थित सुखसागर बंगले पर दबिश दी गई। पुलिस की तीन थानों की संगठित टीम ने इस ठिकाने पर छापा मारा, जिसमें थाना प्रभारी और दो नगर पुलिस अधीक्षक भी मौजूद थे। हालांकि, पुलिस जब मौके पर पहुंची तो गंगा पाठक और उसकी पत्नी फरार मिले। पुलिस ने परिजनों को सख्त निर्देश दिए हैं कि वे जांच में सहयोग करें। बरगी नगर पुलिस अधीक्षक अंजुल अयंक मिश्रा ने द सूत्र को बताया की गंगा पाठक और उनकी पत्नी सहित अन्य आरोपियों के ऊपर बरगी एवं तिलवारा थाने में अलग-अलग मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। यह आरोपी FIR दर्ज होने के बाद से ही फरार हैं और इनकी तलाश में अलग-अलग ठिकानों पर दबिश दी जा रही है। पुलिस के अनुसार यह आरोपी जल्द ही पुलिस की गिरफ्त में होंगे। आपको बता दे की गंगा पाठक के द्वारा लोअर कोर्ट में जमानत का आवेदन दिया गया था पर उसका यह आवेदन अदालत के द्वारा खारिज कर दिया गया है।