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jairam-ramesh-privilage-motion Photograph: (thesootr)
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दायर किया है। इस नोटिस राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से की गई कार्रवाई की मांग की है। नोटिस में आरोप लगाया गया है कि किरेन रिजिजू ने 24 मार्च 2025 को सदन में कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के खिलाफ गलत बयान दिए, जिससे सदस्यों को गुमराह किया गया और सदन की अवमानना हुई। जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि यह बयान झूठे और भ्रामक थे, और इनसे विशेषाधिकार का उल्लंघन हुआ।
किरेन रिजिजू ने बिना नाम लिए कहा
जयराम रमेश के नोटिस के अनुसार किरेन रिजिजू ने सदन में यह कहा कि कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा है कि उनकी पार्टी मुस्लिमों को आरक्षण देने के लिए संविधान में बदलाव करेगी। हालांकि, रिजिजू ने इस दौरान किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन यह माना जा रहा है कि उनका इशारा कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार की तरफ था। रिजिजू के इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, खासकर कर्नाटक और दिल्ली में।
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कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण का विवाद
कर्नाटक सरकार ने हाल ही में मुसलमानों को ठेकों में 4 फीसदी आरक्षण देने का फैसला लिया है, जिसे लेकर विवाद शुरू हो गया है। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने इस मुद्दे पर बयान दिया था कि संविधान में समय आने पर बदलाव किया जा सकता है। उनका यह बयान राजनीतिक वाद-विवाद का कारण बना और बीजेपी नेता इस पर हमलावर हो गए। शिवकुमार के बयान के बाद, बीजेपी ने इस मुद्दे को कोर्ट में ले जाने की बात की है।
विशेषाधिकार हनन का नोटिस: क्या होगा आगे?
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने संसदीय कार्य मंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दायर कर इस मामले में कार्रवाई की मांग की है। इस नोटिस के बाद, अब यह देखना होगा कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ इस मामले पर क्या कदम उठाते हैं। यह मामला इस बात पर केंद्रित है कि क्या किरेन रिजिजू द्वारा दिए गए बयान से सदन की अवमानना हुई है और क्या इसके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
Congress Chief Whip in Rajya Sabha and AICC General Secretary-Communication Shri @Jairam_Ramesh submits a notice of question of privilege to the Rajya Sabha Chairman Shri Jagdeep Dhankhar against Shri Kiren Rijiju, Minister of Parliamentary Affairs, for having blatantly misled… pic.twitter.com/m3jTXpUlTJ
— Congress (@INCIndia) March 24, 2025
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क्या है विशेषाधिकार हनन (Privilege Motion)?
विशेषाधिकार हनन (Privilege Motion) एक प्रकार का प्रस्ताव होता है जो किसी सदस्य या मंत्री द्वारा संसद के किसी अन्य सदस्य, मंत्री, या सरकारी अधिकारी द्वारा सदन की अवमानना या संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन किए जाने पर लाया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद की गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन न हो। विशेषाधिकार हनन के अंतर्गत अगर किसी सदस्य द्वारा गलत बयान दिया जाता है या किसी अन्य प्रकार से संसद की प्रक्रिया में विघ्न डाला जाता है, तो उस सदस्य के खिलाफ यह प्रस्ताव लाया जा सकता है।
विशेषाधिकार हनन कैसे लाया जाता है?
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नोटिस देना
यदि किसी सदस्य को लगता है कि संसद के किसी मंत्री ने सदन के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है, तो वह सदस्य विशेषाधिकार हनन के तहत एक नोटिस दायर कर सकता है। यह नोटिस राज्यसभा या लोकसभा के सभापति को दिया जाता है। -
साक्ष्य और आरोप
नोटिस में यह स्पष्ट किया जाता है कि मंत्री द्वारा कौन सा बयान या कार्रवाई संसद के विशेषाधिकार का उल्लंघन करती है। इसमें साक्ष्य भी पेश किए जाते हैं कि यह कार्रवाई या बयान गलत या भ्रामक था, जिससे सदन की कार्यवाही में विघ्न पड़ा। -
सभापति द्वारा निर्णय
नोटिस मिलने के बाद, सभापति (या लोकसभा के मामले में स्पीकर) इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। अगर नोटिस स्वीकार किया जाता है, तो इसे संसद में चर्चा के लिए लाया जाता है। सभापति यह भी तय कर सकते हैं कि क्या इसे तत्काल या बाद में चर्चा के लिए रखा जाएगा। -
प्रस्ताव पर चर्चा
अगर विशेषाधिकार हनन के प्रस्ताव पर चर्चा होती है, तो संसद के सदस्य उस प्रस्ताव पर बहस करते हैं और उस मंत्री के खिलाफ आरोपों पर विचार करते हैं। इसके बाद, संसद में मतदान करके यह तय किया जाता है कि उस मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई की जानी चाहिए या नहीं। -
सजा और कार्रवाई
यदि विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है और मंत्री दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें विभिन्न प्रकार की सजा दी जा सकती है, जैसे सार्वजनिक माफी, मंत्री पद से इस्तीफा देना, या अन्य सजा निर्धारित करना।
विशेषाधिकार हनन के उद्देश्य...
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संसदीय गरिमा की रक्षा: संसद के सदस्यों और मंत्रियों द्वारा किए गए गलत बयानों और कार्यों से संसद की गरिमा को बनाए रखना।
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सदन के कार्यों में विघ्न का निवारण: ताकि कोई भी सदस्य या मंत्री सदन की कार्यवाही में विघ्न न डाले और नियमों का पालन करें।
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संसदीय अधिकारों का संरक्षण: यह सुनिश्चित करने के लिए कि संसद के अधिकारों का उल्लंघन न हो और सदस्यों के विशेषाधिकार सुरक्षित रहें।
FAQ- खबर से संबंधित प्रश्न