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Photograph: (The Sootr)
BHOPAL. भारत का हृदय है मध्यप्रदेश। यह धरती जितनी हरियाली से भरपूर है, उतनी ही जलधारा से भी। यहां का कण-कण नदियों की गूंज सुनाता है। सदियों से इन नदियों ने गांवों को जीवन दिया। खेतों को अन्न दिया। संस्कृति को आत्मा दी...इसीलिए तो मध्यप्रदेश को नदियों का मायका कहा जाता है।
यहां से निकलने वाली करीब 750 नदियां केवल प्रदेश का ही नहीं, पूरे देश का आधार बनती हैं। नर्मदा, ताप्ती, गोदावरी, माही और महानदी जैसे विशाल प्रवाह इन्हीं छोटी-बड़ी नदियों की देन हैं। इसी जीवनदायिनी परंपरा को नया स्वर दे रहे हैं मध्यप्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल।
वे नदियों के उद्गम स्थल पर पहुंचकर वहां की स्थिति देख रहे हैं। स्थानीय लोगों को जलधाराओं से जोड़ रहे हैं और अफसरों को खामियां दूर करने के लिए निर्देश दे रहे हैं।
नर्मदा भक्त प्रहलाद सिंह पटेल ने अब तक 98 नदियों के उद्गम स्थल तक अपनी यात्राएं की हैं। उनका लक्ष्य 108 उद्गम स्थलों तक पहुंचना है।
वे जहां भी जाते हैं, वहां की मिट्टी और जल को संजोकर वापस लाते हैं। शीशियों में बंद यह जल उनके घर की अलमारी में केवल संग्रह नहीं, बल्कि आस्था और चेतना का प्रतीक है। इस अनोखी के यात्रा के पीछे कई संदेश छिपे हैं। पटेल का मानना है कि जब छोटी नदियों का उद्गम सुरक्षित रहेगा, तभी बड़ी नदियां जिंदा रहेंगी।
जलवायु परिवर्तन और पानी के संकट के इस दौर में यह संदेश बेहद अहम है। सबसे खास यह है कि जब एक मंत्री खुद पैदल गांव, जंगल और पहाड़ियों से होकर उद्गम स्थल तक पहुंचता है तो यह जनता में नदी संरक्षण का आंदोलन खड़ा करता है।
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'परिक्रमा' का भागवत करेंगे लोकार्पण
प्रहलाद पटेल के लिए जल संरक्षण केवल भाषणों का विषय नहीं है। वे कहते हैं, यह उनका जीवन है। वे दो बार नर्मदा परिक्रमा कर चुके हैं। इस अनुभव को उन्होंने अपनी आने वाली पुस्तक 'परिक्रमा' में दर्ज किया है। इस किताब का लोकार्पण 14 सितंबर 2025 को संघ प्रमुख डॉ.मोहन भागवत करेंगे। पटेल कहते हैं, नदियों के उद्गम पर अपूर्व ऊर्जा होती है। ये स्थल हमारे पुरखों से भी पहले के हैं। जहां जल स्रोत हैं, वहीं जीवन बसा है। यदि इन छोटी नदियों का उद्गम सूख गया तो बड़ी नदियां भी सूख जाएंगी।
हर छोटी नदी के उद्गम पर पहुंच रहे
पटेल मानते हैं कि मध्यप्रदेश की पहचान उसकी नदियों से है। जब तक गोई जैसी सहायक नदियों का प्रवाह सुरक्षित रहेगा, तभी नर्मदा जैसी विशालतम नदियां भी जीवित रहेंगी। जलवायु परिवर्तन के इस दौर में उनका संदेश है कि हमें कुछ ऐसा करना होगा कि अगली पीढ़ियां भी हरित, स्वच्छ और निर्मल वातावरण में सांस ले सकें।
उनकी यात्राएं किसी साधक की तपस्या जैसी हैं। सागर की पहाड़ियों से बहती सागर नदी हो या कुंवारी, कूनो, टमस, बिछिया, पयस्वनी, अमरन, कावेरी, किलकिला, बाघिन, मुरार, कन्हान या शक्कर नदी… हर उद्गम स्थल पर वे झुककर नदियों की गोद को प्रणाम कर चुके हैं। माही, ताप्ती, वर्धा और पूर्णा का प्रवाह भी उनके इस सफर का हिस्सा बने हैं।
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सभ्यता की आत्मा हैं हमारी नदियां
गांवों की पगडंडियों, पहाड़ों की ढलानों और घने जंगलों से होकर गुजरती उनकी यह यात्रा बताती है कि नदियां केवल पानी की धारा नहीं, बल्कि सभ्यता की आत्मा हैं। मंत्री पटेल कहते हैं, जब मैं उद्गम स्थल पर मिट्टी छूता हूं तो लगता है, जैसे समय की धारा से संवाद कर रहा हूं। उनके कदम-कदम पर यही संदेश गूंजता है कि अगर हम अपनी नदियों को नहीं बचाएंगे, तो आने वाला समय हमें नहीं बचाएगा।
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