Shivraj को लेकर Raghavji ने किया बड़ा खुलासा, CM बनने की बता दी पूरी सच्चाई

मध्य प्रदेश के वित्तमंत्री रह चुके राघवजी ने बातचीत में अपने ऊपर लगे गंभीर केस के बारे में भी 'द सूत्र' खुलकर बात की। उन्होंने माना कि यदि तब CM शिवराज चाहते तो केस बनता ही नहीं, क्योंकि उसमें कोई दम नहीं था।

Advertisment
author-image
Jitendra Shrivastava
New Update
बपबप

राघवजी

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

रविकांत दीक्षित, BHOPAL

मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री एवं विदिशा से लोकसभा सांसद रहे राघवजी ( Raghavji ) भाई ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लेकर कई खुलासे किए हैं। 'द सूत्र' से बातचीत में उन्होंने कहा कि शिवराज ने ही बीजेपी में लॉबिंग का सिस्टम शुरू किया था। वे शुरुआत से ही जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी रहे। पदों के पीछे रहते थे। 

Raghavji ने कहा वरना... उमा भारती ही मुख्यमंत्री बनतीं

शिवराज सरकार में 10 वर्ष वित्त मंत्री रहे राघवजी ( Raghavji ) भाई ने शिवराज को विधानसभा का पहला टिकट मिलने और फिर लोकसभा टिकट मिलने के किस्से बयां किए। इसी के साथ बाद में उनके मुख्यमंत्री बनने तक के सफर पर कई खुलासे किए। उन्होंने यह भी बताया कि शिवराज ने मुख्यमंत्री बनने के लिए किस तरह, तब बीजेपी के वरिष्ठ नेता प्रमोद महाजन की मदद ली थी, वरना उमा भारती ही मुख्यमंत्री बनतीं। बातचीत में राघवजी ने अपने ऊपर लगे उस गंभीर केस के बारे में भी खुलकर बात की। उन्होंने माना कि यदि तब CM शिवराज चाहते तो केस बनता ही नहीं, क्योंकि उसमें कोई ही दम नहीं था। हालांकि, बतौर वित्त मंत्री अपने काम को याद करते हुए राघवजी ने यह भी कहा कि शिवराज जी और मेरा सामंजस्य अच्छा रहा। उन्होंने मेरे काम में कभी अड़ंगा नहीं लगाया। हम भी उनकी योजनाओं को पूरा करते थे। 

ये खबरें भी पढ़ें...

लोकसभा चुनाव के लिए BJP ने जिन्हें उम्मीदवाद बनाया, जानिए उनके बारे में

Madhya Pradesh BJP: पांच वर्तमान सांसदों के टिकट कटने के पीछे की कहानी

इंदौर सांसद टिकट पर लालवानी का क्या होगा? पहली सूची में इंदौर होल्ड, फिर नजरें महिला और युवा दावेदारों पर

सिंधिया को गुना से दिया टिकट, कमलनाथ की छिंदवाड़ा होल्ड

राघवजी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश...

सवाल: आपने कहा शिवराज महत्वाकांक्षी हैं, लॉबिंग करते थे...विस्तार से बताईए?

जवाब: युवा मोर्चा में पद पाने के लिए शिवराज मुझसे और कैलाश सारंग से बार-बार कहते थे कि मुझे अध्यक्ष बना दो। बाद में उन्हें अध्यक्ष बना भी दिया गया। फिर और आगे बढ़ने की बात करने लगे। इस पर मैंने कहा कि आप कितने ही बड़े पद धारण कर लें, लेकिन जब तक विधायक नहीं बनेंगे, तब तक कोई कॅरियर नहीं बनेगा। 

सवाल: आपने उन्हें टिकट दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी?

जवाब: मैंने उन्हें सलाह दी थी कि बुदनी के रहने वाले हैं तो वहीं से चुनाव लड़िए। वहीं से टिकट दिलवा देते हैं। मैंने कुशाभाऊ ठाकरे जी, कैलाश सारंग जी से बात की, लेकिन उन्होंने टिकट देने से इनकार कर दिया। 

सवाल: दोनों वरिष्ठ नेता शिवराज को टिकट देने के पक्ष में क्यों नहीं थे?

जवाब: शिवराज विद्यार्थी परिषद में थे और शालिगराम तोमर इनसे नाराज थे। उनका कहना था कि इन्होंने गड़बड़ी की है, इसलिए इन्हें किसी भी हालत में टिकट नहीं देना है। तब मैंने शिवराज जी को टिकट देने की पैरवी करते हुए जिताने की जिम्मेदारी ली। चूंकि हमारे पास बुदनी में दूसरा कोई अच्छा उम्मीदवार नहीं था। इस तरह उन्हें बुदनी से टिकट मिला और बाद में चुनाव जीतकर वे विधायक बने। 

सवाल: शिवराज को सांसद का टिकट कैसे मिला था?

जवाब: इन्होंने सांसद बनने के लिए भी लॉबिंग की। सांसद के टिकट में भी मैंने, पटवा जी और ठाकरे जी ने मिलकर तय किया। शिवराज को टिकट मिला और ये विदिशा संसदीय सीट से सांसद बन गए। 

सवाल: आपने लॉबिंग शब्द इस्तेमाल किया है, किस तरह की लॉबिंग?

जवाब: पदों के लिए ये (शिवराज) लॉबिंग करते थे। सांसद बनने के लिए लॉबिंग की। जब ये विधायक बने थे, तब भी युवा मोर्चा खड़ा कर दिया था। पटवा जी को परेशान करते थे। शिवराज की मंशा मिनिस्टर बनने की थी। इस पर पटवा जी ने उन्हें लोकसभा में भेज दिया था। इसी तरह लॉबिंग करके वे युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। लॉबिंग करके ही वे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बने। ऐसे तो वे प्रदेश अध्यक्ष बन नहीं सकते थे, क्योंकि वे एक बार विद्रोह करके खड़े हो गए थे। तब कुशाभाऊ ठाकरे जी इस चुनाव में विक्रम वर्मा को लड़ाना चाहते थे, वे ही उम्मीदवार थे। इस पर शिवराज ने पटवा जी के साथ मिलकर खुद खड़े हुए और हार गए। इनकी लॉबिंग में और भी लोग थे। 

सवाल: इस घटनाक्रम पर ठाकरे जी की क्या प्रतिक्रिया थी?

जवाब: ठाकरे जी ने मुझसे कहा कि हमें विक्रम वर्मा को जिताना है तो हमने उस पर काम किया। विदिशा में प्रदेश परिषद के छह वोट थे। लिहाजा, पटवा जी मेरे पास आए और बोले कि एक-दो वोट तो दिलवा दीजिए। मैंने उनसे कहा था कि विदिशा का तो एक भी वोट नहीं मिलेगा आपको। बाद में यहां भी संगठन में कब्जा करने के लिए शिवराज बहुत कोशिश करते रहे, लेकिन उनकी सियासी तौर पर हार हुई। 

सवाल: शिवराज मुख्यमंत्री कैसे बने थे?

जवाब: शिवराज जरूरत से ज्यादा महत्वाकांक्षी रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए इन्होंने प्रमोद महाजन का सहारा लिया। ये कोई वोटों से मुख्यमंत्री नहीं बने थे। मुख्यमंत्री बनने के पहले ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इनका नाम घोषित कर दिया था। फिर यहां पर विधायकों की राय जानने के लिए भेजा गया, लेकिन इन सबका कोई अर्थ नहीं था। वोटिंग नहीं हुई। यदि वो नहीं होते तो उमा भारती मुख्यमंत्री बनतीं। भाग्य ने शिवराज का बड़ा साथ दिया। 

सवाल: बतौर मुख्यमंत्री आप शिवराज के काम को कैसे आंकते हैं?

जवाब: कुल मिलाकर उनके कार्यकाल में ऐसी कोई ज्वलंत उपलब्धियां तो नहीं कह सकते हैं। मैं वित्त मंत्री था, 10 वर्षों में प्रदेश की अर्थव्यवस्था ठीक कर दी थी हमने। उससे उन्हें बड़ा लाभ मिला। दिग्विजय सिंह जो स्थिति छोड़ गए थे, वो स्थिति बहुत खराब थी। हमें खाली खजाना मिला था। 10 वर्षों में हमने जीडीपी से लेकर हर आर्थिक मोर्चे पर प्रदेश को मजबूत किया। शिवराज जी ने हमारे काम में कभी अड़ंगा नहीं लगाया। हम भी उनकी योजनाओं को पूरा करते थे। 

सवाल: शिवराज जी के साथ सामंजस्य कैसा था?

जवाब: उन्होंने (शिवराज) कभी मेरी बात नहीं टाली और मैंने कभी उनकी बात नहीं टाली। हमारा सामंजस्य 10 वर्ष तक अच्छा चला, आखिरी वक्त में बिगड़ गया। 

सवाल: आखिरी वक्त में ऐसा क्या हुआ था?

जवाब: पक्का तो कुछ नहीं कह सकते, पर तब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन थे। शिवराज को शायद यह डर लगा कि ऐसा न हो कहीं राघवजी को मुख्यमंत्री बना दें, क्योंकि हम दोनों गुजरात से आते हैं। हो सकता है शुरू में उन्होंने ऐसा मन में सोचा होगा। अब कारण कुछ भी रहा हो। 

सवाल: आप पर जो गंभीर केस हुआ था, उसे लेकर क्या मानते हैं?

जवाब: ये जो केस बना, वह पूरा झूठा था। उसमें शिवराज का कितना हाथ था, मैं नहीं कह सकता, लेकिन मैं यह जरूर मानता हूं कि वे चाहते तो यह केस नहीं बनता। क्योंकि केस में भारी कमजोरियां थी। मेडिकल रिपोर्ट में यह साफ हो गया कि जिस व्यक्ति ने शिकायत की थी, उसके साथ कुछ हुआ ही नहीं था। इतना सब होने के बाद भी वह केस बन नहीं सकता था, लेकिन वो सीडी और फिर स्टेटमेंट और केस बना दिया गया। 

सवाल: क्या उस केस में सब कुछ प्लान था? 

जवाब: अब उस प्लान में इनकी (शिवराज) शुरुआत थी या अचानक इनके हाथ लग गया, जो भी हो, लेकिन उन्हें लगा कि यही मौका है। जो भी हुआ हो, लेकिन ज्यादा कुछ सबूत नहीं है, इसलिए कह नहीं सकते, पर ये जरूर है कि शिवराज चाहते तो केस नहीं बनता। 

सवाल: क्या शिवराज आपको अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखते थे?

जवाब: शुरुआत में यहां विदिशा में तो हम दोनों की अलग-अलग स्थिति हो ही गई थी, लेकिन वित्त मंत्रालय का मेरा कार्यकाल देखकर उनका मन बदल गया था। हमारे अच्छे संबंध हो गए थे। पहले कार्यकाल के बाद उन्होंने मुझसे कहा था कि आपको चुनाव लड़ना है और जीतना है। वित्त मंत्री हमें आपको ही बनाना है। इसके उलट पहले चुनाव में तो वे मेरे टिकट के पक्ष में ही नहीं थे, वो तो उमा भारती की वजह से मुझे टिकट मिला था। 

सवाल: क्या आप भी मानते हैं कि चुनाव में लाड़ली बहना योजना के फैक्टर ने काम किया है?

जवाब: उनके मन में शायद यह भाव भी है कि उन्हीं की वजह से सरकार बनी है। ऐसा कहते हैं कि लाड़ली बहना से सरकार बनी है। यदि लाड़ली बहना से सरकार बनी है तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कहां थी लाड़ली बहना, वहां भी तो बनी सरकार...पर शिवराज को यह भ्रम तो है कि लाड़ली बहनों ने जिताया है। उनके नेतृत्व की वजह से ही जीत मिली है। खैर, उनकी सोच है... हम क्या कह सकते हैं, पर मैं मानता हूं कि उन्हें अब पार्टी के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। 

raghavji राघवजी