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MP NEWS: मध्य प्रदेश में एक सनसनीखेज मामला सामने आया था। पन्ना जिले के अजयगढ़ में पदस्थ एक न्यायिक दंडाधिकारी (प्रथम श्रेणी) मनोज सोनी पर रेप का आरोप लगा था। सरकारी नौकरी कर रही कथित पीड़िता ने इस संबंध में FIR दर्ज कराई थी और इंसाफ की गुहार लगाते हुए जबलपुर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हालांकि, इस मामले में एक नया मोड़ आया है, जब हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारी के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है, जिससे पीड़िता के आरोपों पर सवाल खड़े हो गए हैं।
बलात्कार और दहेज प्रताड़ना के आरोप
पीड़िता के अनुसार, उनकी कहानी 2015 में शुरू हुई जब मनोज सोनी के यहां उनके लिए शादी का प्रस्ताव भेजा गया था। एक साल बाद, मनोज सोनी ने कथित तौर पर व्हाट्सएप और मोबाइल पर पीड़िता से बातचीत शुरू कर दी। इसके बाद, उन्होंने पीड़िता को पन्ना के जुगल किशोर मंदिर में अकेले बुलाया, जहां उन्होंने घोषणा की कि वह उसी से शादी करेंगे। पीड़िता ने यह भी आरोप लगाया कि रीवा में उनके एक रिश्तेदार के फार्म हाउस स्थित शिव मंदिर में संबंधियों की मौजूदगी में मनोज सोनी ने उनकी मांग में सिंदूर भरकर विवाह की पुष्टि की थी।
पीड़िता का दावा है कि 14 फरवरी, 2018 को मनोज सोनी ने उन्हें अजयगढ़ स्थित अपने सरकारी आवास पर बुलाया और सगाई की अंगूठी पहनाकर उन्हें अपनी मंगेतर घोषित कर दिया। इसके पांच दिन बाद, 19 फरवरी को, पीड़िता ने आरोप लगाया कि मनोज सोनी ने उनकी इच्छा के विरुद्ध उनके साथ रेप किया और उसके बाद कई बार उनका दैहिक शोषण किया।
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जज ने तोड़ी थी शादी
पुलिस द्वारा कथित तौर पर कोई कार्रवाई न किए जाने और आरोपी जज के विवाह पर रोक लगाने की मांग करते हुए पीड़िता ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका के बाद ही पुलिस ने न्यायिक अधिकारी के खिलाफ रेप का मामला दर्ज किया था और इसकी जानकारी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को दी थी।
हालांकि, न्यायिक अधिकारी मनोज सोनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उनके वकील ने अदालत में बताया कि पीड़िता के परिवार की ओर से शादी का प्रस्ताव जरूर आया था, लेकिन इसे कभी स्वीकार नहीं किया गया। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उन्हें बाद में पता चला कि पीड़िता के खिलाफ रिश्वतखोरी का एक आपराधिक मामला लंबित है, जिसे उसने छुपाया था। एक न्यायिक अधिकारी होने के नाते, मनोज सोनी ने इस जानकारी के बाद शादी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
शादी का वादा टूटना नहीं माना जा सकता रेप
हाईकोर्ट ने इस पूरे मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए न्यायिक अधिकारी मनोज सोनी के खिलाफ दर्ज रेप और दहेज उत्पीड़न की FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीड़िता के आरोप प्रथम दृष्टया विश्वसनीय नहीं लगते हैं।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पीड़िता एक पढ़ी-लिखी और सरकारी नौकरी करने वाली बालिग महिला हैं, जिन्होंने कथित धोखे या जबरदस्ती के किसी भी ठोस सबूत के बिना लगभग दो वर्षों तक सहमति से संबंध बनाए रखे। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ शादी का वादा टूटना रेप नहीं माना जा सकता, खासकर जब यह साबित न हो कि वादा शुरू से ही झूठा था और महिला को धोखा देने के इरादे से किया गया था।
इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने दहेज के आरोपों को भी निराधार बताया और कहा कि इस संबंध में कोई विश्वसनीय सबूत पेश नहीं किया गया है। कोर्ट ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि तथाकथित पीड़िता न्यायिक अधिकारी द्वारा शादी से इनकार करने के बाद उन्हें परेशान करने की कोशिश कर रही थी।
मील का पत्थर साबित हो सकता है यह फैसला
हाईकोर्ट का यह फैसला इस संवेदनशील मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां हाईकोर्ट ने FIR को रद्द करके न्यायिक अधिकारी को बड़ी राहत दी है। यह फैसला उन मामलों पर भी सवाल उठाता है जहां प्रेम संबंध टूटने के बाद रेप के आरोप लगाए जाते हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में आरोपों की सत्यता और इरादे की गहराई से जांच करना जरूरी है ताकि किसी निर्दोष को प्रताड़ित न किया जाए।अब देखना यह होगा कि पीड़िता इस फैसले के खिलाफ आगे क्या कानूनी कदम उठाती हैं। फिलहाल, हाईकोर्ट के इस फैसले ने न्यायिक अधिकारी मनोज सोनी को बड़ी राहत दी है, लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कानूनी और सामाजिक हलकों में एक नई बहस छेड़ दी है।