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भोपाल।
स्थानीय बरखेड़ा पठानी स्थित राज्य लघु वनोपज प्रसंस्करण एवं अनुसंधान केंद्र में तैयार हो रही विंध्या हर्बल ब्रांड की आयुर्वेदिक दवाएं अब लोगों की सेहत के लिए खतरा बनती जा रही हैं। जिन दवाओं पर सरकार और जनता ने आंख मूंदकर भरोसा किया, उन्हीं दवाओं के कई नमूने ग्वालियर की सरकारी ड्रग टेस्टिंग लैब में बार-बार फेल हो चुके हैं।
हैरानी की बात यह है कि इसके बावजूद इन्हीं अमानक दवाओं की आपूर्ति प्रदेश के सरकारी आयुर्वेद अस्पतालों में जारी है।
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सैंपल फेल, फिर भी अस्पतालों में सप्लाई
सितंबर 2024 में केंद्र ने जोड़ों के दर्द की आयुर्वेदिक दवा सिंहनाद गुग्गुलु का एक बैच तैयार किया। लैब जांच में दवा में राख की मात्रा तय मानक से ज्यादा पाई गई, जिससे यह फेल हो गया। बाद में संस्थान ने अपनी ही तय मानकों में बदलाव कर नए सैंपल को पास करवा लिया, और वही फेल दवा मरीजों को थमा दी गई।
जानलेवा हो सकती हैं अमानक आयुर्वेदिक दवाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि सिंहनाद गुग्गुलु सहित अन्य धातु-युक्त दवाओं में यदि सामग्री की मात्रा संतुलित नहीं हो, तो इससे लीवर, किडनी सहित शरीर के अन्य अंग प्रभावित हो सकते हैं। लौह भस्म, अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म और रस सिंदूर जैसी दवाओं के लिए भारत सरकार ने सख्त मानक तय किए हैं, जिनका उल्लंघन खतरनाक साबित हो सकता है।
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अन्य राज्यों ने जताया अविश्वास
राजस्थान और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने विंध्या हर्बल की दवाओं की गुणवत्ता पर सवाल उठाते हुए पहले ही सप्लाई लेना बंद कर दी है। 2017-18 तक यह दवाएं वहां भेजी जाती थीं, लेकिन बार-बार गुणवत्ता में कमी सामने आने पर उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया।
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नहीं मिला 'आयुष प्रीमियम मार्का'
भारत सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता प्रमाणपत्र आयुष प्रीमियम मार्का भी विंध्या हर्बल को नहीं मिल पाया। जांच एजेंसी टी-क्यू सर्ट द्वारा की गई जांच में दवाएं तय मानकों पर खरी नहीं उतरीं, जिससे यह ब्रांड अब राष्ट्रीय बाजार से लगभग बाहर हो गया है।
वनवासियों से नहीं खरीदते कच्चा माल
राज्य की 1072 लघु वनोपज समितियों और 121 बंधन केंद्रों से केवल 5 % से भी कम कच्चा माल खरीदा जाता है। जबकि इन्हीं समितियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से यह अनुसंधान केंद्र शुरू किया गया था। बाकी 95 % सामग्री निजी टेंडरों से खरीदी जाती है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं।
घटिया शहद अब भालुओं के हवाले
2022-23 में केंद्र ने राजस्थान की एक फर्म से करीब 28 टन शहद खरीदा, जिसकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि उसे बाजार में नहीं बेचा जा सका। अब यह शहद वन विहार भोपाल में भालुओं को खपाया जा रहा है, फिर भी लगभग 8-10 टन शहद अब तक में पड़ा है।
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अनुभवहीन हाथों में दवाओं का जिम्मा
दवाओं के निर्माण में अनुभवहीन वन अमले को लगाया गया है। सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए दो आयुर्वेदिक डॉक्टर नियुक्त किए गए हैं, जिनका अधिकांश समय निजी प्रैक्टिस में गुजरता है। अनुसंधान और गुणवत्ता नियंत्रण की जिम्मेदारी एक संविदा पर कार्यरत ग्रेजुएट रसायन सहायक के पास है। केंद्र की अमानक दवाओं को लेकर जिम्मेदार अधिकारी बेफिक्र नजर आते हैं। राज्य लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक विभाष कुमार ठाकुर कहते हैं-दवाओं के नमूने फेल होना कोई नहीं बात नहीं है। यह तो होते रहता है।
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विश्वसनीयता बचाने ठोस कदम जरूरी
विंध्या हर्बल की दवाओं को लेकर सामने आई गंभीर खामियां आमजन के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय हैं। राज्य सरकार को चाहिए कि वह इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय जांच कराए और आयुर्वेद की विश्वसनीयता बचाने के लिए ठोस कदम उठाए।