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Photograph: (the sootr)
JABALPUR. रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर (RDVV) में एक महिला अधिकारी द्वारा कुलगुरु राजेश वर्मा पर लगाए गए छेड़छाड़ के गंभीर आरोपों के मामले में आज दिनांक 18 मई 2025 को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जांच को लेकर नाराजगी जताई। कोर्ट के समक्ष सीलबंद लिफाफे में एक रिपोर्ट पेश की गई, जिसे कोर्ट ने अपने निर्देश पर खोला और पढ़ा।
रिपोर्ट के अध्ययन के बाद यह स्पष्ट हुआ कि अदालत द्वारा दिनांक 8 मई 2025 को दिए गए आदेशों का पूर्ण रूप से पालन नहीं किया गया है। विशेष रूप से अदालत ने यह कहा कि रिपोर्ट में कुलगुरु कक्ष में लगे उस सीसीटीवी कैमरे के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई, जो इस पूरे प्रकरण का सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जा रहा है।
कुलगुरु कक्ष में कैमरा था चालू या बंद , रिपोर्ट में नहीं है कोई जानकारी
कोर्ट ने यह स्पष्ट रूप से कहा कि महिला अधिकारी द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि या खंडन इस बात पर निर्भर करता है कि जिस समय कथित घटना घटी, उस समय कुलपति कक्ष में लगा सीसीटीवी कैमरा काम कर रहा था या नहीं।
आरोप यह है कि 21 नवंबर 2024 को इसी कक्ष में महिला के साथ आपत्तिजनक हरकत की गई। लेकिन रिपोर्ट में इस कैमरे के संचालन की स्थिति पर कुछ नहीं कहा गया है ना ही यह बताया गया कि वह कैमरा काम कर रहा था या खराब था, और न ही यह कि उसका फुटेज उपलब्ध है या नहीं। यह चुप्पी इस गंभीर मामले में सबूतों को प्रभावित कर सकती है।
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हाईकोर्ट ने दी कलेक्टर को जांच की ज़िम्मेदारी, कल तक हलफनामा मांगा
मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने अब सीधे जबलपुर कलेक्टर को जांच की ज़िम्मेदारी सौंप दी है। अदालत ने आदेश दिया है कि कलेक्टर विश्वविद्यालय में जांच समिति द्वारा दर्ज किए गए गवाहों के बयानों और दस्तावेज़ों की पूरी समीक्षा करें। इसके बाद वे एक शपथ-पत्र (हलफनामा) के माध्यम से अदालत को यह बताएं कि क्या 8 मई के आदेशों का ईमानदारी से पालन हुआ है या नहीं।
कोर्ट ने विशेष रूप से यह भी कहा है कि यह हलफनामा हर हाल में कल यानी 19 मई 2025 तक प्रस्तुत किया जाए। इससे स्पष्ट है कि अदालत अब और देरी नहीं चाहती।
संतोषजनक हलफनामा नहीं आने पर तीसरी एजेंसी की सौंप सकते है जांच
अदालत ने यह भी कहा है कि यदि जबलपुर कलेक्टर द्वारा दिया गया हलफनामा संतोषजनक नहीं पाया गया, तो कोर्ट इस मामले की जांच को विश्वविद्यालय और राज्य प्रशासन से बाहर ले जाकर किसी स्वतंत्र, निष्पक्ष और सक्षम तीसरी एजेंसी को सौंप देगा।
इस प्रकार के आदेश का मतलब यह होगा कि न केवल विश्वविद्यालय, बल्कि प्रशासनिक इकाइयों पर भी अदालत का भरोसा कम हो गया है और मामले में न्याय दिलाने के लिए विशेष कदम उठाए जाएंगे। यह टिप्पणी दर्शाती है कि कोर्ट महिला सुरक्षा और साक्ष्य की सत्यता को लेकर कोई समझौता नहीं करना चाहता।
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महिला अधिकारी ने कुलसचिव पर लगाए थे गंभीर आरोप
यह मामला 21 नवम्बर 2024 को हुए एक कथित आपत्तिजनक घटनाक्रम से जुड़ा है, जब विश्वविद्यालय की एक महिला प्रोफेसर ने कुलसचिव पर छेड़छाड़ का आरोप लगाया। पीड़िता के अनुसार यह घटना कुलपति के कक्ष में हुई, जो विश्वविद्यालय का सबसे प्रतिष्ठित और सुरक्षित स्थान माना जाता है।
घटना के बाद जब महिला ने सीसीटीवी फुटेज की मांग की, तो विश्वविद्यालय प्रबंधन ने यह कहकर मना कर दिया कि "तकनीकी कारणों से कैमरा उस दिन काम नहीं कर रहा था।" इससे यह संदेह और गहराया कि कहीं जानबूझकर फुटेज हटाया तो नहीं गया।
याचिकाकर्ता के वकीलों ने कोर्ट में रखे विरोधाभासी तथ्यों के प्रमाण
पीड़िता की ओर से अदालत में पेश हुए अधिवक्ता आलोक बागरेचा और दीपक तिवारी ने कई ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए, जिनसे यह प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने साक्ष्य को दबाने की कोशिश की।
उन्होंने बताया कि 7 फरवरी 2025 को विश्वविद्यालय की ओर से स्पष्ट रूप से कहा गया था कि सभी कैमरे चालू हैं और जांच में पूरा सहयोग किया जाएगा। लेकिन जब जांच समिति ने सीसीटीवी फुटेज मांगा, तो यही प्रशासन कहने लगा कि घटना वाले दिन का कैमरा बंद था। यह विरोधाभास इस ओर इशारा करता है कि सच्चाई को दबाया जा रहा है और झूठे गवाह खड़े किए जा रहे हैं।
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हाईकोर्ट ने पहले ही दिए थे कैमरे की तकनीकी जांच के आदेश
हाईकोर्ट ने दिनांक 8 मई 2025 को ही यह महसूस कर लिया था कि सीसीटीवी फुटेज इस मामले में निर्णायक भूमिका निभा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए अदालत ने आदेश दिया था कि कुलपति कक्ष में लगे कैमरे की तकनीकी जांच की जाए।
यह जांच जिला कार्यक्रम अधिकारी (महिला एवं बाल विकास) को सौंपी गई थी, जिसमें यह पता लगाना था कि कैमरा कब से लगा था, वह कब तक कार्यरत रहा, और 21 नवम्बर को उसकी स्थिति क्या थी। साथ ही यह भी जानना जरूरी था कि क्या फुटेज के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ की गई थी। इसके बाद राज्य सरकार की ओर से अदालत में उपस्थित सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि सरकार को निष्पक्ष जांच से कोई आपत्ति नहीं है और वह कोर्ट के हर आदेश का पालन करेगी।
अदालत ने इस आश्वासन को गंभीरता से लिया, लेकिन साथ ही यह भी निर्देश दिया कि अब तक की सभी रिपोर्टों को सीलबंद लिफाफे में रखा जाए ताकि किसी भी तरह की छेड़छाड़ न हो सके और निष्पक्षता बनी रहे। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 20 मई 2025 को निर्धारित की है, जिसमें हलफनामों, तकनीकी रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों के आधार पर अंतिम रूप से तय किया जाएगा कि जांच की दिशा क्या होगी।
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