सौरभ शर्मा मामला: पांच महीने बाद भी जांच अधूरी, अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं

सौरभ शर्मा कांड की जांच पांच महीने बाद भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। इस मामले में सौरभ और उसके करीबी पकड़े गए, लेकिन उसे शह देने वाले अफसरों और कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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Sandeep Kumar
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MP News: सौरभ शर्मा कांड मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही का एक बड़ा उदाहरण बनकर उभरा है। पांच महीने की जांच के बावजूद कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है। सौरभ और उसके करीबी पकड़े गए, लेकिन उसे शह देने वाले अफसरों और कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

करोड़ों रुपए की चेक पोस्टों की डायरी सामने आने के बावजूद उसे दबा दिया गया है। सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति में बड़े भाई की नौकरी को छिपाया गया और अधिकारियों ने इसे नजरअंदाज किया। लोकायुक्त ने कुछ अफसरों को नोटिस जारी किया है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। 

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सौरभ के साथ इनकी हुई थी गिरफ्तारी

Saurabh Sharma और उसके करीबी चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल को गिरफ्तार किया गया था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने इस मामले में कुछ समय पहले चालान पेश किया, जिसमें सौरभ सहित उसकी मां, पत्नी और सहयोगियों को मिलाकर कुल 12 को आरोपी बनाया गया है। हालांकि, जांच में यह स्पष्ट नहीं हो पाया कि बरामद नकद और सोना किसका था। पुलिस ने इसे सौरभ का बताया, लेकिन यह पूरा सच नहीं था।

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अफसरों और कर्मचारियों पर कार्रवाई की कमी

सौरभ को शह देने वाले अफसरों और कर्मचारियों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। परिवहन विभाग के अफसरों और अन्य विभागों के जिम्मेदार अफसरों और कर्मचारियों ने सौरभ शर्मा की मदद की थी, लेकिन उन्हें बचाया गया है। ग्वालियर के सिरोल थाने में अनुकंपा नियुक्ति के मामले में शपथ पत्र में झूठी जानकारी देने पर सौरभ और उसकी मां पर मामला दर्ज किया गया था, लेकिन यह भी दिखावे की कवायद रही।

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चेक पोस्टों की करोड़ों की डायरी

सौरभ शर्मा की चेक पोस्टों से संबंधित करोड़ों रुपए की डायरी भी सामने आई थी, लेकिन इसे दबा दिया गया। राजनीतिक मैदान से लेकर विभागीय हर मोर्चे पर सौरभ के पकड़े जाने के बाद सख्ती बढ़ी नहीं, बल्कि घटती गई। यह दर्शाता है कि भ्रष्टाचार के मामलों में उच्च पदस्थ अफसरों और कर्मचारियों की संलिप्तता के बावजूद कार्रवाई नहीं की जा रही है।

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सौरभ की नियुक्ति और आरोप

सौरभ शर्मा की विभाग में एंट्री से लेकर नौकरी तक भ्रष्टाचार हुआ, लेकिन कार्रवाई नहीं की गई। सौरभ की अनुकंपा नियुक्ति में बड़े भाई की नौकरी को छिपाया गया। इसे सौरभ और उसकी मां उमा शर्मा ने तो छिपाया ही, साथ ही जहां-जहां प्रस्ताव चला, वह विभाग भी छिपाते गए। तत्कालीन परिवहन आयुक्त शैलेंद्र श्रीवास्तव के समय में सौरभ शर्मा की नियुक्ति हुई थी। फाइल चलती रही और अधिकारी सौरभ की झूठी जानकारी को नजरअंदाज करते गए।

लोकायुक्त की नोटिस

लोकायुक्त ने सौरभ के साथ काम करने वाले धनंजय चौबे, हेमंत जाटव, नरेंद्र सिंह भदौरिया और गौरव पाराशर को नोटिस जारी किया है। इनकी पूरे परिवहन विभाग में धाक थी। जैसे ये चाहते थे, वैसा हो जाता था। इनसे पूछताछ की जा रही है, लेकिन अब तक ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। यह मामला भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही की मिसाल बन गया है।

क्या है पूरा मामला 

मध्य प्रदेश में सौरभ शर्मा कांड ने भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के मामलों में हलचल मचा दी थी। 19 दिसंबर 2024 को लोकायुक्त और आयकर विभाग ने सौरभ शर्मा के भोपाल स्थित निवास पर छापा मारा था, जिसमें भारी मात्रा में नकद, सोना और चांदी बरामद हुई थी। इसी दिन रात में भोपाल के मेंडोरी के जंगल में आयकर विभाग की टीम ने 11 करोड़ रुपए नकद और 54 किलो सोने से लदी लग्जरी गाड़ी पकड़ी थी। यह घटना प्रदेश ही नहीं, बल्कि देशभर में चर्चा का विषय बन गई थी।

 

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