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पूरी खबर को पांच पॉइंट में समझें-
आरजीपीवी में फर्जी एसएसआर मामले में जिम्मेदारी तय नहीं हुई।
नैक ग्रेडिंग के लिए फर्जी एसएसआर तैयार की गई।
उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय प्रबंधन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
छात्रों के आंदोलन और विरोध के बावजूद कोई सुधार नहीं हुआ।
विश्वविद्यालय में शैक्षणिक स्तर गिरा, कंपनियां कैंपस सिलेक्शन के लिए नहीं आ रही।
BHOPAL. मध्य प्रदेश की एकमात्र सरकारी तकनीकी यूनिवर्सिटी पर सरकार का नियंत्रण कमजोर हुआ है। पिछले दो सालों में इस यूनिवर्सिटी पर कई आरोप लगे हैं। आरोप हैं कि यहां आर्थिक और शैक्षणिक गड़बड़ियां हो रही हैं। आरजीपीवी के पूर्व कुलपति सहित प्रबंधन में बैठे जिम्मेदार करोड़ों की हेराफेरी में फंस चुके हैं।
फेक एसएसआर (सेल्फ स्टडी रिपोर्ट) के जरिए नैक ग्रेडिंग हासिल करने का मामला सामने आया है। इसके बाद भी सरकार जिम्मेदारी तय नहीं कर पाई है। छात्रों ने इसका विरोध किया, लेकिन उच्च शिक्षा विभाग ने कोई कार्रवाई नहीं की।
आरजीपीवी रजिस्ट्रार डॉ. मोहन सेन भी एसएसआर मामले पर जिम्मेदारी तय करने के सवाल पर साफ जानकारी नहीं दे सके। छात्र महीने भर से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन प्रबंधन ने इस मुद्दे पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस घटना से विश्वविद्यालय की साख पर सवाल उठे हैं।
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उच्च शिक्षा विभाग भी कर रहा नजरअंदाज
राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को नैक (नेशनल असेसमेंट एंड एक्रिडिटेशन काउंसिल) से A++ ग्रेड मिला है। नैक की ग्रेडिंग के बाद विश्वविद्यालय के छात्रों ने एसएसआर में हेराफेरी के आरोप लगाए थे। इसको लेकर कई दिनों तक आंदोलन प्रदर्शन किए गए थे।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और तकनीकी पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत छात्रों ने नाराजगी जाहिर की। इसके बाद उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार को भी विश्वविद्यालय पहुंचना पड़ा था। वहीं कुलगुरु प्रो. राजीव त्रिपाठी को त्यागपत्र देना पड़ा है। छात्र अब भी एसएसआर में फर्जीवाड़े को नजरअंदाज करने पर विश्वविद्यालय प्रबंधन और उच्च शिक्षा विभाग से नाराज हैं।
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नैक ग्रेडिंग हथियाने की साजिश पर चुप्पी
आरजीपीवी ने नैक की ग्रेडिंग हासिल करने के लिए एसएसआर पेश की थी। अभी तक वह भी सवालों के घेरे से बाहर नहीं आई है। छात्रों के आंदोलन के बाद कुलगुरु ने इस्तीफा दे दिया है। इसके बावजूद अब भी फर्जी एसएसआर तैयार करने पर किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली है।
उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालय प्रबंधन भी इस पर अपना रुख साफ नहीं कर पाया है। विद्यार्थी परिषद के प्रदेश मंत्री केतन चतुर्वेदी और दूसरे छात्र लगातार इस पर सवाल उठा रहे हैं।
एसएसआर में जो दावे विश्वविद्यालय की ओर से किए गए उन पर आइक्यूएसी प्रभारी अर्चना तिवारी ने भी कोई जवाब नहीं दिया है। नैक ग्रेड के लिए एसएसआर तैयार करने की जिम्मेदारी आईक्यूएसी प्रभारी की होने के बावजूद उन पर कोई कार्रवाई भी नहीं हुई है।
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फर्जी एसएसआर के लिए जिम्मेदारी तय नहीं:
आरजीपीवी के छात्रों का कहना है कि फर्जी एसएसआर मामले में कुलगुरु ने त्यागपत्र दे दिया है। वहीं, ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी इसका जवाब नहीं मिला है।
बीते दो तीन साल में विश्वविद्यालय में तकनीकी शिक्षा का स्तर काफी खराब हुआ है। इस वजह से कैंपस सिलेक्शन के लिए कंपनियां ही नहीं आ रही हैं। शैक्षणिक स्तर में सुधार के लिए कोई प्रयास ही नहीं हो रहे लेकिन नैक से ग्रेड हथियाने के लिए प्रबंधन साजिश किए जा रहा है।
करोड़ों की एफडी गायब हो गईं हैं। वहीं, बीते पांच सालों में 800 करोड़ गायब होने पर भी विश्वविद्यालय के पास जवाब नहीं है। उच्च शिक्षा विभाग भी केवल जांच कराने का आश्वासन देकर पल्ला झाड़ रहा है।
घोटालों ने बदली तकनीकी यूनिवर्सिटी की पहचान
एबीवीपी प्रदेश मंत्री केतन चतुर्वेदी का कहना है कि आरजीपीवी प्रबंधन के पास बेहिसाब फंड आ रहा है। प्रबंधन उच्च शिक्षा विभाग के नियंत्रण से बाहर हो चुका है।
पिछले कुछ सालों में कई घोटाले सामने आए हैं। एफडी घोटाला, निर्माण घोटाला और छात्रों को सुविधाएं देने में घोटाला हुआ। इसके अलावा, शिक्षकों की भर्ती में भी घोटाला हुआ। अब नैक की ग्रेडिंग हथियाने का भी घोटाला सामने आया है।
एक के बाद एक हुए इन घोटालों ने विश्वविद्यालय की पहचान ही बदल दी है। विश्वविद्यालय में तकनीकी शिक्षा के लिए जरूरी माहौल ही नहीं बचा है।
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