राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में 16.50 करोड़ की लागत वाले स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के निर्माण के नाम पर 23.52 करोड़ उड़ाए गए। छह साल तक कॉम्पलेक्स के नाम पर करोड़ों का गड़बड़झाला होता रहा। जिस स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के निर्माण पर तय लागत से 7 करोड़ ज्यादा खर्च दिखाए गए हैं वो अब तक आधा भी नहीं बना है। दिल्ली की जिस कंपनी को ठेका दिया गया वो पहले ही काम समेट चुकी है। पहले तो इस गड़बड़झाले को दबाने की कोशिश की गई लेकिन अब 7 करोड़ का जिन्न बोतल से बाहर आ गया है। स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के नाम पर करोड़ों के भ्रष्टाचार की कलई अब खुलने लगी है। विश्वविद्यालय के संपदा अधिकारी को निलंबित कर दिया गया है, लेकिन जिस 7 करोड़ का ज्यादा भुगतान दिखाया गया है उसकी वसूली कैसे होगी ? आरजीपीवी में अधूरा पड़ा स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स कौन पूरा कराएगा ? क्या इसे पूरा करने विश्वविद्यालय को फिर करोड़ों रुपए खर्च करने होंगे ? द सूत्र ने साल 2024 में भी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के नाम पर हुई करोड़ों की बंदरबांट की परतें खोली थीं।
आरजीपीवी में दूसरी बड़ी धांधली
राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय प्रदेश का इकलौता तकनीकी विश्वविद्यालय है। यहां साल 2019 में स्टूडेंट्स के लिए 16.50 करोड़ रुपए से स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स बनाने की स्वीकृति दी गई थी। ये काम सीपीए यानी राजधानी परियोजना प्रशासन के माध्यम से कराया जाना था। स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का टेंडर दिल्ली की कंपनी सुरेश गोयल एंड एसोसिएट्स को दिया गया। लेकिन कुछ महीने बाद ही बजट स्टीमेट रिवाइज कर इसे 19.16 करोड़ करा दिया गया। इसके बाद साल 2024 तक आधा-अधूरा काम ही कंपनी ने किया। 2024 में कंपनी को पूरी राशि यानी 23.52 करोड़ का भुगतान कर अधूरे कॉम्पलेक्स को हैंडओवर ले लिया गया। इस दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति, कुलसचिव, वित्त अधिकारी या अन्य किसी जिम्मेदार ने आपत्ति दर्ज नहीं कराई। पूरा खेल विश्वविद्यालय के तत्कालीन जिम्मेदारों के बीच चलता रहा और कंस्ट्रक्शन कंपनी को अधूरे काम और अपने मुनाफे के बदले 7 करोड़ ज्यादा दे दिए गए।
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भ्रष्टाचार के मामले के बाद खुली कलई
साल 2024 में आरजीपीवी में करोड़ों रुपए निजी खातों में जमा कराए जाने का मामला सामने आया था। छात्रों के आंदोलन और जांच में तत्कालीन कुलपति प्रो. सुनील कुमार, निलंबित रजिस्ट्रार आरएस राजपूत, वित्त नियंत्रक ऋषिकेश वर्मा, निजी बैंक का पूर्व प्रबंधक मयंक कुमार सहित सोहागपुर की एक समिति के पदाधिकारियों पर अपराध दर्ज कराया गया था। विश्वविद्यालय के प्रबंधन में बैठे भ्रष्टाचार के आरोपियों के बाहर होने के बाद स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स घोटाला भी बाहर आ गया। इस मामले में हुई धांधली को भी यही लोग दबाए बैठे थे। एक के बाद दूसरा मामला सामने आने पर जांच कराई गई जिसमें स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के निर्माण की फाइल खुली तो सब सन्न रह गए। विश्वविद्यालय के छात्र और एबीवीपी भी इसको लेकर लगातार प्रदर्शन कर रही थी जिसके चलते वर्तमान प्रबंधन को सक्रिय होना पड़ा।
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जिम्मेदारों की शह पर हुआ था भुगतान
आरजीपीवी स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के नाम पर 7 करोड़ के ज्यादा भुगतान का मामला गबन से कम नहीं है। इस मामले में पहले तो तय लागत पर टेंडर कराया गया और कुछ महीने बाद ही उसे रिवाइज भी कर दिया गया। विश्वविद्यालय प्रबंधन के शामिल होने के बिना ऐसा संभव नहीं था। यदि किसी भी स्तर पर आपत्ति की गई होती तो ऐसा नहीं होता। इस मामले में जारी प्रारंभिक जांच में विश्वविद्यालय के संपदा अधिकारी की सीधी भूमिका सामने आई है। जिसके बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया है। स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स का काम डीपीआर के मुताबिक इंडोर-आउटडोर स्टेडियम, एथलेटिक्स ट्रैक, हॉकी फील्ड, स्वीमिंग पूल का काम नहीं होने पर भी संपदा अधिकारी सबूर खान के भुगतान कराते रहे। सीपीए को निगरानी के बदले वास्तविक व्यय का 6 प्रतिशत मिलना था। सीपीए के तकनीकी अधिकारी और आरजीपीवी के संपदा अधिकारी निर्माण की समीक्षा किए बिना ही भुगतान कराते रहे।