सौरभ शर्मा की दुबई में बंगले का पता नहीं लगा पा रहीं जांच एजेंसियां

सौरभ शर्मा ने जांच एजेंसियों के सामने कई बार यह दावा किया है कि उसके पास दुबई में कोई संपत्ति नहीं है और न ही वह काली कमाई में लिप्त है। हालांकि, यह स्थिति जांच एजेंसियों के लिए असमंजस का कारण बन चुकी है।

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Sandeep Kumar
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मध्य प्रदेश परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा, उसके करीबी चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल आय से अधिक संपत्ति मामले में न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। तीन मार्च को इनकी हिरासत की अवधि पूरी होने के बाद वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से उन्हें न्यायालय में पेश किया गया। न्यायालय ने तीनों की न्यायिक हिरासत की अवधि को 17 मार्च तक बढ़ा दिया है, ताकि जांच जारी रह सके।

सौरभ के बंगले की खोज में लगी एजेंसियां

सौरभ शर्मा की काली कमाई की जांच के दौरान एजेंसियां उसके दुबई में स्थित 150 करोड़ रुपए के बंगले का पता नहीं लगा पा रही हैं। महीनों की जांच के बावजूद लोकायुक्त पुलिस, आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इस संपत्ति को लेकर किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं। सौरभ के खिलाफ दर्ज एफआईआर में यह उल्लेख किया गया है कि उसने दुबई में एमआर ग्रुप से बंगला खरीदा था, लेकिन अभी तक इस आरोप की पुष्टि नहीं हो पाई है।

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सौरभ की ओर से लगातार इंकार

सौरभ शर्मा ने जांच एजेंसियों के सामने कई बार यह दावा किया है कि उसके पास दुबई में कोई संपत्ति नहीं है, और न ही वह काली कमाई में लिप्त है। हालांकि, यह स्थिति जांच एजेंसियों के लिए असमंजस का कारण बन चुकी है। सौरभ के दुबई जाने की बात भी सामने आई है, लेकिन इस संपत्ति से जुड़ी जानकारी अब तक स्पष्ट नहीं हो सकी है।

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चेतन सिंह और शरद जायसवाल पर सवाल

सौरभ के दो करीबी, चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल की गिरफ्तारी के बाद भी जांच एजेंसियां किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकी हैं। वे अभी तक यह नहीं पता लगा सके हैं कि कार से बरामद 54 किलो सोना और 10 करोड़ की नकदी कहां से आई। यह कार चेतन सिंह की बताई जा रही है, और चेतन के अनुसार, इसका उपयोग सौरभ द्वारा किया जाता था। इस तथ्य की जांच की जा रही है, लेकिन अब तक इसका स्पष्ट जवाब नहीं मिल पाया है।

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बरामद डायरी और नामों की लिस्ट

लोकायुक्त पुलिस को एक डायरी भी बरामद हुई है, जिसमें कई नाम और लेन-देन की जानकारी दर्ज है। यह डायरी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है, लेकिन जांच एजेंसियां अभी तक इन नामों से पूछताछ करने में भी असमर्थ रही हैं। इससे जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि वे इन तथ्यों से आगे नहीं बढ़ पाई हैं।

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जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर सवाल

यह मामला एजेंसियों की जांच पर गंभीर सवाल खड़ा करता है। महीनों की जांच के बाद भी वे किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सके हैं और मामले में नए तथ्यों की पुष्टि भी नहीं हो पाई है। इससे यह संकेत मिलता है कि जांच एजेंसियों के पास जरूरी जानकारी या साक्ष्य का अभाव हो सकता है, जो इस मामले को सुलझाने में मददगार साबित हो सके।

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