सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के चर्चित ई-टेंडरिंग मामले में ईडी को बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने ईडी की स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) खारिज कर दी है। कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के पूर्व आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी और मंटेना ग्रुप के एमडी एमएस राजू के खिलाफ ईडी की कार्रवाई को खारिज किया गया था।
तेलंगाना हाईकोर्ट ने 2023 में दिए गए अपने फैसलों में स्पष्ट किया था कि ईडी के पास ठोस सबूत नहीं हैं। सिर्फ संदेह के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने 13 मई 2025 को हुई सुनवाई में कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई अन्य आवेदन लंबित है तो वह भी स्वतः समाप्त माना जाएगा।
क्या था तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला
तेलंगाना हाईकोर्ट ने 8 सितंबर 2023 के अपने फैसले में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव गोपाल रेड्डी और मंटेना ग्रुप के एमएस राजू के खिलाफ ईडी के प्रकरण को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट ने 2023 में दिए गए अपने निर्णयों में कहा था कि ईडी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य संदेह की श्रेणी में आते हैं और कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। एमएस राजू के मामले में कहा गया था कि टेंडर में गड़बड़ी के जो आरोप लगाए गए थे, उन्हें प्रमाणित नहीं किया जा सका। इसी तरह गोपाल रेड्डी के खिलाफ भी ईडी की जांच को कोर्ट ने निराधार पाया।
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EOW की FIR पर आधारित था ईडी का केस
ईडी का पूरा मामला आर्थिक अपराध शाखा (EOW) की एक प्राथमिकी पर आधारित था। इसमें टेंडर टैंपरिंग के आरोप लगाए गए थे। हालांकि, ट्रायल कोर्ट ने उन व्यक्तियों को पहले ही सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था जिन्हें टैंपरिंग का आरोपी बनाया गया था। हाईकोर्ट ने भी इसी आधार पर कहा कि केवल एक FIR या शक किसी व्यक्ति को अभियुक्त बनाने के लिए पर्याप्त नहीं होता।
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जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल शामिल थे। जस्टिस ने कहा कि उन्हें हाईकोर्ट के निर्णय में कोई गलती नहीं दिखती जिसके आधार पर हस्तक्षेप किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस मामले में कोई अन्य आवेदन लंबित है तो उसे भी समाप्त माना जाए।
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ईडी की जांच प्रक्रिया पर उठे सवाल
इस निर्णय से ईडी की जांच प्रक्रिया और उसके द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। यह मामला उन तमाम अभियानों के लिए एक मिसाल बन सकता है, जहां बिना पर्याप्त सबूतों के सिर्फ एफआईआर के आधार पर कार्रवाई की जाती है।
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क्या था ई-टेंडरिंग मामला?
यह मामला मध्य प्रदेश के सिंचाई विभाग से जुड़ा हुआ था, जिसमें 1030 करोड़ रुपए की निविदाओं में कथित रूप से टेंडरिंग प्रक्रिया में छेड़छाड़ के आरोप लगे थे। मंटेना ग्रुप की कंपनी मैक्स मंटेना पर मुख्य आरोप था, जो बाद में जांच में साबित नहीं हो सके। पहले ईओडब्ल्यू ने जांच की, फिर मामला ईडी के पास गया।